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पुराने घाव ठीक करता है गंभारी
गंभारी : यह मझोले आकार का वृक्ष है. यह झारखंड व बिहार में मिलता है. खास कर संथाल परगना के पहाड़ी क्षेत्रों में यह पाया जाता है. औषधीय गुण : पत्तों का स्वरस शांति देनेवाला है. स्वरस से सूजाक के घाव को धोने से लाभ मिलता है. यह पुराने घाव एवं अल्सर के कीड़े मारने […]
गंभारी : यह मझोले आकार का वृक्ष है. यह झारखंड व बिहार में मिलता है. खास कर संथाल परगना के पहाड़ी क्षेत्रों में यह पाया जाता है.
औषधीय गुण : पत्तों का स्वरस शांति देनेवाला है. स्वरस से सूजाक के घाव को धोने से लाभ मिलता है. यह पुराने घाव एवं अल्सर के कीड़े मारने में भी सक्षम है. छाल से तैयार काढ़े से बिच्छू के काटे हुए स्थान को धोने से लाभ मिलता है.
चमेली : इसे वनमाली भी कहते हैं.प्राप्ति स्थान : यह समूचे झारखंड व बिहार में पाया जाता है. विशेष कर पथरीली जगहों पर ही उगता है.
औषधीय गुण : इसका पत्ता कीड़े- मकोड़े को भगाने के काम में आता है. इसका प्रयोग टॉनिक के रूप में भी होता है. इसका तेल पूजा-पाठ एवं बालों मे लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है. इसके पतों के रस को वमनकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी पत्तियों का स्वरस पीपर व लहसून के साथ मिला कर लेने से उल्टी हो जाती है. पेट से विष को निकालने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है.
पटोली : इसे क्षेत्रीय भाषा में गारा सिकर, पटोली भी कहते हैं.
प्राप्ति स्थान : यह मुख्य रूप से झारखंड के सिंहभूम इलाकों में पाया जाता है.
औषधीय गुण : यह डायबिटीज की कारगर दवा है. पके हुए फल शूगर कंट्रोल करते हैं. इसके बीजों में नशा है. इसलिए इसका प्रयोग न करें. इसकी छाल के पत्ताें का काढ़ा पेट साफ करता है.
(आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ कमलेश प्रसाद से बातचीत)
धूप से होता है
पॉलीमॉर्फिक
लाइट इरप्शन
डॉ क्रांति
एचओडी स्किन एंड वीडी डिपार्टमेंट, आइजीआइएमएस, पटना
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