आज भी ऐसे दर्जनों गांव विकास से कोसों दूर हैं. उपलब्धि के नाम पर गांव तक पक्की सड़कें अवश्य बनी. विद्यालय भवन बनावाये गये परंतु इन पिछड़े गांव के बच्चों को शिक्षित करने का उद्देश्य आजतक फलीभूत होता नहीं दिख रहा, क्योंकि इन दूरस्थ गांव के विद्यालयों में शिक्षक भूले-भटके ही पहुंचते हैं. विद्युतीकरण योजना का लाभ भी इस क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल रहा है. सामाजिक सुरक्षा, इंदिरा आवास, केसीसी ऋण, डीजल अनुदान सहित तमाम सरकारी लाभकारी योजनाओं में बिचौलियों की सेंध लगी है.
तेतरिया, पानीचुआं, टपकी, पहाड़पुर, सुरायडीह, डुमरजोर, बरमोरिया, कदवा आदि दर्जनों गांव के अधिकांश लोग सामान्य स्तर से भी नीचे की जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. घोर अशिक्षा के बीच ऐसे दूरस्थ गांवों में विकास की सुस्त रफ्तार भला कैसे जीवन शैली बदलने में कारगर साबित होगी. तेतरिया में कुछ माह पूर्व पश्चिम बंगाल की एक निजी स्वयं सेवी संस्थान द्वारा बच्चों की स्थित पर किये गये सर्वे की रिपोर्ट यह बयां करने के लिए काफी है कि इन क्षेत्रों में बच्चों के गंदे रहन-सहन,कुपोषण व अशिक्षा को दूर करने की दिशा में उठाया गया कदम कितना सार्थक है. क्षेत्र के लोगों की बदतर स्थिति को देखते हुए उक्त स्वयं सेवी संस्था ने नक्सल प्रभावित ऐसे क्षेत्र में सरकार से नयी सोच व सक्रियता से विकास की योजना क्रियान्वयन करवाने की वकालत करते हुए कहा था कि ऐसा करने के बाद ही विकास की किरण नक्सल प्रभावित ऐसे क्षेत्र में देखने को मिल सकता है और क्षेत्र के लोगों के रहन-सहन सहित अन्य कार्यकलाप में बदलाव आ सकता है.