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राजनैतिक अर्थव्यवस्था या अव्यवस्था?

अगर आप अपने एक-एक वोटर को समझते हैं, तो उसकी समस्या को भी समझते होंगे. फिर अपनी आर्थिक नीति को सूक्ष्म करने के लिए कुछ न कुछ किया होता. आर्थिक उलझन जितनी बड़ी राष्ट्रीय समस्या है, उतनी ही निजी भी है. उपभोक्तावादी समाज में अपनी-अपनी व्यवस्था की समस्या माइक्रो-इकोनॉमिक्स में आती है. उपभोक्तावाद से मांग […]

अगर आप अपने एक-एक वोटर को समझते हैं, तो उसकी समस्या को भी समझते होंगे. फिर अपनी आर्थिक नीति को सूक्ष्म करने के लिए कुछ न कुछ किया होता. आर्थिक उलझन जितनी बड़ी राष्ट्रीय समस्या है, उतनी ही निजी भी है.
उपभोक्तावादी समाज में अपनी-अपनी व्यवस्था की समस्या माइक्रो-इकोनॉमिक्स में आती है. उपभोक्तावाद से मांग भी बढ़ती है. इसका संबंध आर्थिक समस्या की निजता से है, जिसे राष्ट्रवादी होकर नहीं समझा जा सकता. अच्छी सरकार इसे समझ कर कोई माइक्रो इकोनॉमिक डेवलपमेंट रास्ता बनायेगी.
अगर आप माइक्रो इकोनॉमिक्स नहीं अपना रहे, तो आप उपभोक्ता संरक्षण व बीमा की चर्चा करना छोड़ ही दें. सामाजिक स्तर पर मैक्रोइकॉनॉमिक्स व माइक्रोइकोनॉमिक्स की समझ जरूरी है, नहीं तो आप अर्थव्यवस्था को अव्यवस्था समझ लेंगे
उत्तम कुमार, हजारीबाग

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