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उपन्यास ‘रेड जोन’ पर विद्वानों ने रखे विचार, डॉ बीपी केसरी ने कहा

झारखंड की जटिलताओं का नमूना पेश करता है उपन्यास : विद्याभूषण रांची : उपन्यास ‘रेड जोन’ झारखंड के सामाजिक यथार्थ का जीवंत दस्तावेज है़ झारखंडी पहले अपनी सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई लड़ते थे, अब उनके लिए यह अस्तित्व का सवाल बन गया है़ झारखंड के खनिज के लिए 107 एमओयू हुए हैं़ यदि सभी कार्यान्वित […]

झारखंड की जटिलताओं का नमूना पेश करता है उपन्यास : विद्याभूषण
रांची : उपन्यास ‘रेड जोन’ झारखंड के सामाजिक यथार्थ का जीवंत दस्तावेज है़ झारखंडी पहले अपनी सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई लड़ते थे, अब उनके लिए यह अस्तित्व का सवाल बन गया है़ झारखंड के खनिज के लिए 107 एमओयू हुए हैं़ यदि सभी कार्यान्वित होंगे, तो स्थिति कल्पनातीत होगी़ यहां नेतृत्व का अभाव है.
यह समय की मांग है कि रेड जोन क्षेत्र के मूलनिवासियों की बात भी सुनी जाय़े यह बात डॉ बीपी केशरी ने विनोद कुमार के नवीनतम उपन्यास ‘रेड जोन’ पर परिचर्चा के दौरान कही. इसका आयोजन जनमुक्ति विमर्श की ओर से नवभारत जागृति केंद्र सभागार में किया गया. वरिष्ठ कवि विद्याभूषण ने कहा कि उपन्यास बांधता है़ आसपास को टटोलने की चुनौती देता है़ यह सरल चरित्रों की कहानी नहीं है़ यह हाल के झारखंड की जटिलताओं का नायाब नमूना है़
हर क्रांतिकारी जमात के लिए महत्वपूर्ण : सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम ने कहा कि आज जब भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आया है, तब यह उपन्यास हर क्रांतिकारी जमात के लिए महत्वपूर्ण बन गया है़ इसमें वर्ग, जाति और लिंग की बात सहजता से रखी गयी है़ फिल्मकार मेघनाथ ने कहा कि उपन्यास राजनीतिक कहानी की सुंदर प्रस्तुति है़ उपन्यासकार चरित्रों या स्थितियों से नहीं खेलते. ईमानदार पत्रकारिता करनेवालों और युवा पीढ़ी को यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए़
साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि झारखंड में कलम, कूची और कैमरा से अच्छी चीजें दिखायी जा सकती हैं यह उपन्यास आदिवासी जीवनशैली की सार्थकता की ओर इशारा करता है. भविष्य के लिए रास्ता दिखा सकता है़ एक्सआइएसएस के निदेशक फादर एलेक्स एक्का ने कहा कि उपन्यास के जरिये सामाजिक आंदोलनों को आगे बढ़ाया जा सकता है़
इस उपन्यास में जल, जंगल, जमीन का संघर्ष दिखता है़ मनोहर पाठक ने कहा कि यह गर्व की बात है कि झारखंड में अच्छी किताबें लिखी जा रही हैं़ डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने कहा कि झारखंड का ग्रीन जोन रेड जोन बन गया है़ यह उपन्यास के साथ-साथ इतिहास भी है़ समाजकर्मी मंथन ने कहा कि इस उपन्यास का सबसे बड़ा पक्ष इसका बहाव व पठनीयता है़ इसमें सहजता और खुलापन है़
राजनीति और मीडिया का विश्वसनीय चित्रण
वरिष्ठ साहित्यकार रविशंकर ने कहा कि यह उपन्यास दस्तावेजीकरण है़ इसमें समझौते की राजनीति, सहयोग की राजनीति और प्रतिरोध की राजनीति का चित्रण है़ उपन्यास में हलका बिखराव नजर आता है, पर शायद इसलिए क्योंकि हमारे समाज और राजनीति में ही बिखराव है़
जहां राजनीति और मीडिया की बात है, वहां उपन्यास विश्वसनीय होकर उभरा है़ इसमें सूचनाओं का अंबार है़ उपन्यास के अंत में बिरसा मुंडा के विचारों से समाधान का रास्ता दिखाया गया है, पर हम सिर्फ बिरसा मुंडा के संघर्ष को ग्रहण कर सकते हैं, संघर्ष के तरीकों को नहीं, क्योंकि परिस्थितियां बदल गयी हैं.
कई सवाल खड़े करता है उपन्यास
डॉ रोज केरकेट्टा ने कहा कि झारखंड आंदोलन में महिलाओं की भूमिका नहीं दिखायी गयी़ दुर्गा जब शोषण के खिलाफ खड़ी होती है, तब शिबू सोरेन पास नहीं जाती, वामपंथियों की ओर जाती है, क्योंकि उसे राजनीतिज्ञों के पास अपनी समस्याओं का समाधान नहीं दिखता. कवयित्री जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि उपन्यास कई सवाल खड़े करता है. यह स्पष्ट करता है कि अलग झारखंड से आदिवासियों का हित नहीं हुआ. कवयित्री ज्योति लकड़ा ने कहा कि यह उपन्यास पूरे झारखंड की स्थिति को समेटता है.
बिरसा मुंडा का रास्ता ही एकमात्र उपाय : विनोद कुमार
दूसरे सत्र में उपन्यासकार विनोद कुमार ने परिचर्चा में उभरे सवालों के जवाब दिये. उन्होंने कहा कि इस उपन्यास का राजनैतिक दर्शन है कि बिरसा मुंडा का रास्ता अर्थात संघर्ष का रास्ता ही एकमात्र उपाय है़ उनकी लड़ाई सब मिल कर लड़ते थ़े जनभागीदारी की लड़ाई थी. हम इसे छोटी-छोटी सेनाएं बना युद्ध नहीं जीत सकत़े हमने तपकारा और नेतराहट की लड़ाई जीती है़

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