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शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा और भारत की परेशानी
– मुकुंद हरि – चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा और इस दौरे पर चीन और पाकिस्तान के बीच होने वाली कई साझेदारियों को लेकर भारत के रणनीतिकारों की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं. एक तो पहले से ही चीन भारत के खिलाफ अपनी मोर्चाबंदी को मजबूत करने के लिए दक्षिण एशिया […]
– मुकुंद हरि –
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा और इस दौरे पर चीन और पाकिस्तान के बीच होने वाली कई साझेदारियों को लेकर भारत के रणनीतिकारों की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं. एक तो पहले से ही चीन भारत के खिलाफ अपनी मोर्चाबंदी को मजबूत करने के लिए दक्षिण एशिया के सभी देशों के साथ अपना कूटनीतिक सम्बन्ध बनता रहा है, ऊपर से पाकिस्तान को उसने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रमुखता भी दे रखी है. भारत को घेरने और दबाव में लाने के लिए ही चीन उप-महाद्वीप के इन देशों में अपना निवेश करता रहा है. अब पाकिस्तान को अपना छोटा भाई बताने वाले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस पाकिस्तान दौरे की वो खास बातें क्या हो सकती हैं, जो भारत के लिए चिंता का सबब हैं.
चीनी राष्ट्रपति अपने इस पाकिस्तानी दौरे में पाकिस्तान में 50 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान कर सकता है. पहले से ही आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए ये सहायता राहत देने वाली होगी. इस बारे में पाकिस्तान और चीन के मीडिया की ख़बरों को मानें तो 50 अरब डॉलर के इस निवेश में से एक बड़ा हिस्सा एक ‘चाइना-पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडोर’ बनाने में खर्च किया जाएगा. इस कॉरीडोर के ज़रिए चीन, पाकिस्तान के दक्षिण में मौजूद ग्वादर बंदरगाह तक सड़क मार्ग से भी जुड़ जाएगा.
ग्वादर बंदरगाह में निवेश के बहाने चीन की पहुंच भारत के लिए बड़ी चिंता की बात हो सकती है क्योंकि भविष्य में चीन इस नए बंदरगाह को एक नौसेनिक केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर सकता है. वैसे भी इस बारे में पाकिस्तान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी एपीपी ने 17 अप्रैल को कहा था कि चीन ग्वादर बंदरगाह में काम शुरु कर चुका है.
ग्वादर के इस नए बंदरगाह में निवेश से चीन को अरब की ख़ाड़ी और होर्मूज़ की ख़ाड़ी में सीधा प्रवेश मिल जायेगा जो पश्चिम एशिया के तेल बाहर भेजने के रास्तों के बेहद नज़दीक है. खास बात ये है कि भारत भी अपनी तेल की ज़रूरत का सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया से आयात करता है. इसके अलावा चीन ग्वादर में इस बंदरगाह में निवेश के अलावा ग्वादर से लेकर अपने देश में शिनजियांग तक 3000 किलोमीटर लंबी एक सड़क भी बनाने की तैयारी में है. भारत में इस सड़क को एक और सामरिक चुनौती के रूप में देखा जा सकता है. चीन का मानना है कि इस सड़क के बन जाने से चीन पश्चिम एशिया से तेल लेकर उसे ग्वादर से लेकर शिनजियांग तक के सड़क मार्ग से अपने देश में पहुंचा सकेगा जो चीन के लिए बहुत सस्ता होगा. इसके अलावा सामरिक दृष्टि से भी ये बंदरगाह और ग्वादर से चीन तक के सड़क मार्ग के जरिये चीन की यहां तक पहुंच भारत पर सामरिक दबाव बनाने का प्रभावी तरीका है. यही वजह है कि जानकारों का मानना है कि ग्वादर में चीन का बंदरगाह भारत के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है.
इसके पहले चीन श्रीलंका में भी अपनी तरफ से बंदरगाह बनाने के नाम पर निवेश की कोशिशों में लगभग सफल हो चुका था लेकिन भारत ने हाल ही में बड़ी मुश्किल से श्रीलंका को अपने यहां चीन को बंदरगाह बनाने से रोकने के लिए राज़ी किया, जिस वजह से चीन, भारत और श्रीलंका दोनों से नाराज़ है.
इसके अलावा अन्दर की खबरों के अनुसार पाकिस्तान की चीन से आठ पनडुब्बियां ख़रीदने की भी योजना है. इसके लिए भी समझौता इसी यात्रा के दौरान हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान की परमाणु ताकत का विस्तार समुद्र तक होगा. पनडुब्बियों का ये सौदा लगभग 5 अरब डॉलर का हो सकता है.
इसके अलावा अफगानिस्तान में भारत की प्रभावी मौजूदगी और अफगानिस्तान के विकास में योगदान को लेकर भी पाकिस्तान खासा परेशान है और उसकी कोशिश रही है कि भारत का अफगानिस्तान में प्रभाव कम हो जाये. हांग-कांग के एक अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में सुरक्षा के मसले पर भी चीन और पाकिस्तान के बीच बेहतर समझ और अधिक समन्वय पर बात हो सकती है. पाकिस्तान को लगता है कि इससे वो अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव को कम कर सकता है.
इसके अलावा, चीन के राष्ट्रपति ने ये घोषणा भी की है कि चीन ईरान से पाकिस्तान तक गैस पाइप लाइन भी बनाएगा. देखने वाली बात अब ये होगी कि अगले महीने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा पर इन मुद्दों का कितना असर पड़ता है और भारत की यात्रा को अपनी यादों में संजोने का दवा करने वाले जिनपिंग मोदी को उनकी चीन यात्रा पर क्या सौगात देंगे !
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