किसी कहानीकार ने एक कैदी का चित्रण करते हुए उससे कहलवाया कि ‘ऐ रोटी, अगर तू बाहर मिल जाती, तो अंदर क्यूं आता?’ यह कहां, कैसे और कब कहा गया, ये तो याद नहीं, पर यह राज्य में उग्रवादियों की सरेंडर पॉलीसी को सरकार द्वारा मंजूरी दिये जाने के संदर्भ में सटीक बैठता है.
सरेंडर पॉलिसी में उग्रवादियों द्वारा आत्मसमर्पण करने पर पांच लाख रुपये तक नकद राशि दी जायेगी. बी ग्रेड के उग्रवादियों को ढाई लाख मिलेगा. मुङो तो लगता है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जहां आतंकवादियों को बिरयानी, अपराधियों को भ्रष्ट नेताओं का साथ और उग्रवादियों को सरेंडर पॉलिसी के तहत मोटा धन मिलता है.
यह समझ से परे है कि क्या सरकार की इस पॉलिसी से राज्य में उग्रवाद कम हो जायेगा? इससे तो उग्रवाद और बढ़ेगा. पहले अपराध करो, फिर गैंग बनाओ, उग्रवाद के नाम पर पुलिस-प्रशासन की नाक में दम करो और फिर सरेंडर के नाम पर लाखों रुपये लेकर घर बैठ जाओ. पैसा कम हो, तो फिर सक्रिय हो जाओ. मेरा कहने का यह अर्थ नहीं कि हथियार डालनेवाले उग्रवादियों का सम्मान नहीं हो. बेशक उन्हें पुरस्कार मिलना चाहिए, लेकिन यदि उन्हें पैसे देने के बजाय सरकारी नौकरी का तोहफा दिया जाये, तो ज्यादा उचित होगा. बेशक उनके बच्चों को स्नातक तक की शिक्षा मुफ्त दी जाए, लेकिन लाखों रुपये पुरस्कार के रूप में देने के बजाय उन्हें राज्य की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बना लिया जाना चाहिए. पूरे देश में 10वीं तक शिक्षा तथा मध्याह्न् भोजन की व्यवस्था है, फिर भी लोग उग्रवाद के दलदल में कूद रहे हैं. इसकी वजह बेरोजगारी है. इस समस्या का समाधान होते ही उग्रवाद में कमी आयेगी. सरकार को चाहिए कि वह उग्रवादियों को पैसा देने के बजाय पेशा दे, तो अच्छा.
विनीता तिवारी, रामगढ़ कैंट