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गांधी के कला दर्शन को नंदलाल ने किया साकार

मुंगेर: कला जगत में गांधी की कलाकृति को अपनाने वाले एक मात्र कलाकार थे आचार्य नंदलाल बोस. उन्होंने गांधी के कला दर्शन को साकार रूप दिया और अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर कला के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया. हैरत की बात तो यह है कि अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर स्थान हासिल करने वाले इस कलाकार के […]

मुंगेर: कला जगत में गांधी की कलाकृति को अपनाने वाले एक मात्र कलाकार थे आचार्य नंदलाल बोस. उन्होंने गांधी के कला दर्शन को साकार रूप दिया और अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर कला के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया. हैरत की बात तो यह है कि अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर स्थान हासिल करने वाले इस कलाकार के जन्मभूमि मुंगेर में शिवाय हवेली खड़गपुर में उनकी प्रतिमा के अलावा कुछ भी नहीं है.
देश के ख्याति प्राप्त आर्ट गैलरी में तो उनकी कलाकृति उपलब्ध है. लेकिन जन्मभूमि मुंगेर में बने संग्रहालय में उनकी कोई निशानी तक नहीं है. नंदलाल बोस ने अपनी कला साधना में परंपरा और धरोहर की श्रेष्ठता का ध्यान अनिवार्य रूप से रखा. उनका बनाया गांधी का लीनोकट पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इसमें बढ़ते निरंतर गांधी विराट दिखते हैं. इस विराटता में देश से अधिक उनकी तेजोदिप्त आत्मा दिखती है. स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नंदलाल बोस के संदर्भ में कहा था कि उन्होंने मेरी कल्पना को साकार कर दिया. मैं कोई सृजनात्मक कलाकार नहीं हूं.

लेकिन भगवान ने कला का विवेक अवश्य दिया है. गांधी स्वदेशी व स्वावलंबन में यकीन रखते थे. नंदलाल बोस की कला दृष्टि उसके अनुरूप थी तभी तो वे मिट्टी के रंगों का ज्यादा इस्तेमाल करते थे. दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 1915 में महात्मा गांधी भारत आये तो शांति निकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से मिले. उन्होंने गुरुदेव से कहा कि मैं ऐसा साहित्य और कला चाहता हूं. जिसमें करोड़ों लोगों से संवाद की संभावना हो. दरअसल में यही गांधी का कला दर्शन था. जिसे आचार्य नंदलाल बोस ने साकार करके दिखाया. 1936 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के समय ग्रामीण शिल्प और कला की प्रदर्शनी लगानी थी तो उन्होंने यह जिम्मेदारी आचार्य नंदलाल बोस को दी.

इसके पूर्व वे इसे समझने के लिए सेवाग्राम गये और उस दृष्टिकोण को समझा. बापू के आग्रह पर उन्होंने कांग्रेस अधिवेशन की सज्जा का भार उठाया तथा तार-खजूर, बांस मिट्टी के घरों से सौंदर्य की सृष्टि की. हरिपुरा कांग्रेस का कार्य आरंभ करने से पहले आसपास के गांवों में जाकर लोग जीवन का अध्ययन किया. उसके उपरांत जनजीवन के जो चित्र बनाये उसमें विशिष्टता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की एकता और अखंडता झलकती है.

मुंगेर और बिहार के लिए यह गौरव की बात है कि इस माटी में 3 दिसंबर 1883 को जन्में नंदलाल बोस ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुंगेर को पहचान दी. इस महान कलाकार ने 16 अप्रैल 1966 को दुनिया को अलविदा किया. काफी लंबे प्रयास के बाद साहित्यिक संस्था संभवा ने हवेली खड़गपुर में उनकी आदम कद प्रतिमा तो लगायी. उस समय यह लगा था कि इस कलाकार की विरासत को संजोने का एक काम होगा. समाज के साथ-साथ सरकारी की भी पहल होती है. लेकिन सरकारों का रवैया बिल्कुल उदासीन है. तभी तो मुंगेर में संग्रहालय बना और वहां नंदलाल बोस की स्मृति में कुछ नहीं.

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