मुख्यमंत्री का यह कार्यक्रम भले ही सरकारी रहा हो, लेकिन सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव के बाद अब तक बोर्ड गठन के लिए अधिसूचना जारी नहीं होने के कारण विरोधी मुख्यमंत्री के इस आगमन को कुछ अलग रूप में देख रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस की रणनीति से अन्य सभी दल आतंकित हैं. हाल में संपन्न सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव में उत्तर बंगाल विकास मंत्री गौतम देव के तमाम दावों के बीच तृणमूल कांग्रेस 47 सीटों में से मात्र 17 सीटें जीतने में ही कामयाब रही. स्वाभाविक तौर पर तृणमूल कांग्रेस बहुमत से काफी दूर है.
दूसरी ओर, वाम मोरचा ने 23 सीटें तो जीत ली हैं, लेकिन बहुमत के लिए एक सीट की कमी पड़ गयी. किसी को भी यहां स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं है. ऐसे में वाम मोरचा के अलावा तृणमूल ने भी यहां बोर्ड गठन के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दी है. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी अपने सिलीगुड़ी दौरे के दौरान सिलीगुड़ी में तृणमूल द्वारा बोर्ड गठन की संभावना तलाशेंगी. सिलीगुड़ी नगर निगम में बोर्ड गठन के लिए 24 सीटें चाहिए. वाम मोरचा के पास 23, कांग्रेस के पास 4, भाजपा के पास 2 तथा एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार की है. यदि कांग्रेस, भाजपा और निर्दलीय पार्षद तृणमूल कांग्रेस का समर्थन कर दें, तो वाम मोरचा के बोर्ड गठन का सपना धरा का धरा रह जायेगा. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री ने स्थनीय तृणमूल नेताओं को विरोधी दलों के पार्षदों के साथ बातचीत करने का निर्देश दे दिया है. उसके बाद से ही कांग्रेस, भाजपा तथा निर्दलीय पार्षद के साथ तृणमूल के जिला स्तर के नेता संपर्क साध रहे हैं. भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस पर अपने दोनों पार्षदों के साथ गुपचुप संपर्क साधने का आरोप लगाया है. भाजपा महासचिव नंदन दास ने कहा है कि कई तृणमूल नेताओं ने उनके दोनों पार्षदों से समर्थन देने की अपील की है. हालांकि उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि उनके दोनों पार्षद कहीं नहीं जायेंगी. एक नंबर वार्ड से भाजपा की मालती राय तथा आठ नंबर वार्ड से भाजपा की खुशबू मित्तल की जीत हुई है.
सूत्रों ने बताया है कि इन दोनों को तृणमूल कांग्रेस को समर्थन देने के लिए मनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री के इस आगमन को लेकर कांग्रेस की चिंता भी काफी बढ़ गयी है. इस बार नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की हालत काफी पतली हो गयी है. वर्ष 2009 में कांग्रेस की झोली में 15 सीटें आयी थीं लेकिन इस बार यह संख्या घटकर मात्र 4 रह गयी है. आने वाले दिनों में भी कांग्रेस की स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं है. ऐसे में भविष्य की ओर देखते हुए कांग्रेस पार्षद यदि तृणमूल में शामिल हो जायें या फिर उनका समर्थन कर दें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. यही सोच-सोच कर कांग्रेस के बड़े नेता परेशान हैं. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष शंकर मालाकार हालांकि इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार कर रहे हैं. एकमात्र विजयी निर्दलीय उम्मीदवार अरविंद घोष उर्फ अमू दा भी इस नये राजनीतिक समीकरण में अपना पत्ता नहीं खोल रहे हैं.
वाम मोरचा नेताओं ने हालांकि दावा किया है कि अमू दा उनका समर्थन करेंगे. दूसरी तरफ अमू दा का कहना है कि उन्होंने समर्थन के मुद्दे पर अभी कोई फैसला नहीं किया है. वाम मोरचा के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस ने भी उनसे समर्थन मांगा है. तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने उनसे मुख्यमंत्री के साथ बातचीत कराने का प्रस्ताव दिया है. वह इन सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श कर रहे हैं. दूसरी तरफ, तृणमूल कांग्रेस के अचानक सक्रिय होने और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एक सप्ताह के अंदर ही सिलीगुड़ी आगमन को लेकर वाम मोरचा नेता परेशानी में फंस गये हैं. 23 सीट जीतने के बाद वाम मोरचा को आसानी के साथ बोर्ड गठन कर लेने की उम्मीद थी. तृणमूल की सक्रियता से उनको अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है. हालांकि माकपा नेता तथा वाम मोरचा के मेयर पद उम्मीदवार अशोक भट्टाचार्य ऐसा नहीं मानते हैं. अशोक भट्टाचार्य का कहना है कि मुख्यमंत्री जीतनी भी कोशिश कर लें, बोर्ड वाम मोरचा का ही बनेगा. हालांकि उन्होंने तृणमूल कांग्रेस पर पार्षदों की खरीद-फरोख्त को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.