गरमियां शुरू होते ही आंखों की परेशानी बढ़ जाती है. इस मौसम में धूल, धूप और एलर्जी आंखों की प्रमुख समस्याएं हैं. इनके कारण आंखों में चुभन, जलन होना आम है. इस मौसम में जैसे शरीर की देखभाल और डायट का विशेष ध्यान रखना जरूरी है, वैसे ही आंखों की सुरक्षा भी अहम है.
कैसे चुनें सनग्लास
यहां पर ब्रांड को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है. सनग्लास ऐसा होना चाहिए, जो पूरी आंख को कवर करे. लाइट वेट ग्लास हो और साथ ही स्क्रेच फ्री भी होना चाहिए. साधारण चश्मा न लें.
यूवी प्रोटेक्शन :
किसी ऑप्टिकल शॉप पर जाकर अच्छे यूवी प्रोटेक्शन की मांग करें. अल्ट्रावायलेट रेज न सिर्फ स्किन को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि आंखों के लेंस और कॉर्निया को भी नुकसान पहुंचाती हैं. जब भी सनग्लास खरीदें, इस बात खास ध्यान रखें कि चश्मे का लेंस ब्लॉक 99 प्रतिशत या 100 प्रतिशत यूवीबी और यूवीए रेज का हो. सनग्लास को रोज पहनने की आदत डालें. इसके अलावा बच्चों को जब भी बाहर लेकर जाएं, तो उन्हें बिना सनग्लास के बाहर न ले जाएं.
साइज पर ध्यान दें :
सनग्लास खरीदते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसकी साइज बड़ी हो, ताकि यह स्किन का ज्यादा एरिया कवर करे. चिक बोन तक सनग्लास आये तो यह आंखों के लिए बेहतर होता है. इसके अलावा फिटिंग पर भी ध्यान जरूर देना चाहिए. लेते वक्त यह देख लें कि नाक और कान पर बिना किसी तकलीफ के फिट हो, न ज्यादा ढीला हो और न अधिक टाइट हो.
कैटेरेक्ट का खतरा
यह समस्या अधिकतर लोगों को 60 साल के बाद होती है. फिर भी जो सनग्लास पहनने में लापरवाही करते हैं, उन्हें इस दिक्कत का सामना पहले भी करना पड़ सकता है. यूवी रेज के लगातार प्रभाव में आने से आंखों में प्रॉब्लम आती है. यदि इससे डिफेक्टविजन होता है, तो सजर्री करानी पड़ती है और लेंस लगाना पड़ सकता है.
स्वीमिंग के लिए चश्मे
बच्चे-बड़े हर कोई इस मौसम में स्वीमिंग, साइकिलिंग या कैंपिंग करते हैं. तेज धूप, धूल, मिट्टी और प्रदूषण से आंखों का लाल और उनमें चुभन होना आम बात है. आंखों को न मलें. तत्काल ठंडे पानी से धोएं. स्वीमिंग के लिए भी विशेष चश्मे आते हैं. इनके प्रयोग से पानी की गंदगी से आंखों को बचाया जा सकता है.
प्लास्टिक के चश्मे से होती है एलर्जी
छोटे-छोटे कीड़े यदि आंखों में चले जाएं, तो एलजिर्क कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस हो सकता है. बचाव के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें. धूल-आंधी या धूप से बचने का अच्छा उपाय सनग्लास पहनना है.
चश्मा बड़ा होना चाहिए ताकि आंखें पूरी तरह कवर हो सकें. चश्मा ब्रांडेड होना चाहिए, क्योंकि साधारण चश्मे में मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता. यदि सनग्लास प्लेन है, तो पूरा प्लेन होना चाहिए. यदि पावरवाला हो, तो पूरे ग्लास में एक्यूरेट पावर होना चाहिए. चश्मे में स्फेरिकल एवरेशन या क्रोमेटिक एवरेशन न हो. यदि ये सही नहीं होंगे, तो आंखों की मांसपेशियों में थकान और सिरदर्द की समस्या होगी. बच्चे अक्सर प्लास्टिकवाले चश्मे पहनते हैं. यदि यह अच्छी क्वालिटी का नहीं है, तो आंखों की त्वचा में एलर्जी हो सकती है. अत: अच्छी क्वालिटी का चश्मा लें.
बातचीत : अजय कुमार
आंखों में आ सकता है पीलापन
कई बार गरमी में आंखें पीली भी हो जाती हैं. लेकिन यहां यह भी ध्यान रखने की जरूरत होती है कि यह समस्या लिवर रोग से भी हो सकती है. यह पीलिया भी हो सकता है. अत: जांच करा कर उपचार कराएं.
स्वीमिंग के दौरान रखें खास ख्याल
अगर स्वीमिंग पूल में जाते हैं, तो स्वीम ग्लास जरूर पहनें. इसके अलावा इन्फेक्शन से बचने के लिए पूल से आने के बाद साफ और ठंडे पानी से आंखों को जरूर धोना चाहिए. स्वीम ग्लास को छूने के पहले हाथ को साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए.
– यदि आप एसी रूम में बैठते हैं, तो ध्यान रखंे कि एसी की हवा डायरेक्ट आंखों के सामने न हो. इससे आंखों में सेंसिटिविटी और सूखापन हो सकता है.
– आंखों का व्यायाम भी करना चाहिए. आंखों को बंद करें और पुतलियों को क्लॉकवाइज व एंटीक्लॉकवाइज घुमाएं.
डायट : ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीएं.
इससे आंखों की नमी भी बरकरार रहेगी. फ्रूट जूस और पत्तेदार सब्जियां जरूर खाएं. विशेषकर गाजर और पपीता को डायट में शामिल करने से आंखों की सेहत बनी रहेगी.
बातचीत व आलेख : दीपा श्रीवास्तव, बेंग्लुरु
यूवीए, यूवीबी और यूवीसी में क्या है अंतर
क्या है अल्ट्रावायलेट रेडिएशन?
अल्ट्रावायलेट किरणों सूर्य प्रकाश का ही हिस्सा हैं, जो धरती तक पहुंचती हैं. यूवी रेडिएशन अदृश्य होते हैं. ये तीन प्रकार के होते हैं- यूवीए, यूवीबी और यूवीसी. ‘ए’ से ‘सी’ तक इसके वेवलेंथ में कमी आती है, लेकिन तीव्रता बढ़ती है. यानी यूवीए कम और यूवीसी त्वचा को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं. सिर्फ यूवीए और यूवीबी किरणों ही धरती तक पहुंचती हैं, जबकि यूवीसी किरणों वायुमंडल द्वारा रोक दी जाती हैं. ब्रॉड स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन क्रीम को लगा कर इनके प्रभाव को रोका जाता है.
यूवीए (अल्ट्रावायलेट-ए)
– इसकी 95} किरणों धरती की सतह तक पहुंचती हैं.
– इनका प्रयोग टैनिंग बेड में किया जाता है.
– ये त्वचा की भीतरी सतह तक पहुंचती हैं.
– इन किरणों से त्वचा को कुछ हद तक नुकसान पहुंचता है.
– इसके कारण त्वचा में झुर्रियां पड़ सकती हैं.
– ये किरणों बादलों और शीशे की खिड़कियों के पार जा सकती हैं. अत: सनस्क्रीन क्रीम का प्रयोग जरूर करें.
यूवीबी (अल्ट्रावायलेट-बी)
– ये किरणों त्वचा की सबसे ऊपरी परत को प्रभावित करती हैं.
– अधिकतर सनबर्न इन्हीं के कारण होते हैं.
– इन्हीं किरणों से स्किन कैंसर का होता है खतरा.
– ये डीएनए को डैमेज कर देती हैं.
– ये 15 मिनट में ही त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
यूवीसी (अल्ट्रावायलेट-सी)
– अत: इससे धरती पर स्किन कैंसर का कोई खतरा नहीं है.
– ये किरणों मानव निर्मित यूवी मशीनों में जैसे-मरकरी लैंप, वेल्डिंग टॉर्च में भी होती हैं.
– इनका प्रयोग पहले टैनिंग बेड में भी किया जाता था.