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रूस व चीन : कितने पास, कितने दूर

डॉ गौरीशंकर राजहंस पूर्व सांसद व पूर्व राजनयिक द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब ‘शीतयुद्ध’ शुरू हुआ, तो ज्यादातर देश दो खेमों में बंट गये. एक खेमे का मुखिया अमेरिका था, तो दूसरे का सोवियत संघ. उन दिनों चीन एक पिछड़ा देश था, सो वह सोवियत संघ के साथ हो लिया. शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ […]

डॉ गौरीशंकर राजहंस

पूर्व सांसद व पूर्व राजनयिक

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब ‘शीतयुद्ध’ शुरू हुआ, तो ज्यादातर देश दो खेमों में बंट गये. एक खेमे का मुखिया अमेरिका था, तो दूसरे का सोवियत संघ. उन दिनों चीन एक पिछड़ा देश था, सो वह सोवियत संघ के साथ हो लिया. शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ ने चीन के आर्थिक उन्नयन के लिए भरपूर मदद की. जब सोवियत संघ का पतन हुआ और रूस आर्थिक-सामरिक दृष्टिकोण से कमजोर हो गया, तब से रूस-चीन संबंध नरम-गरम होते रहे.

परंतु हाल में जब से यूक्रेन की समस्या उत्पन्न हुई, तो अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश एक हो गये. रूस अलग-थलग पड़ गया. लाचार होकर उसने चीन का दामन थामा. चीन ने यूक्रेन के मामले में सुरक्षा परिषद् में रूस का साथ दिया.

रूस और चीन के संबंधों में उतार-चढ़ाव होता रहता है. रूस ने चीन की सामरिक शक्ति को मजबूत करने के लिए भरपूर मदद की थी, परंतु चीन ने धूर्तता की.

उसने रूस के हथियारों-विमानों की नकल कर रूस के मुकाबले में चौथाई कम दामों में उन्हें निर्यात करना शुरू कर दिया. इससे रूस नाराज हुआ और दोनों देशों के संबंध कटु हो गये.

उधर यूक्रेन की समस्या से पहले रूस मनमानी कीमत पर प्राकृतिक गैस यूरोपीय देशों को बेचता था. अब यूरोपीय देशों ने उसे खरीदना बंद कर दिया है. ऐसे में चीन ने प्रस्ताव रखा कि वह रूस से गैस खरीदेगा, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. रूस चाहता था कि चीन बाजार दर पर यह गैस खरीदे, परंतु चीन ने सस्ती दरों पर यह गैस की खरीद की, क्योंकि वह जानता था कि रूस हर हालत में पैसों के लिए उसे गैस बेचेगा ही.

हाल में रूस ने चीन को आधुनिकतम लड़ाकू विमान फिर से देना शुरू कर दिया है. रूस यह अच्छी तरह जानता है कि चीन इन विमानों का उपयोग अपने पड़ोसियों, खासकर जापान और अन्य एशियाई देशों को डराने के काम में लायेगा. परंतु रूस के सामने भी लाचारी थी, क्योंकि उनका लड़ाकू विमान कोई देश खरीदने को तैयार नहीं था.

सोवियत संघ के पतन के बाद मध्य एशिया के जो देश आजाद हुए, उन्हें रूस अपना ‘सेटेलाइट देश’ मानता है, परंतु चीन इससे नाराज है.

उसका कहना है कि ये देश पूर्णत: आजाद हैं और वे अपनी मर्जी से अपनी सरकार चलायेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि चीन इन देशों से होकर ‘सिल्क रूट’ यूरोप तक ले जाना चाहता है. इसके लिए इन देशों की सरकारों की मंजूरी बहुत आवश्यक है.

वियतनाम ने अपने पास के द्वीपों में भारत की मदद से तेल और गैस की खुदाई शुरू कर दी है. चीन इस बात से बहुत नाराज है कि रूस का संबंध भारत और वियतनाम से बहुत ही मजबूत है. परंतु रूस ने साफ कह दिया है कि वह इन देशों से अपने मजबूत संबंधों को कमजोर नहीं करेगा.

रूस की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब है. वहां के समाचारपत्र आये दिन लिखते हैं कि रूस ने ही एक पिछड़े देश चीन को आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से मजबूत किया. आज वह प्राकृतिक संसाधनों को चीन को सस्ते दामों में बेच रहा है. देखना यह है कि आनेवाले दिनों में रूस-चीन के संबंध मजबूत रह पाते हैं या नहीं.

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