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संदर्भ ग्लोबल टाइम्स का आलेख : नरेंद्र मोदी की कूटनीति से बढ रही है चीन की पीडा!
इंटरनेट डेस्क भारत और चीन के राष्ट्र प्रमुख लगभग आठ महीने बाद एक बार फिर एक दूसरे से द्विपक्षीय वार्ता करेंगे. फर्क यह होगा कि इस बार मेजबान चीन होगा और वार्ता की जमीन महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की भूमि नहीं होगी, बल्कि माओ त्से तुंग की भूमि चीन होगी. प्राचीन विश्व की दो […]
इंटरनेट डेस्क
भारत और चीन के राष्ट्र प्रमुख लगभग आठ महीने बाद एक बार फिर एक दूसरे से द्विपक्षीय वार्ता करेंगे. फर्क यह होगा कि इस बार मेजबान चीन होगा और वार्ता की जमीन महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की भूमि नहीं होगी, बल्कि माओ त्से तुंग की भूमि चीन होगी. प्राचीन विश्व की दो महान सभ्याताओं, जिनके बीच सदियों से गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक रिश्ते रहे हैं, वे आज परस्पर अविश्वास की दलदली जमीन पर खडे होकर एक दूसरे को गले मिलने और मित्र जैसा दिखने की कोशिश कर रहे हैं. यह दोनों देशों की कूटनीतिक आवश्यकता भी है और इसी नीति को कूट-नीति भी कहते हैं.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ महीने बाद जब चीनी राष्ट्रपति शि जिनपिंग भारत आये तो मोदी ने अपने गृहनगर व गांधी की भूमि अहमदाबाद में 17 सितंबर 2014 को जोरदार स्वागत किया. मोदी उन्हें शांति और सौहार्द्र का संदेश देने के लिए गांधी के साबरमती आश्रम में ले गये, उनके साथ सूत भी काता और उसकी माला भी पहनायी. पर, तब भी नरेंद्र मोदी ने चीन से दो टूक शब्दों में स्पष्ट कर दिया था कि आपसी सहयोग व बेहतर संबंध के लिए सीमा विवाद को सुलझाना जरूरी है.
मोदी का चीन दौरा और उनका विश्वास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चीन दौरे से पूर्व सौहर्द्रपूर्ण संदेश दिया है. उन्होंने कहा है कि उन्हें चीन यात्रा का बहुत दिनों से इंतजार था. सरकार बनने के बाद वे राष्ट्रपति शी से मिले थे और गर्मजोशी से उनका स्वागत किया था. उन्होंने कहा है कि उनकी यह यात्रा न सिर्फ भारत चीन के रिश्तों को आगे बढायेगी, बल्कि पूरे एशिया और दुनिया के विकासशील देशों के संबंधों को भी आगे बढाने वाला साबित होगा. उन्होंने कहा है कि आपसी संबंधों को मजबूत करना समय की मांग है. प्रधानमंत्री ने चीनी मीडिया से कहा है कि हमें मिल कर विश्व में शांति व विकास को आगे ले जाना है. उन्होंने एशिया को बुद्ध की धरती बताते हुए यह भी विश्वास जताया है कि भारत व चीन के रिश्ते और भी मजबूत होंगे. प्रधानमंत्री मोदी 14 से 16 तक चीन में रहेंगे. उसके बाद वे वहां से मंगोलिया व दक्षिण कोरिया की यात्रा पर जायेंगे.
ग्लोबल टाइम्स का आकलन व यथार्थ
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा संचालित वहां के अखबार ग्लोबल टाइम्स में शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के हू झियोंग ने कैन मोदी विजिट अपग्रेड सिनो इंडियन टाइज शीर्षक से अपने लेख में लिखा है कि दोनों देशों का इतिहास बेहद कटु रहा है और दोनों देशों के बीच अविश्वास भी काफी है. इसे ठीक किए बिना दोनों देशों के बीच वास्तविक रणनीतिक विश्वास कायम रख पाना मुश्किल है. लेख में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक लाभ के लिए चालें चलते हैं. दलाईलामा को समर्थन देने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अरुणाचल यात्रा पर भी उसे आपत्ति है. उसकी दलील है कि अरुणाचल विवादित क्षेत्र है. दरअसल, यह धृष्टता चीन का स्वभाविक गुण है. हू झियोंग के इस आलेख से पूर्व भारत के शीर्ष पत्रकार-विचारक व अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भारत की घरेलू व वैश्विक नीति को तय करने में अहम योगदान देने वाले अरुण शौरी का भी इंडियन एक्सप्रेस में एक साक्षात्कार छपा, जिसमें उन्होंने चीन की धृष्टता का ऐतिहासिक प्रसंगों के हवाले से उल्लेख किया और रिश्तों को नया तेवर देने की कवायद के बावजूद सरकार को सावधान रहने की सलाह दी. उन्होंने यह भी सलाह दी कि हमें सीमा विवाद को हल करने में जल्दबादी नहीं दिखानी चाहिए. इस साक्षात्कार का हिंदी अनुवाद प्रभात खबर ने भी प्रकाशित किया. जाहिर है, चीन में भी भारत के उस विचारक व राजनेता जो सत्ताधारी पार्टी व विचारधारा से ही आता हो, के चिंतन व सोच की प्रतिक्रिया तो होती ही होगी.
यानी स्पष्ट है कि भारत और चीन नये वैश्विक परिदृश्य में परस्पर मैत्री संबंध स्थाापित करने की जरूरतों को तो महसूस करते हैं, लेकिन यह भी मानते और जानते हैं कि दोनों स्वाभाविक प्रतिद्वंद्वी है, दुनिया की महाशक्ति बनने की दोनों की महत्वकांक्षाएं हैं, दोनों की अपनी संभावनाएं और अपनी सीमाएं हैं.
बौखलाहट की वजह
चीन के थिंक टैंक, जिनका वहां के सत्ता प्रतिष्ठान के फैसलों व सोच पर गहरी छाप होती है कि इस बौखालाहट की स्वाभाविक वजहें हैं. नरेंद्र मोदी के रायसीना हिल पर स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में पहुंचने के बाद घरेलू व वैश्विक मंच पर उनकी जिस कोशिश को उनकी अहम उपलब्धि बतायी जा रही है, वह है उनकी बहुस्तरीय विदेश नीति. मोदी ने अमेरिका, जापान व यूरोपीय देशों से अपने रिश्तों को मजबूत करने पर जोर दिया. हू झियोंग ने अपने आलेख में इसका उल्लेख किया है कि मोदी इन देशों से संबंधों को मजबूत कर अपने देश की आधारभूत संरचना को दुरुस्त करना चाहते हैं. जब जापान ने पूर्वोत्तर भारत में आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने में भारत को सहयोग का एलान किया, तब बौखालाये चीन की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आयी थी. चीन को भारत, अमेरिका व जापान की मित्रता सुहाती नहीं, यह पीडा की झलक तब भी मिलती है, जब चीनी राष्ट्रपति आतंकवाद ग्रस्त पाकिस्तान पहुंच कर कहते हैं कि यहां आने अपने भाई के घर आने जैसा है. बहरहाल, हू झियोंग के आलेख पर एक टीवी चैनल को प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय कूटनीतिज्ञ विवेक काटजू ने कहा है कि यह वास्तविकता है और उससे नजर नहीं मोडना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहूंगा कि मोदी जी वास्तविकता से दूर हैं. वे जानते हैं कि इस दौरे के समय वे कोई ऐसा शब्द न कहें, जिससे कटुता आये. काटजू साहब का भी मानना है कि हमारी सरकार को यथार्थवादी होना चाहिए और उसे वास्तविकता पर नजर रखनी चाहिए.
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