यह आलोचना सही नहीं है कि मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था से संबंधित नीतिगत कदम नहीं उठाया है या देश की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं है. नीति आयोग की स्थापना, राज्यों को अधिक वित्त उपलब्ध कराना और अनेक केंद्रीय योजनाओं को राज्यों को देना ठोस नीतिगत पहलें हैं. इसी तरह, जीडीपी में वृद्धि, मुद्रास्फीति में कमी, चालू घाटे में कमी तथा निवेश में कुछ बेहतरी आदि सकारात्मक संकेत हैं. लेकिन, वित्त मंत्री द्वारा सरकार की खामियों की आलोचनाओं को सिरे से नकार देना सही नहीं कहा जा सकता है. कई जानकारों ने आर्थिक मोर्चे पर चिंताएं जतायी हैं जिनमें प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी और सरकार के समर्थक व शुभचिंतक भी शामिल हैं.
यह तर्क भी सही है कि आर्थिक मोर्चे पर नीतियों के परिणाम आने में समय लगता है, पर कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनका प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा है. निर्यात और वित्तीय संस्थाओं द्वारा निवेश में कमी बड़ी चिंता का कारण हैं. औद्योगिक विकास और रोजगार-सृजन नकारात्मक रहे हैं. कृषि-संकट गंभीर है. आम जनता की आय बढ़ने और मंहगाई में कमी के संकेत नहीं हैं. आशा के आकाश में निराशा के बादल घुमड़ने शुरू हो गये हैं. सरकार को आलोचनाओं के प्रति सचेत रवैया अपनाना चाहिए. उम्मीद है कि सरकार और वित्त मंत्री जेटली आगामी वर्ष में सुधार कार्यक्र म जारी रखते हुए अर्थव्यवस्था को बेहतरी की ओर ले जायेंगे तथा हकीकत की जमीन पर अच्छे नतीजे देखने को मिलेंगे.