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विकास से कोसों दूर हैं चरकापत्थर के कई गांव

सोनो (जमुई): पिछले दो-ढाई दशक से प्रखंड का कुछ भाग नक्सल प्रभावित रहा है. इसमें चरकापत्थर थाना क्षेत्र के पहाड़ी, जंगली व दूरस्थ क्षेत्र सर्वाधिक चर्चित रहा है. इन क्षेत्रों में नक्सली सोच व उसकी गतिविधियों के खिलाफ चल रही प्रशासनिक लड़ाई में सरकार ने ऐसे क्षेत्र में विकास कार्यो को बड़े स्तर पर करने […]

सोनो (जमुई): पिछले दो-ढाई दशक से प्रखंड का कुछ भाग नक्सल प्रभावित रहा है. इसमें चरकापत्थर थाना क्षेत्र के पहाड़ी, जंगली व दूरस्थ क्षेत्र सर्वाधिक चर्चित रहा है. इन क्षेत्रों में नक्सली सोच व उसकी गतिविधियों के खिलाफ चल रही प्रशासनिक लड़ाई में सरकार ने ऐसे क्षेत्र में विकास कार्यो को बड़े स्तर पर करने की योजना बनायी. करोड़ों रुपये ऐसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र के विकास पर खर्च भी हुए, परंतु परिणाम सकारात्मक नजर नहीं आता है.

आज भी ऐसे दर्जनों गांव विकास से कोसों दूर हैं. उपलब्धि के नाम पर गांव तक पक्की सड़कें अवश्य बनी. विद्यालय भवन बनावाये गये परंतु इन पिछड़े गांव के बच्चों को शिक्षित करने का उद्देश्य आजतक फलीभूत होता नहीं दिख रहा, क्योंकि इन दूरस्थ गांव के विद्यालयों में शिक्षक भूले-भटके ही पहुंचते हैं. विद्युतीकरण योजना का लाभ भी इस क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल रहा है. सामाजिक सुरक्षा, इंदिरा आवास, केसीसी ऋण, डीजल अनुदान सहित तमाम सरकारी लाभकारी योजनाओं में बिचौलियों की सेंध लगी है.

जविप्र में अनियमितता
आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन कागजों पर होता है. इस क्षेत्र के किसानों की खेतों में सिंचाई के लिए भी ठोस योजना आजतक नहीं बन सकी है, वहीं क्षेत्र के लोगों के बीच पेयजल के लिए भी त्रहिमाम मचा रहता है. स्वास्थ्य सेवा में व्यापक सुधार के दावे खोखले हैं तो जनवितरण में घोर अनियमितता है. रोजगार के साधन नहीं हैं. ऐसे में विकास की गंगा बहा कर नक्सल गतिविधि में शामिल नौजवानों को समाज की मुख्य धारा में लाने का सरकारी व राजनीतिक सोच भला कितना सफल हो पायेगा. समय-समय पर जिलाधिकारी से लेकर राजनेता तक चरकापत्थर में कार्यक्रम करते आ रहे हैं जिससे विकास के तमाम वादे किये जाते हैं. योजनाएं बना कर राशि भेजी जाती है परंतु गुणवत्ता व रफ्तार की कसौटी पर ये कार्य खरे नहीं उतरते. रजाैन, थम्हन, छुछनरिया पंचायत के कई गांव आज भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है.

तेतरिया, पानीचुआं, टपकी, पहाड़पुर, सुरायडीह, डुमरजोर, बरमोरिया, कदवा आदि दर्जनों गांव के अधिकांश लोग सामान्य स्तर से भी नीचे की जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. घोर अशिक्षा के बीच ऐसे दूरस्थ गांवों में विकास की सुस्त रफ्तार भला कैसे जीवन शैली बदलने में कारगर साबित होगी. तेतरिया में कुछ माह पूर्व पश्चिम बंगाल की एक निजी स्वयं सेवी संस्थान द्वारा बच्चों की स्थित पर किये गये सर्वे की रिपोर्ट यह बयां करने के लिए काफी है कि इन क्षेत्रों में बच्चों के गंदे रहन-सहन,कुपोषण व अशिक्षा को दूर करने की दिशा में उठाया गया कदम कितना सार्थक है. क्षेत्र के लोगों की बदतर स्थिति को देखते हुए उक्त स्वयं सेवी संस्था ने नक्सल प्रभावित ऐसे क्षेत्र में सरकार से नयी सोच व सक्रियता से विकास की योजना क्रियान्वयन करवाने की वकालत करते हुए कहा था कि ऐसा करने के बाद ही विकास की किरण नक्सल प्रभावित ऐसे क्षेत्र में देखने को मिल सकता है और क्षेत्र के लोगों के रहन-सहन सहित अन्य कार्यकलाप में बदलाव आ सकता है.

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