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हाई कोर्ट का गौमांस पर प्रतिबंध वाले महाराष्ट्र के कानून पर रोक लगाने से फिलहाल इंकार

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने गाय, बैल और भैंस के मांस को रखने, उसे लाने-ले जाने और उसके उपभोग पर प्रतिबंध लगाने वाले महाराष्ट्र के हालिया कानून के प्रावधानों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. इस कानून के अनुसार, इन जानवरों का वध महाराष्ट्र से बाहर करके यहां लाने पर भी यह प्रतिबंध […]

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने गाय, बैल और भैंस के मांस को रखने, उसे लाने-ले जाने और उसके उपभोग पर प्रतिबंध लगाने वाले महाराष्ट्र के हालिया कानून के प्रावधानों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. इस कानून के अनुसार, इन जानवरों का वध महाराष्ट्र से बाहर करके यहां लाने पर भी यह प्रतिबंध प्रभावी रहेगा.

न्यायाधीश वी एम कानाडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि जब तक गौमांस प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक इस कानून पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती. अंतिम सुनवाई 25 जून को होनी है.अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह चार सप्ताह के भीतर एक विस्तृत हलफनामा दायर करे. इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ताओं और पक्षकारों को इसके दो सप्ताह बाद प्रत्युत्तर दायर करने की अनुमति दी है.

पिछले माह लागू किया गया महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) कानून गाय, भैंस और बैलों के वध और इनके मांस को रखने एवं उसका उपभोग प्रतिबंधित करता है.गाय, भैंस और बैल का वध महाराष्ट्र के बाहर किए जाने पर भी इनके मांस को अपने पास रखने, उसे लाने-लेजाने या उसके उपभोग पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून की धारा 5 (डी) और 9 (ए) को चुनौती देते हुए तीन याचिकाएं दायर की गई थीं.

याचिकाओं के अनुसार, यह मांस के आयात पर प्रतिबंध लगाता है. इन याचिकाओं में कानून की इन धाराओं पर रोक लगाने की मांग की गई है.इसके साथ ही अदालत ने राज्य को निर्देश दिए हैं कि वह याचिकाओं के लंबित रहने तक या तीन माह तक उन व्यापारियों के खिलाफ कोई कडी कार्रवाई न करे, जिनके पास से गौमांस बरामद किया गया है या जो इसके परिवहन में शामिल रहे हैं.न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह कानून अचानक ही ले आया गया है और व्यापारियों को उनके उत्पादों को नष्ट करने का उचित समय भी नहीं दिया गया.’’

अदालत ने कहा कि ऐसे व्यापारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है लेकिन इससे आगे की कोई कार्रवाई याचिकाओं पर अंतिम फैसला हो जाने तक या तीन माह हो जाने (जो भी पहले हो) से पहले नहीं की जा सकती.अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि इस कानून के तहत राज्य में गौमांस पर प्रतिबंध जारी है, ऐसे में गाय, भैंस और बैल के वध के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है.

सावधानी बरतने की हिदायत देते हुए अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को किसी व्यक्ति के पास रखे गौमांस या किसी अन्य तरह के मांस का पता लगाने के लिए नागरिकों की निजता में दखल नहीं देना चाहिए.अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि गौमांस को अपने पास रखने या इसके परिवहन को प्रतिबंधित करने वाले कानून के प्रावधानों पर रोक नहीं लगाई जा सकती. हालांकि इस कानून के तहत उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है.

खंडीय पीठ ने कहा, ‘‘यदि व्यापारी खाद्य स्वच्छता एवं सुरक्षा के नियमों का पालन करते हैं, तो सरकार के पास ऐसा कोई अनिवार्य कारण नहीं है कि व्यापारियों को तर्कसंगत अवसर दिए बिना ही इस प्रतिबंध को लागू कर दिया जाए.’’ याचिकाकर्ताओं में से एक का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील ए.चिनॉय ने दलील दी थी कि उपभोग पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना किसी व्यक्ति के उसकी पसंद का भोजन चुनने के मूल अधिकार का उल्लंघन है.

चिनॉय ने दलील दी, ‘‘धारा 5 (डी) बेहद आक्रामक, कठोर और हस्तक्षेप करने वाली है. गौमांस को रखने और उसके उपभोग को संज्ञेय अपराध बनाने के पीछे कोई वास्तविक औचित्य नहीं है. सरकार को नागरिकों के अधिकारों में मनमाने ढंग से घुसपैठ नहीं करनी चाहिए.’’ चिनॉय ने कहा कि राज्य सरकार ने मांस के आयात के नियमन पर विचार तक नहीं किया है.

चिनॉय ने कहा, ‘‘भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा समेत पांच राज्यों में इन जानवरों के वध पर प्रतिबंध है लेकिन इनके आयात की अनुमति है. इन राज्यों में ऐसे मामलों में भावनाएं प्रभावी हो जाती हैं लेकिन फिर भी यह स्वीकार्य है.’’ महाधिवक्ता सुनील मनोहर ने हालांकि तर्क दिया कि गौमांस का उपभोग किसी नागरिक का मूल अधिकार नहीं है और राज्य सरकार अपनी पसंद का भोजन चुनने के किसी व्यक्ति के मूल अधिकार का नियमन कर सकती है.

उन्होंने तर्क दिया, ‘‘गौमांस खाना किसी नागरिक का मूल अधिकार नहीं है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सरकार इन अधिकारों को वापस नहीं ले सकती. राज्य का कानून किसी भी ऐसे जानवर के मांस के उपभोग का नियमन कर सकता है, जिसका उपभोग निंदनीय है. पशु संरक्षण कानून के तहत जंगली सुअर, हिरण और अन्य जानवरों के मांस के उपभोग पर प्रतिबंध है.’’

मनोहर ने आगे कहा कि यदि मांस को रखने पर प्रतिबंध लगाने वाली कानून की धारा 5 (डी) को हटा दिया जाता है तो कानून सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगा और इससे गौ संतति की रक्षा का इस कानून का लक्ष्य और उद्देश्य निष्फल हो जाएगा.

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