रघुवर सरकार झारखंड में विकास को पटरी पर लाने के लिए लगातार प्रयासरत है. राज्य में पहली बार सरकार को रेल से लेकर बिजली और तमाम अन्य मूलभूत ढांचों को दुरुस्त करने की चिंता है.
वर्षो से सफेद हाथी बने पतरातू थर्मल पावर (पीटीपीएस) को एनटीपीसी को सौंपने का निर्णय भी शायद इसी क्रम में लिया गया है. जाहिर है पीटीपीएस की स्थिति सुधरेगी, तो राज्य बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेगा. वहीं सरकार ने 12 कोल परियोजनाओं को लेकर, कोयला मंत्रलय और रेल मंत्रलय के साथ त्रिपक्षीय करार किया है.
अब ये तीनों मिल कर ज्वाइंट वेंचर के तहत काम करेंगे. इसके तहत टोरी-शिवपुर लाइन न्यू बीजी लाइन, शिवपुर-कठोतिया न्यू बीजी लाइन, मगध रेलवे साइडिंग, आम्रपाली रेलवे साइडिंग, संघमित्र रेलवे साइडिंग, पचरा रेलवे साइडिंग, नॉर्थ उरीमारी रेलवे साइडिंग, फुसरो-जारंगडीह रेल डायवर्सन वर्क, कोनार रेलवे साइडिंग,पिपराडीह रेलवे साइडिंग, कुजू रेलवे साइडिंग व कथारा वार्फ वाल साइडिंग परियोजनाएं पूरी करनी हैं.
अगर ये परियोजनाएं समय पर पूरी हो गयीं, तो निश्चित रूप से राज्य में विकास दिखेगा. वर्षो से चली आ रही कोयले की ढुलाई की समस्या समाप्त होगी. साथ ही कई पैसेंजर ट्रेनों की सुविधा बढ़ेगी. ट्रेनों के बढ़ने से लोगों को आवागमन में सहूलियत होगी. इतना ही नहीं राज्य के लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिलेगा. कुल मिला कर देखा जाये, तो सरकार राज्य के विकास को लेकर चिंतित दिखती है. इन परियोजनाओं को मूर्तरूप देने में समय लगेगा. तत्काल सबकुछ बन जाये यह भी संभव नहीं है.
क्योंकि किसी भी परियोजना को शुरू करने और उसको पूरा करने के लिए कुछ प्रक्रियाएं होती हैं. इसलिए वाजिब है कि इसमें कुछ समय लगे. लेकिन एक बात तो साफ है कि जो भी हो रहा है, उसका असर आनेवाले दिनों में जरूर दिखेगा.
अब इसके साथ सरकार की जिम्मेवारी काफी बढ़ गयी है. अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां एमओयू तो हुए, लेकिन उन योजनाओं पर कभी अमल ही नहीं हुआ. और राज्य काफी पिछड़ गया. ऐसी स्थिति दुबारा न आने पाये, इसके लिए सरकार को पूरी मुस्तैदी से योजनाओं पर नजर रखनी होगी. उम्मीद है कि सरकार इस बार चौकस रहेगी भी.