II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : तनु वेड्स मनु रिटर्न्स
निर्माता : एरोज और येलो पेपर प्रोडक्शन हाउस
निर्देशक : आनंद एल राय
कलाकार: कंगना रनौत,आर माधवन,दीपक डोब्रियाल, स्वरा भास्कर,जिम्मी शेरगिल और अन्य
रेटिंग: साढ़े तीन
सीक्वल फिल्मों के इस दौर में चार साल पहले रिलीज़ हुई आनंद एल राय की फ़िल्म ‘तनु वेड्स मनु’ का सीक्वल ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ ने दस्तक दी है.पिछली फ़िल्म की कहानी जहाँ खत्म हुई थी.सीक्वल की कहानी वही से शुरू होती है.तनु और मनु की शादी से. छोटे शहर पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी का यह सीन बहुत ही रीयलिस्टिक अंदाज़ में नज़र आता है.
उत्तर भारत का देशी अंदाज़ इस सीन ही नहीं पूरी फ़िल्म में पिरोया गया है. कहीं सवांद के माध्यम से तो कहीं गीतों में. परकटी, झंड सहित कई शब्द जो अब तक घर में ही सुने थे.इस फ़िल्म के सवांद और गीत का अहम् हिस्सा हैं. इस बार कहानी में हरियाणा भी अहम् है.जिस वजह से कानपुर के साथ साथ हरियाणा का रंग ढंग भी कहानी में रोचकता से पिरोये गए हैं.
खाप पंचायत से लेकर महिलाओं की स्थिति,जात पात सभी को सतही तौर पर ही सही लेकिन छुआ गया है. कहानी पर आते हैं. शादी होते ही पलक झपकते चार साल बीत जाते हैं .तनु और मनु को आप लंदन के मनोचिकित्सक के पास मिलते हैं.जिससे बात समझ आ जाती है कि इनकी शादी में अब सबकुछ ठीक नहीं रहा है.मनु को लंदन के पागलखाने में छोड़कर तनु अपने पिता के घर कानपुर चली आती है.फिर कहानी में दत्तो यानि कुसुम सांगवान की एंट्री होती है.
हरियाणा की एक लड़की जो एथलिट बनने का सपना देखती है. मनु को उसको देखते ही प्यार हो जाता है. कहानी जिसके बाद लव ट्रायंगल बन जाती है. क्या तनु को छोड़ कुसुम के साथ मनु अपनी ज़िन्दगी की नयी शुरुवात करेंगे.क्या होगा तनु का.फ़िल्म का ट्रीटमेंट एकदम लाइट और हुयमर् लिए हुए है.
जिस वजह से शुरू से अंत तक फ़िल्म आपको गुदगुदाती रहती है.इमोशनल लेवल पर यह फ़िल्म ज़रूर कमज़ोर है. हाँ फ़िल्म में एक ही चेहरे को लेकर बहुत ही अलग ढंग से लव ट्रायंगल की संरचना की गयी है फिर भी मनु का कुसुम से शादी करने का फैसला फिर तनु को शादी में देख तनु के लिए फिर से प्यार जग का जग जाना थोडा अटपटा सा लगता है.
फ़िल्म फर्स्ट हाफ जितनी रोचकता से कहानी को बढाती है सेकंड हाफ में कमज़ोर हो जाती है. अभिनय की बात करे तो इस फ़िल्म की आत्मा कंगना का बेजोड़ अभिनय है.तनुजा और कुसुम के किरदार को उन्होंने पूरी आत्मीयता और संजीदगी से निभाया है जिससे पर्दे पर एक से दिखने वाले कुसुम और तनूजा के किरदार में जमीं आसमान का अंतर नज़र आता है. बोलने से लेकर चलने तक सभी कुछ में.आर माधवन ने भी अच्छा अभिनय किया है.
चेहरे पर गंभीरता के भाव लेकर उनका वन लाइनर लोटपोट कर देते हैं.दीपक डोब्रियाल परदे पर जब भी नज़र आते हैं.हँसी आने लगती है. स्वरा भास्कर और जिम्मी लिए इस बार करने को कुछ खास नहीं था.जिशान,नवनीत परिहार सहित हर किरदार ने अपना रोल बखूबी निभाया है.इस फ़िल्म की यूएसपी इसका गीत संगीत है. कहानी के साथ बहुत खूबसूरती से इन्हें बुना गया है.
टाइमपास के लिए कोई भी गीत नहीं है. कहानी के साथ उनका गहरा रिश्ता नज़र आता है.कई बार वो कहानी को आगे बढ़ाते भी दिखते है बेवजह ठूंसे नज़र नहीं आते हैं. फ़िल्म का अन्य पक्ष भी अच्छे हैं.कुछ खामियों को छोड़ कर यह एक एंगेजिंग और एंटरटेनिग फ़िल्म है.