‘जैसे ही मन शांत तथा स्थिर होता है, नेत्रों का प्रकाश तीव्रता से चमकने लगता है. सामने की प्रत्येक वस्तु आलोकित हो उठती है. यदि आंखें खोलकर शरीर को खोजा जाता है तो वह वहां नहीं मिलता. इस खाली कक्ष में वह स्वयं प्रकाश हो जाता है. यह बड़ा शुभ लक्षण है. अथवा जब कोई साधक ध्यान करने बैठता है तो भौतिक शरीर रेशम अथवा गहरे हरे रंग के पत्थर की तरह चमकने लगता है और अधिक बैठना मुश्किल होता है. ऐसा लगता है कि मानो साधक ऊपर खिंचा जा रहा हो. इसे कहते हैं- ‘आत्मा लौटती है तथा स्वर्ग की ओर धकेलती है. कुछ समय बाद साधक को ऐसा लगता है कि वह सचमुच ऊपर सैर कर रहा है.’
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प्रवचन::: मन शांत होते ही नेत्रों का प्रकाश चमकने लगता है
‘जैसे ही मन शांत तथा स्थिर होता है, नेत्रों का प्रकाश तीव्रता से चमकने लगता है. सामने की प्रत्येक वस्तु आलोकित हो उठती है. यदि आंखें खोलकर शरीर को खोजा जाता है तो वह वहां नहीं मिलता. इस खाली कक्ष में वह स्वयं प्रकाश हो जाता है. यह बड़ा शुभ लक्षण है. अथवा जब कोई […]
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