खंतिया (पश्चिम बंगाल) : आइआइटी खडगपुर के अनुसंधानकर्ताओं के समूह ने अपने परिसर के पास की कृषि भूमि को प्रयोगशाला में बदल दिया है ताकि नयी कृषि प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा सके और किसानों को अपनी उपज बढाने मदद मिले. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खडगपुर के परिसर से 10 किलोमीटर दूर खंतिया गांव में किसानों के एक समूह ने 14 एकड भूमि गोद ली है. छोटे-छोटे टुकडों में बंटी ज्यादातर भूमि पिछले कुछ साल से बंजर पडी थी.
उनकी उम्मीद को देखकर किसान अपनी जमीन को आइआइटी के दल के लिए कृषि भूमि में तब्दील करने के लिए तैयार हो गये. पिछले साल नवंबर में विभिन्न टुकडों बंटी जमीन की जुताई और समतल करने का काम शुरू हुआ ताकि इसे एक बडे टुकडे में परिवर्तित किया जा सके. इस परियोजना के प्रमुख प्रोफेसर पी बी एस भदौरिया ने कहा ‘हमने एसआरआइ जैसी नयी प्रौद्योगिकी पेश की है ताकि कम पानी के साथ चावल की पैदावार बढाई जा सके. फसल विविधता बढाने के लिए मक्का, मूंगफली और सोयाबीन जैसी नकदी फसलें पेश की गईं.’
जैविक खेती के प्रोत्साहन के लिए उन्होंने वर्मिकंपोस्ट इकाइयां शुरू की. आइआइटी के दल ने ट्यूबवेल खोदा और वर्षा जल संचयन तथा मत्स्य पालन के लिए एक तालाब भी बनाया. बीस डेसिमल से भी कम जमीन के स्वामी, 48 वर्षीय जगन्नाथ दास ने कहा कि वह खेती के बारे में नयी चीजें सीख रहें हैं. दास ने कहा ‘हमने उन्हें अपनी जमीन का जिम्मा सौंप दिया क्योंकि हमें आइआइटी जैसे बडे संस्थान पर भरोसा है. अब हम नयी चीजें सीख रहे हैं, जैसे हमारी खेती की जमीन पाठशाला बन गई हो.’
आइआइटी मद्रास से मेटालर्जी (धातु विज्ञान) की पढाई करने वाले युवा वैज्ञानिक अभिषेक सिंघानिया बहुराष्ट्रीय कंपनी प्राइसवाटर हाउस कूपर्स में काम करते थे लेकिन उन्होंने इस हरित क्रांति से जुडने के लिए पिछले महीने उन्होंने सउदी अरब में अपनी नौकरी छोड दी. उन्होंने कहा ‘अपने किसानों की खस्ताहाली के बारे में जानकर मैं उनकी मदद करने के लिए इस परियोजना से जुडा. मेरा काम है किसानों को नयी प्रौद्योगिकी के बारे में समझा-बुझा कर राजी करना.’
अगले महीने फसल तैयार होने पर वह किसानों को अपने उत्पादन की सही कीमत प्राप्त करने में मदद करेंगे क्योंकि ऐसा न हो कि वे बिचौलियों की गिरफ्त में आ जाएं. सिंघानिया ने कहा ‘उन्होंने दिशानिर्देश के लिए खेती और विपणन के हर चरण के लिए सही व्यक्ति चाहिए. मैं इस माडल को टिकाउ बनाने की कोशिश कर रहा हूं ताकि जब हम छोड़ें तो वे अपने आप सबकुछ कर सकें.’
परियोजना अधिकारी और कृषि विशेषज्ञ तनुमय बेरा ने कहा कि वे संसाधन के अधिकतम उपयोग और पर्यावरण पर न्यूनतम असर के लिए सतत प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं. एसआरआइ (धान के अधिक उत्पादन की प्रणाली) के लिए 30-40 प्रतिशत कम पानी और कीटनाशक की जरुरत होगी लेकिन उपज ज्यादा होती है. इस परियोजना से उत्साहित परियोजना के पास स्थित अन्य किसानों ने भी इस पर गौर किया और उन्होंने आइआइटी से अपनी जमीन भी पर इस माडल को लागू करने के लिए संपर्क किया है.
भदौरिया ने कहा ‘हम उद्योग और अन्य संगठनों से कोश मांगेगे ताकि एक साल की कम अवधि के लिए प्रौद्योगिकी के प्रर्शन के लिए कुछ अन्य गांवों को गोद लिया जा सके.’ खंतिया गांव में यह परियोजना तीन साल के लिए चलेगी और इसका विकास ‘उन्नत भारत अभियान’ के तहत माडल ग्राम बनाने के लिए किया जाएगा. अगले चरण में वे सेंसर आधारित सिंचाई, छिडकाव वाली सिंचाई, भूमि परीक्षण किट आदि पेश करेंगे. उन्होंने कहा ‘किसान अपनी जमीन के अनुपात के आधार पर कुल उत्पादन में बंटवारा करेंगे.’
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