पिछले सप्ताह नेपाल में धरती डोली, मानो अपने अंदर की कई वर्षो से जमा क्रोधाग्नि निकाल रही थी जो हजारों लोगों को लील गयी. ऐसे कितने भूकंप आये और न जाने कितने आयेंगे. हमने तो शायद यह प्रण कर लिया कि जिस प्रकार पिछले भूकंपों से हमने नहीं सीखा, हम आगे भी नहीं सीखेंगे.
कुछ दिनों तक स्कूल की कक्षाओं में आपदा प्रबंधन के नाम पर औपचारिकताएं की जायेंगी. हो सकता है कि अखबारों और अन्य माध्यमों से कुछ जागरूकता फैलायी जाए और लोग अपने घरों की मजबूती पर कुछ ध्यान दें, किंतु कितने दिनों तक?
फिर ये बातें लोगों की याददाश्त से धूमिल हो जायेंगी. बहुत होगा तो हताहतों को श्रद्धांजलि दे दी जायेगी. यद्यपि कुछ लोग जान गये हैं कि भूकंप के साथ आंधी-पानी भी आ जाए, तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती है. लेकिन कुछ परिवर्तन की अपेक्षा बेमानी है.
प्रणव प्रकाश मिश्र, ई-मेल से