इंटरनेट पर जब आप कुछ सर्च करते हैं तो ढेर सारी वेबसाइटें खुलती हैं, जिनसे आप व्यापक जानकारियां हासिल करते हैं. यदि सभी साइटें नहीं खुलें, तो आप कई तरह की जरूरी जानकारियों से वंचित रह सकते हैं या उनके लिए आपको इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी को अलग से भुगतान करना पड़ सकता है. ये परिस्थितियां ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ को भंग करती हैं.
‘नेट न्यूट्रैलिटी’ पर बहस और विवाद पहले विदेशों में होते थे, लेकिन इन दिनों यह शब्द भारत में भी न केवल खबरों में, बल्कि सोशल मीडिया की बहस में भी छाया हुआ है. क्या है नेट न्यूट्रैलिटी, क्यों है चर्चा में, भारत में क्या है इसका विवाद, क्यों और कैसे पैदा हो रही यह समस्या समेत इससे जुड़े जरूरी पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..
मुकुल श्रीवास्तव
तकनीकी मामलों के लेखक
मानव सभ्यता के इतिहास को तीन चीजों ने हमेशा के लिए बदल दिया-आग, पहिया और इंटरनेट. इसमें इंटरनेट का सबसे क्रांतिकारी असर पूरी दुनिया पर हुआ, जिसने दुनिया और दुनिया को देखने का नजरिया बदल दिया है.
बात चाहे खबरों की हो, ऑनलाइन शॉपिंग या सोशल नेटवर्किग साइट्स, सब इंटरनेट पर निर्भर हैं. इंटरनेट ने हमारे जीवन को बेहद आसान बना दिया है. वह चाहे रेल टिकट का आरक्षण हो या किसी बिल का भुगतान, आज सबकुछ माउस की एक क्लिक पर उपलब्ध है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि सबको इंटरनेट की पहुंच समान रूप से मुहैया हो.
यानी वे जो चाहें इंटरनेट पर खोज सकें, देख सकें, वह भी बिना किसी भेदभाव के या कीमतों में किसी अंतर के. यहीं से निकला है ‘इंटरनेट निरपेक्षता’ यानी ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ का सिद्धांत. मुख्य तौर पर यह इंटरनेट की आजादी या बिना किसी भेदभाव के इंटरनेट तक पहुंच की स्वतंत्रता का मामला है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट सेवा से लोगों को वंचित करना और ऑनलाइन सूचनाओं के मुक्त प्रसार में बाधा पहुंचाना मानवाधिकारों के उल्लघंन की श्रेणी में माना जायेगा.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि फ्रैंक ला रू ने यह रिपोर्ट विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रसार और संरक्षण के अधीन तैयार की है. यानी हम कह सकते हैं कि इंटरनेट आनेवाले समय में संविधान सम्मत और मानवीय अधिकारों का एक प्रतिनिधि बन कर उभरेगा. इसी कड़ी में फिनलैंड ने विश्व के सभी देशों के समक्ष एक उदाहरण पेश करते हुए इंटरनेट को मूलभूत कानूनी अधिकार में शामिल कर लिया है.
इंटरनेट का प्रसार और उपभोग बढ़ने के साथ ही इसकी आजादी का मुद्दा समय-समय पर उठता रहा है. इंटरनेट के विकास और व्यवसाय को वास्तविक गति मोबाइल और एप्प ने दी है. एप्प से तात्पर्य किसी कंप्यूटर वेबसाइट का लघु मोबाइल स्वरूप है, जो सिर्फ मोबाइल पर ही चलता है. एप्प ने इंटरनेट के बाजार को खासा प्रभावित किया है.
एप्प के आने के पहले इंटरनेट से जुड़े विभिन्न वेबसाइट का इस्तेमाल सिर्फ कंप्यूटर पर ही किया जा सकता था. लेकिन, एंड्रॉयड मोबाइल के विकास और गूगल प्ले स्टोर पर मुफ्त उपलब्ध एप्प ने इंटरनेट के प्रयोग को खासी गति दे दी है. ऐसे में इंटरनेट सेवा उपलब्ध करानेवाली कंपनियां इस पर तरह-तरह के रोक लगाना चाहती हैं.
भारत में क्या है विवाद
भारत में यह मुद्दा पिछले साल अगस्त महीने में एयरटेल द्वारा उछाला गया था. टेलीकॉम कंपनियों ने टेलीकॉम अथॉरिटी के सामने यह मुद्दा रखा था कि फ्री वॉइस कॉलिंग और मल्टीमीडिया संदेशों की वजह से एसएमएस और मोबाइल कॉलिंग में भारी गिरावट आती जा रही है. इस कारण उन्हें सालाना 5,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इंटरनेट की सुलभता और बिना किसी खर्च के आसानी से मोबाइल पर उपलब्ध हो जानेवाले एप्स इसका मुख्य कारण हैं.
भारत की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी भारती एयरटेल ने एक ऐसा मोबाइल इंटरनेट प्लान लॉन्च किया है, जिसमें कुछ एप्स उपभोक्ताओं को मुफ्त में दिये जायेंगे, जबकि शेष के लिए कंपनी उपभोक्ताओं से शुल्क वसूलेगी. ऐसे में अगर आप एयरटेल उपभोक्ता हैं, तो इसका सीधा मतलब यह है कि आपके बजाय यह एयरटेल फैसला करेगा कि आप कौन-कौन से एप्स का इस्तेमाल मुफ्त कर सकते हैं, जबकि इससे पूर्व आप गूगल प्ले स्टोर पर किसी भी एप्प को डाउनलोड कर सकते थे और मोबाइल कंपनी सिर्फ इस्तेमाल किये गये डाटा का शुल्क ही आप से वसूलती रही है.
यदि एप्प मुफ्त नहीं है, तो भी एप्प का शुल्क एप्प मुहैया करानेवाली कंपनी को मिलता है, न कि मोबइल कंपनी को. लेकिन, नये प्लान के तहत मुफ्त एप्प के लिए भी कंपनी आपसे शुल्क वसूलेगी. ‘एयरटेल जीरो’ नाम के इस प्लान की सोशल मीडिया पर काफी आलोचना हुई है. विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसी योजनाओं से ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ यानी इंटरनेट के निष्पक्ष स्वरूप पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
दरअसल, मोबाइल कंपनियां व्हाट्स एप्प, फेसबुक और दूसरे मेसेजिंग एप्प के आने के कारण चिंतित हैं, क्योंकि इन मेसेजिंग एप्प से उनका व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. एसएमएस को इन चैटिंग ने लगभग समाप्त कर दिया है. अब ऐसे अधिकतर एप्स में वायस कॉलिंग सुविधा के आ जाने से उन्हें कॉल से मिलने वाली आय भी प्रभावित होते दिख रही है.
फ्लिपकार्ट ने खींचा हाथ
इस बीच सोशल नेटवर्किग साइट्स पर जोरदार विरोध के बीच ‘एयरटेल जीरो’ के प्रमुख भागीदार भारत की सबसे बड़ी ऑनलाइन कंपनी फ्लिपकार्ट ने इस योजना से यह कहते हुए हाथ खींच लिया कि वे इंटरनेट की आजादी के पक्षधर हैं व इससे कोई समझौता नहीं करेंगे.
भारत में नहीं है कोई कानून
‘नेट न्यूट्रैलिटी’ के समर्थन में जोरदार बहस चल पड़ी है और ऑनलाइन दुनिया में एक पिटीशन भी शुरू की गयी है. इसके पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए ट्विटर पर ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ नाम से एक हैशटैग भी चल रहा है, जिसमें डेढ़ लाख से ज्यादा लोग अपने विचार रख चुके हैं.
दरअसल, ये लोग चाहते हैं कि इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए उपयोग में लाये जानेवाले डाटा पैक अलग-अलग न हों. सभी ट्रैफिक के एक ही डाटा पैक हों यानी गूगल वेबसाइट इस्तेमाल करने या स्काइप इस्तेमाल करने के लिए नेट स्पीड में कोई भिन्नता न हो.
भारत में इंटरनेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा अभी एकदम नया है और इंटरनेट निष्पक्षता से जुड़ा कोई कानून अब तक बना नहीं है. जानकारों का कहना है कि मोबाइल कंपनियां इसका फायदा मुनाफा बनाने के लिए कर रही हैं. नेट न्यूट्रैलिटी के हिसाब से कोई उपभोक्ता कोई भी डेटा प्लान खरीदता है, तो उसे हक है कि उस प्लान में दी गयी इंटरनेट स्पीड हर एप्प या वेबसाइट के लिए एक समान रहे. एक समय में अमेरिका में भी इस मुद्दे पर जोरदार बहस हुई थी और वहां फैसला उपभोक्ताओं के पक्ष में लिया गया था.
कैसे खत्म हो रही नेट न्यूट्रैलिटी
टेलीकॉम कंपनियां न केवल नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म करने की मांग कर रही हैं, बल्कि उन्होंने धीरे-धीरे इसे खत्म करना शुरू भी कर दिया है. एयरटेल के अलावा रिलायंस ने फेसबुक के साथ मिलकर ऐसे ही इंटरनेट प्रोग्राम डॉट ओर्ग की शुरुआत की है.
इसमें आप सर्च इंजन बिंग को तो मुफ्त में इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन गूगल के प्रयोग के लिए आपको कीमत देनी होगी. नौकरी खोजने वाली वेबसाइट बाबा जॉब फ्री में उपलब्ध है, लेकिन नौकरी डॉट कॉम के लिए शुल्क अदा करना पड़ेगा.
पक्ष में
ने ट न्यूट्रैलिटी के तहत उपभोक्ताओं से सिर्फ उनके डेटा यूज के हिसाब से चार्ज किया जाता है. इसके अतिरिक्त उनसे अन्य खर्च नहीं लिया जाता है. इस कारण उपभोक्ता अपनी जरूरत के हिसाब से एप्स डाउनलोड करते हैं. उपभोक्ताओं द्वारा कोई भी डेटा प्लान खरीदने पर इंटरनेट स्पीड हर एप्प और वेबसाइट के लिए समान रहती है.
इसका सीधा सा मतलब यह है कि इंटरनेट सर्विस प्रदान करनेवाली कंपनियां इंटरनेट पर हर तरह के डाटा को एक जैसा दर्जा देती है. इस कारण यूजर्स एक साथ कई टैब्स खोल कर चीजें सर्च कर लेते हैं. उपभोक्ता इंटरनेट पर जो चाहें खोज और देख सकते हैं. वह भी बिना किसी भेदभाव के या कीमतों में किसी अंतर के. नेट न्यूट्रैलिटी के चलते किसी भी एप्प को यूज करने के लिए अलग से डेटा पैक की जरूरत नहीं होती. मतलब एक बार डेटा पैक रिचार्ज कराने पर खुल कर इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकता है. आशय यह है कि किसी खास वेबसाइट या इंटरनेट आधारित सर्विस के लिए नेटवर्क प्रोवाइडर आपको अलग से चार्ज नहीं कर सकता.
एक बार डेटा पैक कराने के बाद फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया साइट्स, मेसेजिंग या कॉल सर्विस जैसे वॉट्सएप्प, स्काइप, गूगल हैंगआउट से लाइव बातचीत, कई तरह की इमेल सर्विसेज, न्यूज से जुड़ी साइट्स पर एक्सेस आसानी से फ्री में की जा सकती है. नेट न्यूट्रैलिटी इंटरनेट की आजादी को बढ़ावा देता है. साथ ही इंटरनेट के प्रचार-प्रसार के लिए यह बहुत उपयोगी है.
विपक्ष में
नेट न्यूट्रैलिटी के तहत नये-नये फ्री ऐप्प आ जाने से उपभोक्ताओं को तो फायदा होता है, पर सेवा प्रदाता कंपनियों को कुछ हद तक नुकसान हो रहा है. ज्यादा इंटरनेट के इस्तेमाल पर आइएसपी (इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर) अतिरिक्त पैसे चार्ज कर सकती है. नेट न्यूट्रैलिटी का प्रावधान है कि एक बार डेटा पैक लेने के बाद कंपनी अलग से एप्प आदि का चार्ज नहीं करेगी. उपभोक्ता द्वारा सीमा अधिक इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल करने पर आइएसपी उससे चार्ज ले सकता है.
आइएसपी के पास अधिकार है कि जिस कंटेंट को नहीं दिखाना है, उसे वह ब्लॉक कर सकता है. यानी सेंसरशिप लगाने का अधिकार आइएसपी के पास है. ज्यादा फाइल ट्रांसफर करने पर इंटरनेट स्पीड स्लो हो सकती है. हॉटमेल के मुकाबले जीमेल तेज काम करता है. नेट न्यूट्रैलिटी हटने के बाद हो सकता है कुछ कंपनियों को फायदा हो और वे यूजर्स को बेहतर सर्विस मुहैया करा सकें.
तो क्या एप्स के लिए भी देना होगा चार्ज!
दुनिया को जोड़नेवाला इंटरनेट, एक क्लिक पर सवाल के तमाम जवाब देने वाला इंटरनेट. घर बैठे शॉपिंग और फिर डिलीवरी करनेवालाइंटरनेट. आम लोगों की जरूरत सा बन चुका है इंटरनेट. पर यदि आपको पता चले कि कुछ ही दिनों में शॉपिंग साइट एप्स, चैट एप्स एक्सेस करने पर आपको चार्ज देना पड़ेगा तो?
खबर है कि टेलीकॉम कंपनी एयरटेल अपने नये प्लान के तहत अब तय करेगी कि किस एप्प को फ्री करना है और किस एप्प के लिए उपभोक्ताओं से रकम चार्ज करना है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि जो मोबाइल एप्प एयरटेल को पैसा देगी, उसे कंपनी फ्री में उपभोक्ताओं तक पहुंचायेगी. इस स्कीम को ‘एयरटेल जीरो’ के नाम से जाना जायेगा.
हालांकि, जानकारों का कहना है कि यह स्कीम इंटरनेट न्यूट्रैलिटी का उल्लंघन कर रही है और सोशल साइट्स पर इंटरनेट यूजर्स इसका जम कर विरोध भी कर रहे हैं. नेट न्यूट्रैलिटीका मतलब है कि इंटरनेट पर हर एप्प, हर वेबसाइट और हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बराबर हैं. इंटरनेट फैसिलिटी प्रोवाइड करानेवाली टेलीकॉम कंपनी को लोगों को उनकी डेटा यूसेज के हिसाब से चार्ज करना चाहिए.
एयरटेल की नयी स्कीम इंटरनेट के नियमों के खिलाफ है, क्योंकि इसका सीधा मतलब यह है कि हो सकता है एयरटेल सिर्फ उन्हीं एप्स को प्राथमिकता दे, जिससे उसकी डील हो. वैसे खबर यह भी है कि वॉट्सएप्प भी अब सालाना 60 रुपये चार्ज करनेवाला है. इसके कांपीटिशन में रिलायंस ने ‘जिओ’ नाम का एप्प शुरू किया है, जिसे तेजी से डाउनलोड किया जा रहा है. कंपनी इसमें वीडियोकॉलिंग की फैसिलिटी के साथ 100 मैसेज भी फ्री दे रही है.
ट्राइ को दे सकते हैं राय
दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) ने नेट न्यूट्रैलिटी विषय पर सेवाओं के नियमन से जुड़े 20 सवालों पर जनता से राय मांगी है. कंपनियां 24 अप्रैल और आम जनता 8 मई तक इस मुद्दे पर अपने सुझाव दे सकते हैं. यह राय पर दी जा सकती है.
नेट न्यूट्रैलिटी का इतिहास
इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल वर्ष 2003 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में मीडिया लॉ के प्रोफेसर टिम वू ने किया था. इसे नेटवर्क न्यूट्रैलिटी,इंटरनेट न्यूट्रैलिटी तथा नेट न्यूट्रैलिटी भी कहा जाता है.
नेट न्यूट्रैलिटी का मतलब होता है हम जो भी इंटरनेट सेवा या एप्प इस्तेमाल करें वह हमें हर इंटरनेट सेवा प्रदाता से एक स्पीड और एक ही मूल्य पर मिले. इंटरनेट सेवा मुहैया करानेवाली टेलीकॉम कंपनियों को लोगों से सिर्फ उनकी डाटा खपत के हिसाब से मूल्य वसूलना चाहिए. चिली विश्व का सबसे पहला देश है, जिसने ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ को लेकर वर्ष 2010 में अधिनियम पारित किया है.
नेट न्यूट्रैलिटी का अर्थ
– इंटरनेट पर उपलब्ध प्रत्येक साइट पर हम बराबरी से पहुंच स्थापित कर पायें.
– प्रत्येक वेबसाइट एक किलोबाइट या मेगाबाइट के लिए शुल्क की दर बराबर रहे. किसी विशिष्ट वेबसाइट की स्पीड ज्यादा या कम न हो.
– किसी भी तरह का विशेष गेटवे, जैसे- एयरटेल वन टच इंटरनेट, डेटा वैल्यू एडेड सर्विसेज, इंटरनेट डॉट ओआरजी आदि न हों.
– कोई भी वेबसाइट ‘जीरो रेटिंग’ न हो या कुछ वेबसाइटों को दूसरे के मुकाबले मुफ्त नहीं बना दिया जाये.
– सभी वेबसाइट्स और एप्प को बराबरी का दर्जा हासिल हो.
– प्रत्येक यूजर की किसी भी वेब-बेस्ड सर्विस तक पहुंच बनी रहे.
– कोई वेबसाइट या एप्प ब्लॉक नहीं हो.
– हर तरह की वेबसाइट को देखने लिए एक समान स्पीड मिले.
नेट न्यूट्रैलिटी खत्म हुई तो
– अलग-अलग वेबसाइट के लिए अलग-अलग स्पीड मिलेगी.
– टेलीकॉम कंपनी से जुड़े एप्प और वेबसाइट ही फ्री हो पायेंगे.
– जिन एप्प, वेबसाइटों के साथ टेलीकॉम कंपनी का करार नहीं, उनके लिए अतिरिक्त पैसे देने होंगे.
– अच्छी स्पीड के लिए भी अलग से भुगतान करना होगा. इससे ग्राहकों का फोन बिल बढ़ेगा.
भारत में कानूनी प्रावधान
एयरटेल के ‘जीरो स्कीम‘ को नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ माना जा रहा है. हालांकि भारत में इसके लिए कोई कानून नहीं होने से इसे गैर-कानूनी नहीं कहा जा सकता है. जानकारों की मानें तो जल्द ही इसके खिलाफ प्रावधान किया जायेगा. देश में फिलहाल नेट न्यूट्रैलिटी के लिए कोई कानून नहीं है.
कंपनियां खिलाफ क्यों
सवाल उठता है कि टेलीकॉम कंपनियां इंटरनेट नेटवर्क की तटस्थता के खिलाफ क्यों हैं? दरअसल, इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां इस बात से परेशान हैं कि नयी तकनीक ने उनके कारोबार के लिए कुछ नयी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
उदाहरण के लिए एसएमएस सेवा को व्हॉट्स एप्प जैसे तकरीबन मुफ्त एप्प ने लगभग खत्म ही कर दिया है. इसलिए वे ऐसी सेवाओं के लिए ज्यादा रेट वसूलने की कोशिश में हैं, जो उनके कारोबार और राजस्व को नुकसान पहुंचा रही हैं. हालांकि, इंटरनेट सर्फिग जैसी सेवाएं कम रेट पर ही दी जा रही हैं.
क्या चाहती हैं कंपनियां
कंपनियों का कहना है कि कॉलिंग और मैसेजिंग जैसे एप्स से होनेवाली कमाई में उनकी भी हिस्सेदारी तय की जाये. उनका कहना है कि इस तरह केएप्स के आने से उनकी आमदनी पर असर पड़ा है.