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तो कभी मां को सास में बदलते देखा है आपने!

अजीत पांडेय प्रभात खबर, रांची मां तो मां होती है. ममतामयी मां की कोई बराबरी नहीं कर सकता. लेकिन क्या आपने मां को सास बनते देखा है. अपनी चीज (लड़का) को कोई बंटते हुए देख सकता है भला. मां को लगता है कि शादी के बाद बेटा बहू के प्रभाव में आकर कहीं मेरी उपेक्षा […]

अजीत पांडेय

प्रभात खबर, रांची

मां तो मां होती है. ममतामयी मां की कोई बराबरी नहीं कर सकता. लेकिन क्या आपने मां को सास बनते देखा है. अपनी चीज (लड़का) को कोई बंटते हुए देख सकता है भला. मां को लगता है कि शादी के बाद बेटा बहू के प्रभाव में आकर कहीं मेरी उपेक्षा न करने लगे.

यह असुरक्षा कभी-कभी इतनी बढ़ जाती है कि कोमल हृदयवाली मां कठोर निर्मम सास बन जाती है. पहले दिन से ही बहू को चहेंटे (हावी) रहती है. कहीं मेरे लाल पर इसका जादू न चढ़ जाये. मैंने अपने 30 साला जीवन में कभी सास और बहू के बेहतरीन रिश्ते नहीं देखे हैं.

जहां लायक और ममतामयी सास है भी तो वहीं बहू महा नालायक होती है और सास का शोषण करती रहती है. यह अलग है कि सास की ढलती उम्र के साथ बहू बलवान और प्रभावशाली होती जाती है. पहले का हिसाब-किताब चुकता करती रहती है. सास बहू का यह रिश्ता तो खैर उलझन भरा होता ही है. 100 में से 90 मामले मधुर नहीं रहते हैं.

सास बहू के रिश्तों के पाट में बेटे (पति) की वह दुर्गति होती है कि वही जानेगा जो भुक्तोभोगी होगा, या मेरा यह लेख पढ़ेगा. बेटे की दशा इतनी दयनीय हो जाती है कि वह मां से कभी भी खुल कर कुछ कह नहीं पाता. जहां एक शब्द बोला तो प्रति उत्तर में यही सुनने को मिलेगा. हां, अब तो बोलोगे ही जब से शादी हुई है तब से तुम्हें सारी कमियां मुझमें ही दिखती हैं. वहीं पत्नी भी ताना मारती है कि कब अपनी मां के आंचल से आजाद होगे.

कहते हैं कि औरत का हृदय सबसे कोमल होता है. लेकिन औरत का हृदय तब कछुए की पीठ से भी कठोर हो जाता है जब मन में असुरक्षा घर कर जाती है. महिलाओं में विरोधाभास बहुत खतरनाक होता है. बहू कभी भी सास को मां नहीं मान सकती है वहीं मां को हमेशा यह डर सताता है कि मेरे घर में मुङो दबा कर मेरे सारे अधिकार छीन लेगी और तिनका-तिनका जोड़ कर बनाये मेरे घर पर वह अपना मनमाना राज चलायेगी.

इसी गम में वह दुबली हुई जाती है. वहीं बहू को सास खलनायिका और अपनी मां देवी लगती है. छुट्टियां बिताने आयी बेटी घर में चाहे जैसे रहे, लेकिन बहू के सिर से पल्लू उतर भर जाये तो खैर नहीं (कम से कम पूर्वाचल और बिहार के मध्यवर्ग में तो ऐसा ही है.)

अंत में मन की बात कहूं. लोग जुमले गढ़ते हैं कि जोड़ियां स्वर्ग से बन कर आती हैं. पर मैं तो ऐसा नहीं मानता. अगर ऐसा होता तो दहेज हत्या क्यों होती. विवाहिता प्रताड़ना के मामले क्यों सामने आते. पत्नियों के जुल्म से पीड़ित पतियों की भी संख्या नहीं के बराबर होती.

तलाक के मामले भी सामने नहीं आते. मेरा तो टूटे रिश्तों के बारे में सीधा-सा सोचना है जब दो लोग साथ रह खुश नहीं हैं तो कोई जरूरत नहीं साथ रहने की. साथ रह कर पूरे जीवन भर कष्ट भोगने से अच्छा है, अलग रहें. खुश रहने की गारंटी तो नहीं लेकिन कम से कम दुखी तो नहीं रहेंगे. जरूरी नहीं कि आप मेरी बात से सहमत ही हों. पर, बहुत लोग सहमत भी होंगे.

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