मलेरिया की रोकथाम के लिए किये जा रहे तमाम उपायों के बावजूद यह काबू से बाहर है. मुख्य कारण मच्छरों से रोग का मानव में और मानव से मच्छरों में प्रसारित होना है. एक भी संक्रमित मच्छर के रह जाने से मलेरिया का खतरा आपको छू सकता है. हमारे विशेषज्ञ बता रहे हैं उपाय.
मच्छरों को रोकने के कई उपाय अपनाये जाते हैं. इनसे मच्छर दूर तो भागते हैं, लेकिन ये हमारे लिए नुकसानदेह भी हैं. यहां प्रस्तुत हैं मच्छरों को भगाने के कुछ उचित उपाय, जो सामान्य तरीकों की तुलना में शरीर पर कम हानिकारक प्रभाव डालते हैं –
मच्छरदानी : यह सबसे पुराना और कारगर तरीका है. मच्छरदानी में सोने से मच्छरों द्वारा पैदा की जानेवाली बीमारियां लगभग 80 फीसदी तक कम हो जाती हैं.
बायोसाइड : बायोसाइड गंधरहित केमिकल होते हैं. पानी में मिला कर इसका घोल तैयार किया जाता है. इस घोल को घर के बाहर छिड़का जाता है. इससे घर में मच्छर प्रवेश नहीं करते. इसका असर भी 10-15 दिनों तक रहता है. इसका फायदा यह होता है कि इसके प्रयोग के बाद बार-बार स्प्रे करने की जरूरत नहीं पड़ती है. यह अन्य कीटों को भी नष्ट कर देता है. इसका प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है. इसके लिए विशेष इक्विपमेंट और कपड़े पहनने पड़ते हैं, अन्यथा इससे त्वचा को नुकसान हो सकता है. मच्छरों को दूर रखने में कुछ पौधे भी कारगर भूमिका निभाते हैं. शोध में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है. ये पौधे घर की खूबसूरती तो बढ़ाते ही हैं साथ ही घर को मच्छररहित भी बनाते हैं.
डॉ राजीव दुग्गल
कंसल्टेंट फिजीशियन अभियान वेलनेस सेंटर नयी दिल्ली
तुलसी : तुलसी घरों में शुभ मानी जाती है. यह मच्छरों को रोकने में काफी प्रभावी है. इसके पत्ताें को मसल कर त्वचा पर लगाने से मच्छर नहीं काटते.
गेंदा : यदि घर में गेंदे के दो-चार पौधों को लगाया जाये, तो निश्चित तौर पर मच्छरों को काफी हद तक दूर रखा जा सकता है.
रोजमेरी : गरमी के मौसम में यह पौधा बहुत तेजी से बढ़ता है. इसके फूल भी आकर्षक होते हैं. गरमियों में इस पौधे के गमले को घर से बाहर रखें, जबकि सर्दियों में इसे घर के अंदर. यह मच्छरों को घर में प्रवेश करने से रोकता है.
लेमन बाम : यह पौधा कमरे में रखें. इससे भी मच्छर दूर भागते हैं.
नीम : यदि घर के आंगन में नीम का पेड़ भी लगाते हैं, तो मच्छरों से छुटकारा मिल जायेगा, क्योंकि नीम का प्रयोग लंबे समय से प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में किया जाता है.
अल्ट्रासाउंड डिवाइस : इस डिवाइस से अल्ट्रासाउंड निकलती हैं, जिनसे मच्छर भागते हैं. इससे 22 किलोहट्र्ज की तरंगें निकलती हैं, जो इनसान नहीं सुन सकते हैं. अत: मनुष्यों पर इनका प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन मच्छर इसे सुन सकते हैं.
क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस का मरीज बना सकता है कॉयल
एक कॉयल से निकलनेवाला धुआं 200 सिगरेट के धुएं के बराबर है. इस धुएं के कारण लोग बिना सिगरेट पीये हुए ही क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस के शिकार हो जाते हैं. अत: इनके प्रयोग से जहां तक संभव हो, बचना ही चाहिए. यदि इनका प्रयोग करते भी हैं, तो सबसे पहले कमरे के खिड़की-दरवाजों को बंद करके कॉयल जला दें. जब मच्छर भाग जाएं, उसके बाद दरवाजे और खिड़कियां खोल कर अंदर जाएं. मच्छरों को दूर करने के लिए डीडीटी स्प्रे या मेलाथियॉन का प्रयोग करना चाहिए. बिहार, झारखंड में सिर्फ मलेरिया ही नहीं, बल्कि कालाजार, फाइलेरिया और इन्सेफेलाइटिस भी अधिक होते हैं. इन स्प्रे का प्रयोग करने पर इन सभी रोगों के वाहक मच्छर भी मरते हैं. वैक्सीन भी मलेरिया से बचने का एक उपाय है, लेकिन अभी तक इसके लिए कोई कारगर वैक्सीन नहीं आयी है. बड़े स्तर पर मच्छरों को कंट्रोल करने का एक बेहतर उपाय फॉगिंग भी है. कुछ लोग इसे हानिकारक समझते हैं, लेकिन यह जानना जरूरी है कि इसमें केमिकल की मात्र इतनी कम होती है कि इससे किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है. हां, कभी-कभी थोड़ी घुटन और आंखों में जलन हो सकती है. मलेरिया में रेड ब्लड सेल्स के टूटने पर जॉन्डिस होने का भी खतरा होता है. बुखार के साथ यदि जॉन्डिस के लक्षण भी दिखें, तो मलेरिया की जांच भी करा लेनी चाहिए. इससे रोग की जानकारी हो जाती है और सही इलाज हो जाता है. अन्यथा मलेरिया के बजाय जॉन्डिस का इलाज चलने पर रोग गंभीर हो जाता है.
बातचीत : अजय कुमार
डॉ डी बराट
एचओडी, मेडिसीन आइजीआइएमएस
पटना
ये हैं मलेरिया के लक्षण
तेज बुखार त्नउल्टी व जी मिचलाना त्नकमजोरी महसूस होना त्नथकावट होना त्नखून की कमी
आंखों में पीलापन त्नबुखार लगातार नहीं रह कर एक दिन के बाद आता है त्नबुखार के साथ कंपकंपी भी होती है.
क्या है जांच व उपचार
आमतौर पर इसके बुखार को लोग सामान्य बुखार समझ कर साधारण दवाएं खा लेते हैं. इससे रोग के बढ़ने का खतरा बढ़ता है. इसलिए जरूरी है कि चिकित्सक द्वारा टेस्ट करा कर बुखार का पता लगाएं. सेवियर और साधारण मलेरिया के लिए रैपिड या ऑप्टिमल टेस्ट जरूरी है. इस टेस्ट में खून में प्लाज्मोडियम पैरासाइट की मौजूदगी का प्रतिशत निकाला जाता है. इसके अलावा पॉलीमरेज चेन रिएक्शन नामक टेस्ट भी होता है.
उपचार : जांच रिपोर्ट आने से पहले मलेरिया का संभावित रोगी मान कर क्लोरोक्वीन दी जाती है. जांच में रोग की पुष्टि होने पर क्लोरोक्वीन, प्राइमाक्वीन या प्राइक्वीन की गोली में से कोई एक रोग के हिसाब से दी जाती है. इलाज तीन से पांच दिन तक चलता है. गर्भवती को प्राइक्वीन नहीं दी जाती है.
ऐसे पाएं मच्छरों से निजात
खुली नालियों में रोज वहां 50-100 एमएल केरोसिन डालें.
लहसुन को पानी में उबाल लें. पानी का स्प्रे की तरह छिड़काव करें.
टंकी की सफाई कई महीने में एक बार होती है, तो उसमें कुछ मॉस्कीटो फिश छोड़ दें. ये लार्वा खा जाती हैं.
नीम का तेल भी शरीर पर लगाएं.
जानने योग्य बातें
साधारण मच्छर रात में काटते हैं. डेंगू के मच्छर सुबह में काटते हैं.
इसका मच्छर ताजे पानी में बढ़ता है.
अल्ट्रासोनिक एंटी मॉस्कीटो ऐप
यह गूगल प्ले स्टोर पर फ्री में उपलब्ध है. इस एंटी मॉस्कीटो एप से 12 से 22 किलोहट्र्ज की तरंगे निकलती हैं, जो मच्छरों को बरदाश्त नहीं होती. वे इनसे दूर भागते हैं. ये तंरगें मनुष्यों को हानि नहीं करतीं, न ही सुनाई देती हैं. ऐप बैटरी भी अधिक नहीं खाता. ऑन करते काम शुरू कर देता है.
समङों मलेरिया का चक्र
मलेरिया परजीवी से संक्रमित मच्छर स्वस्थ व्यक्ति को काटता है. परजीवी खून के जरिये लिवर में पहुंचता है. रेड ब्लड सेल्स में विकसित होकर ब्लड सेल्स नष्ट करता है. आठ दिन बाद लक्षण दिखते हैं. परजीवी की संख्या बढ़ के बाद ही बुखार आता है. फिर उस रोगी को कोई मच्छर काटे, तो परजीवी उसमें प्रवेश कर जाता है और उसकी लार ग्रंथियों में वृद्धि करता है. यह क्रम चक्रीय रूप में चलता रहता है. इस तरह एक भी संक्रमित मच्छर मलेरिया को फैलाने में पूर्णत: समर्थ है.