नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी (आप) की एक कार्यकर्ता की शिकायत पर पार्टी नेता कुमार विश्वास को दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की ओर से जारी सम्मन पर स्थगन लगाने से आज इनकार कर दिया. इस महिला का आरोप है कि विश्वास उसके अवैध संबंध संबंधी अफवाहों का खंडन नहीं कर रहे हैं जिससे उसकी जिंदगी बर्बाद हो गयी है.
हालांकि न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने सम्मन पर रोक लगाने की विश्वास की अर्जी पर दिल्ली महिला आयोग, उसकी अध्यक्ष बरखा सिंह और आप की महिला कार्यकर्ता को नोटिस जारी किये.
अदालत ने कहा, ‘‘डीसीडब्ल्यू, प्रतिवादी 3 (बरखा सिंह) को नोटिस जारी किया जाए. मिस एक्स (आप कार्यकर्ता जिसने आयोग में शिकायत की है) को भी नोटिस जारी किया जाए. ’’ अदालत ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को प्रतिवादियों को नोटिस के साथ याचिकाकर्ता (विश्वास) की याचिका की प्रति भी संलग्न करने का निर्देश दिया.
विश्वास द्वारा पक्षकारों की संशोधित सूची दाखिल करने के बाद अदालत ने ये नोटिस जारी किए. इस सूची में दिल्ली सरकार भी शामिल है. अदालत ने सूची में संशोधन का निर्देश दिया था.
न्यायमूर्ति शकधर ने आज विश्वास के वकील सोमनाथ भारती को उपयुक्त प्रक्रिया का पालन करते हुए आवेदन के साथ पक्षकारों की नई सूची दाखिल करने का निर्देश दिया.
अदालत में मौजूद दिल्ली सरकार के वकील रमण दुग्गल ने कहा कि इस मामले में सरकार को बतौर पक्षकार जरुरत नहीं है. इसके बाद अदालत ने इस मामले से दिल्ली सरकार को बतौर पक्षकार हटा दिया. विश्वास के वकील इस मामले में उसकी मौजूदगी को सही नहीं ठहरा पाए थे.
अदालत ने विश्वास के इस अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया कि सम्मन पर रोक लगायी जाए. दालत ने कहा कि पहले प्रतिवादियों को अपने जवाब के साथ आने दीजिए, उसके बाद वह उस पर गौर करेगी.न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, ‘‘नहीं, मैं इस चरण में सम्मन पर रोक नहीं लगाउंगा.’’ इसके बाद अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख एक जुलाई तय की.
सुनवाई के दौरान अदालत ने भारती द्वारा बिना आवदेन के पक्षकारों की संशोधित सूची दायर करने पर नाराजगी प्रकट की और कहा, ‘‘पहले आपको केस प्रस्तुत करना है. प्रक्रियागत पहलू का पालन होना है. ’’
डीसीडब्ल्यू में महिला की शिकायत के बारे में बताए जाने पर न्यायमूर्ति शकधर ने कहा कि जब वह कानून के मुताबिक आगे बढेंगे तब सभी पहलुओं को सुनेंगे. अदालत कक्ष में मीडिया की मौजूदगी का भारती द्वारा जिक्र करने पर अदालत ने कहा, ‘‘बाहर जो कुछ हो रहा है, उससे आपको दबाव में नहीं आना चाहिए. यह सार्वजनिक सुनवाई है. ’’ अदालत का मत था कि याचिका में त्रुटि है और उसने कहा कि आप कार्यकर्ता को इस मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए था क्योंकि उसकी ही शिकायत पर सम्मन जारी किया गया है.
सम्मन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए अदालत ने शिकायतकर्ता की मौजूदगी के बगैर इस चरण में कोई राहत नहीं दी जा सकती है.