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बच्चे सेट हो जाएं, ये नेता क्यों न चाहे..

अजीत पांडेय प्रभात खबर, रांची राजनीति में कितनी दुरंगी चालें होती हैं. कदम-कदम पर विरोधाभाषों से सामना होता है. कभी कुछ-कभी कुछ. मान लीजिए किसी जिले में लंबे समय से जीतते आ रहे सांसद या विधायक की अगर आकस्मिक मौत हो जाती है, तो सहानुभूति की लहर दौड़ जाती है. नेता ईमानदार हो और अपने […]

अजीत पांडेय

प्रभात खबर, रांची

राजनीति में कितनी दुरंगी चालें होती हैं. कदम-कदम पर विरोधाभाषों से सामना होता है. कभी कुछ-कभी कुछ. मान लीजिए किसी जिले में लंबे समय से जीतते आ रहे सांसद या विधायक की अगर आकस्मिक मौत हो जाती है, तो सहानुभूति की लहर दौड़ जाती है.

नेता ईमानदार हो और अपने परिजनों को नेतागीरी के लिए तैयार न किया हो तो फिर हर तरफ से सुनना पड़ता है. फलाने नेता की धमक लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हुआ करती थी.

आज के विधायकों और मंत्रियों को हजार पांच सौ की भीड़ जुटाना मुश्किल होती है, अरे उनकी एक आवाज पर चार से पांच हजार लोग तो आराम से जुट जाया करते थे. अब देखो न कितना दुर्भाग्य है कि उनकी ही औलादों ने बाप की ‘विरासत’ को पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया. अरे इतने नकारे और अहमक हैं कि उनकी तो कहीं कोई पूछ ही नहीं.

उनके पिता ने तो उनके लिये लाइन खींच दी थी, बस उस पर उन्हें चलना भर था. अब कोई पूछ-परख नहीं, कोई नामलेवा नहीं. यह तो रहा एक पक्ष सब्र करिए. दूसरा पक्ष भी है अरे देखो न कितना खराब जमाना है. हर तरफ परिवारवाद और भाई-भतीजावाद का बोलबाला है. जिसको देखो वही अपने लड़के-बच्चों को सेट और फिट करने में लगा है.

सारे नेताओं का यही हाल है हम चुनाव जीतें. बाद में बेटा और उसके बाद उसका बेटा. अरे.. जी देश और समाज की तो किसी को फिक्र ही नहीं है. इन नेताओं का वश चले तो अपने कुत्ते-बिल्लियों को भी चुनाव लड़वाने से बाज नहीं आयें.

साहब, यह तो बस बानगी भर है.

हम किसी को भी चैन से जीने नहीं देते. अगर बाप बड़ा, नामचीन और पैसेवाला है, तो लोग उसके बेटे से भी उतनी ही यश-कीर्ति की अपेक्षा रखते हैं. जबकि यह हो नहीं सकता. यह चल ही रहा था कि एक नया मामला सामने आ गया. कुछ दिनों से बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के उत्तराधिकारी को लेकर बड़ी चर्चा चल रही है.

जबकि लालू जी डंके की चोट पर कह रहे हैं कि उनका उत्ताधिकारी उनका बेटा ही होगा, कोई और नहीं. जिसे पार्टी से जाना है, जाये.. दरवाजा खुला है. आजकल वह जनता परिवार को एकजुट करने में जुटे हैं.

लालू समझदार पिता हैं और अब अपने परिवार को सेट और फिट करने में जुटे हैं. हालांकि पहले भी लालू अपने परिवार को फिट करने में जुटे रहे हैं. लोकसभा चुनाव में बेटी को उतारा था. उसके पहले ससुराल पर विशेष कृपा कर रहे थे. अब बेटी को चुनावी सफलता नहीं मिली तो अब पार्टी और संगठन में ही परिवार को सेट कर देना है.

वैसे एक बात मैं भी कहूं ‘मन की बात’ कोई भी हो राजनीति या व्यवसाय में अपनों को आगे बढ़ाता ही है. हां, कुछ लोग आगे बढ़ते हैं, तो कुछ लोग खो जाते हैं. कुल मिला कर अगर कहीं फिट होने का मौका मिले तो हो जाना चाहिए. नहीं तो बाद में लोग कहेंगे.. अरे फलाने ने बाप का नाम ही डुबा दिया.

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