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यूरिया की कालाबाजारी ने बढ़ा दी थी गेहूं फसल की लागत

अररिया: मौसम की मार के चलते बेहाल हुए जिले के गेहूं उत्पादक किसानों की पीड़ा को समझना व महसूस करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि मौसम के कारण हुई फसलों की क्षति तो सिक्के का केवल एक पहलू है, जो तत्काल दिख रहा है. इस नुकसान की कुछ हद तक भरपाई के लिए सरकारी व विभागीय […]

अररिया: मौसम की मार के चलते बेहाल हुए जिले के गेहूं उत्पादक किसानों की पीड़ा को समझना व महसूस करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि मौसम के कारण हुई फसलों की क्षति तो सिक्के का केवल एक पहलू है, जो तत्काल दिख रहा है.

इस नुकसान की कुछ हद तक भरपाई के लिए सरकारी व विभागीय स्तर पर कार्रवाई शुरू कर दिये जाने का समाचार भी है, पर किसानों की पीड़ा का दूसरा व समान रूप से दर्दनाक पहलू ये है कि जिन किसानों के गेहूं के खेत मौसम की मार से सुरक्षित माने जा रहे हैं, उनकी हालत भी खस्ता है.

इसकी वजह ये है कि मौसम की बेरुखी के अप्रत्यक्ष रूप से चपेट में आने के कारण उन खेतों की पैदावार इस हद तक कम हो गयी है कि लागत मूल्य निकल पाना मुश्किल नजर आ रहा है. किसानों का कहना है कि रबी फसल के समय खास तौर पर यूरिया की ऊंची कीमत ने लागत मूल्य बढ़ा दिया था, उपज अच्छी होती तो भरपाई हो सकती थी, पर हुआ इसके ठीक विपरीत.

यूरिया को लेकर मचा था हाहाकार, किसानों ने किया था प्रदर्शन: गौर तलब है कि रबी मौसम में गेहूं की बुआई के समय जिले भर में यूरिया को लेकर हाहाकार मचा रहा था. वहीं विभागीय व प्रशासनिक अधिकारी ये दावा करते हुए नहीं थक रहे कि जिले में यूरिया की कोई खास कमी नहीं है.

ये बात इस हद तक जरूर सही थी कि किसी न किसी तौर पर बाजार में यूरिया उपलब्ध रहा, पर दूसरी सच्चई ये भी है कि मुट्ठी भर किसानों को छोड़ शायद ही कोई ऐसा किसान रहा हो जिसे निर्धारित मूल्य पर यूरिया मिल पाया हो. किसान तब भी, अब भी यही कह रहे हैं कि उन्होंने यूरिया 500 से लेकर 700 रुपये प्रति बैग की कीमत पर खरीदा था.

रबी के समय यूरिया की ऊंची कीमत को लेकर नौबत यहां तक पहुंची थी कि किसानों ने जिले के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन किया ही था. इसके साथ ही जिले के पूर्व सांसद सुकदेव पासवान ने प्रेस कांफ्रेंस कर मामले को उठाते हुए आंदोलन तक करने की बात कही थी. इतना कुछ हुआ था पर विभागीय अधिकारियों की साप्ताहिक टास्क फोर्स की बैठकों में यही रिपोर्ट दी जाती रही थी कि यूरिया को लेकर सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है.

अधिकारियों की अनसुनी का खामियाजा अब किसान भुगतने को मजबूर हैं. किसानों का कहना है कि डीएपी खाद की कीमत तो पहले ही बढ़ चुकी थी. इस बार यूरिया के कारण लागत प्रति एकड़ हजार से 1200 रुपये तक बढ़ गयी, जबकि मौसम के कारण उपज 50 प्रतिशत तक कम हो गयी है. जिला कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि जिले में गेहूं की औसत उपज 30 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, पर किसानों का कहना है कि इस बार 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज भी नहीं मिल पा रहा है. लागत मूल्य लगभग छह हजार प्रति एकड़ है.

इस हिसाब से एक एकड़ गेहूं बेच कर मुश्किल से लागत मूल्य ही निकल पायेगा.

जानकारों का कहना है कि अगर रबी की बुआई के समय संबंधित विभाग व प्रशासनिक अधिकारी समस्या पर समुचित ध्यान देते, तो शायद किसानों को कुछ राहत मिल सकती थी. सूत्रों का कहना है कि यूरिया की इस कृत्रिम अभाव का फायदा रासायनिक खाद के बड़े व्यापारियों ने खूब उठाया.

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