नेपाल के अखबारों में यह खबर जनवरी 2013 में छपी थी. इसी आलोक में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रेखा एम. दोषित के नेतृत्व में पटना हाइकोर्ट की फूल बेंच ने मीटिंग कर इस पर एक्शन लिया था और उन्हें बरखास्त कर दिया था. बाद में न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे पहले हाइकोर्ट जाएं. अगर न्याय नहीं मिला तो सुप्रीम कोर्ट में आएं.
इसके बाद उन्होंने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आश्चर्च व्यक्त किया था कि बिना जांच के न्यायाधीशों को हटाने का फैसला कैसे लिया गया. न्यायाधीशों के अधिवक्ता विंध्यकेसरी कुमार ने कोर्ट को तर्क दिया था कि यह फैसला एकतरफा था. जजों के प्रति गलतफहमी पैदा कर दी गयी थी. नेचुरल जस्टिस के पालन करने के लिए उन्हें अवसर दिया जाना चाहिए था.