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सर, रांची पॉलिटेक्निक को बचाइए

नशेड़ियों व समाजविरोधियों के कारण पठन-पाठन हुआ मुश्किल रांची पुलिस से की गयी है शिकायत विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग बेपरवाह रांची : राजकीय पॉलिटेक्निक चर्च रोड, रांची में दिन भर जुआरियों व शराबियों का अड्डा रहता है. मोटरसाइकिल पर चीखते-चिल्लाते गालियां देते मवाली टाइप लड़के आते-जाते रहते हैं. ब्राउन शुगर, गांजा, दारू यहां मिलता है. […]

नशेड़ियों व समाजविरोधियों के कारण पठन-पाठन हुआ मुश्किल
रांची पुलिस से की गयी है शिकायत विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग बेपरवाह
रांची : राजकीय पॉलिटेक्निक चर्च रोड, रांची में दिन भर जुआरियों व शराबियों का अड्डा रहता है. मोटरसाइकिल पर चीखते-चिल्लाते गालियां देते मवाली टाइप लड़के आते-जाते रहते हैं. ब्राउन शुगर, गांजा, दारू यहां मिलता है. जो हो रहा है, उसे चुपचाप देखिए व गुजर जाइए. टोकना भारी पड़ सकता है. इसी महीने (मई) की एक तारीख को पॉलिटेक्निक कैंपस में रहनेवाले एक कर्मचारी ने पुलिस से ऐसी ही लिखित शिकायत की है. लिखा है कि घर के सामने कुछ लोग गांजा-दारू पी रहे थे.
मना करने पर उन लोगों ने मेरे लड़के के साथ मारपीट की. परिवार लेकर रहता हूं. इस माहौल से हमें रोज गुजरना पड़ता है. कृपया मेरी रक्षा की जाये. प्राचार्य सहित दूसरे कर्मचारी भी चुप रहना ही बेहतर समझते हैं. इसी भय व दमघोंटू माहौल में इस संस्थान में नौजवानों को इंजीनियरिंग पढ़ायी जा रही है. संस्थान का अपना छात्रावास भी है. यहां रह रहे दूरदराज व देहात के लड़कों को कैसी मानसिक पीड़ा होती होगी, इसे समझा जा सकता है.
पांच ब्रांच (सिविल, मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर साइंस तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन) में कुल एक हजार विद्यार्थियों के लिए सिर्फ आठ क्लास रूम हैं. क्लास रूम की कमी से अलग-अलग सेमेस्टर का क्लास बारी-बारी से लिया जाता है. जब एक सेमेस्टर के विद्यार्थी अपनी क्लास में होते हैं, तो दूसरे अपनी बारी का इंतजार करते हैं. दिन भर में किसी खास सेमेस्टर का दो-तीन क्लास ही हो पाता है.
शनिवार को ही सिविल के दो छात्र दिन के 12 बजे क्लास शुरू होने का इंतजार कर रहे थे, पर शिक्षक नहीं थे. उधर, कंप्यूटर लैब का एकमात्र एसी भी खराब है. विशेष कक्षा के लिए खुले पांच-छह क्लास रूम देख कर लगता था कि यहां कई दिनों से झाड़ू भी नहीं लगा है. प्राचार्य ने बताया कि यहां पूरे संस्थान के लिए सिर्फ एक स्वीपर है. पॉलिटेक्निक की यह हालत तब है, जब इसे वल्र्ड बैंक की स्कीम टेक्निकल एजुकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम (टेकिप) के पहले चरण (वर्ष 2005-09) के दौरान पठन-पाठन की आधारभूत संरचना निर्माण व सुदृढ़ीकरण के लिए 92 लाख रुपये मिले थे.
एक हजार बच्चे पर 12 शिक्षक
संस्थान में करीब एक हजार लड़के पढ़ते हैं. पढ़ाने के लिए 36 शिक्षक चाहिए, पर हैं सिर्फ 12. शेष 17 पार्ट टाइम टीचर हैं. वहीं कुल सृजित 93 गैर शैक्षणिक पदों के विरुद्ध सिर्फ 46 कार्यरत हैं. लाइब्रेरी में आज के समय के लिहाज से अप्रासंगिक किताबें ज्यादा हैं. वहीं प्रयोगशाला (खास कर भौतिकी) में आदम जमाने के उपकरण हैं. लैब असिसटेंट इसका नाम भी नहीं जानते. अभी भौतिकी व रसायन प्रयोगशाला के सहायक तथा लाइब्रेरियन एक ही आदमी है. वह किस अंदाज में काम करता होगा, यह समझा जा सकता है.
अतिक्रमण हटा, पर परिसर जस का तस
संस्थान परिसर का अतिक्रमण कर बनी बस्ती इस्लाम नगर को हटाया तो गया, पर परिसर का कैंपस बनाने के लिए दिये गये 49 लाख रुपये आज भी बेकार पड़े हैं. बाहरी लोगों के कारण बिगड़े इस माहौल को अपने लोगों (विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग तथा सरकार) ने और बिगाड़ दिया है. यहां पढ़ना अपना भविष्य बिगाड़ना है.

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