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राहुल गांधी ने मोदी-ओबामा की दोस्ती पर ली चुटकी

राहुल सिंह कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति की तुलना अप्रत्यक्ष रूप से सोवियत रूस के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गार्वाचेव से कर दी. यह एक असाधारण राजनीतिक हमला है. गार्वाचेव सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति थे और उनके समय में ही उसका विघटन हो गया था. राहुल ने […]

राहुल सिंह
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति की तुलना अप्रत्यक्ष रूप से सोवियत रूस के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गार्वाचेव से कर दी. यह एक असाधारण राजनीतिक हमला है. गार्वाचेव सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति थे और उनके समय में ही उसका विघटन हो गया था. राहुल ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर मशहूर पत्रिका टाइम पत्रिका में छपे उस आलेख को देखा, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में लेख लिखे हैं.
राहुल गांधी ने कहा कि ओबामा द्वारा नरेंद्र मोदी की तारीफ करना पूर्व में अमेरिका के राष्ट्रपति की ओर से तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गार्वाचेव की तारीफ की तरह है. उन्होंने एक कदम और आगे बढते हुए कहा कि पिछले 60 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका ने ऐसी तारीफ नहीं की होगी. ऐसे में यह सहज सवाल उठता है कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी पर क्या सवाल उठाना चाहते हैं? क्या मोदी में उन्हें गार्वाचेव का अक्श नजर आता है या फिर वे यह महसूस करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा उसी रणनीति पर काम कर रहा है, जिस पर उनके पूर्ववर्ती रिगन ने गार्वाचेव के शासनकाल में सोवियत रूस के साथ काम किया था?
ऐसा क्या हुआ था मिखाइल गार्वाचेव के शासन में?
मिखाइल गार्वाचेव ने 1980 के दशक में सोवियत रूस की कमान संभाली थी. वह समय सोवियत संघ ही नहीं पूरी दुनिया के लिए उथल पुथल भरा दौरा था. दुनिया दो ध्रुव में बंटी थी. एक का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और दूसरे का सोवियत रूस. अमेरिका के लिए सोवियत रूस एक चुनौती थी. उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रिगन थे.
1988 में रिगन जब अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में थे, तो उन्होंने 1988 में मास्को में एक प्रेस कान्फ्रेंस किया था और अमेरिका व सोवियत रूस के बीच हुए सुलह में खुद को सपोर्टिग एक्टर बताया था, जबकि इसका हीरो गार्वाचेव को बताया था. उन्होंने इसका पूरा श्रेय गार्वाचेव को ही दिया था. यही रिगन अपने पहले कार्यकाल के दौरान सोवियत रूस को बुराई का साम्राज्य बता चुके थे. वे हर हाल में सोवियत रूस की विदेश नीति का असैन्यकरण चाहते थे.
जिस अमेरिका को पहले सोवियत रूस एक राजनीतिक डायनासोर नजर आता था, वह उसके विघटन की स्थिति में अब मित्र जैसा बर्ताव कर रहा था. सोवियत रूस की खराब आर्थिक हालात के मद्देनजर गार्वाचेव उस समय अमेरिका से मदद की आस रखते थे.
इस पूरे विषय पर अमेरिकी विदेश सेवा के एक अधिकारी जैक एफ मैथलॉक जूनियर ने एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है : रिगन एंड गार्वाचेव : हाउ द कोल्ड वार इंडेड.
जैक रिगन के समय अमेरिकी विदेश सेवा के सबसे अहम अधिकारी थे. वे व्हाइट हाउस में अमेरिकी मामलों के कोआर्डिनेटर थे. वे सोवियत रूस में राजदूत भी रहे थे. और, सच तो यह है कि रिगन के मिशन सोवियत रूस को परिणति तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका थी. इन सब के बावजूद रिगन और गार्वाचेव समझौते के बाद सोवियत संघ की हालत बद से बदतर होती गयी और अंतत: वह ताश के पत्ताें की तरह बिखर गया था.
बहरहाल, इस संदर्भ में एक बार फिर यह सवाल उठता है कि आखिर राहुल गांधी कहना क्या चाहते हैं?

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