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अब खाने-पीने, देखने सुनने पर भी पाबंदी!

मुंबई का बदलता रूप मुंबई को सपनों का शहर माना जाता है. आजाद और स्वच्छंद, लेकिन सरकारें हैं कि उन्होंने पाबंदियों का दौर-दौरा शुरू कर दिया है, महाराष्ट्र सरकार ने पिछले एक महीने में दो पाबंदियां आम नागरिकों पर लगायीं, पहली उनके खान-पान से जुड़ी है तो दूसरी उनके ‘देखने’ की आजादी से जुड़ी है. […]

मुंबई का बदलता रूप
मुंबई को सपनों का शहर माना जाता है. आजाद और स्वच्छंद, लेकिन सरकारें हैं कि उन्होंने पाबंदियों का दौर-दौरा शुरू कर दिया है, महाराष्ट्र सरकार ने पिछले एक महीने में दो पाबंदियां आम नागरिकों पर लगायीं, पहली उनके खान-पान से जुड़ी है तो दूसरी उनके ‘देखने’ की आजादी से जुड़ी है. इन दोनों पाबंदियों का असर रोजगार और महंगाई पर पड़ रहा है. एक पाबंदी लग चुकी है, दूसरी की तैयारी है. जनता को क्या उसे जो रास्ता दिखाया जायेगा, वह उसी पर चल पड़ेगी. लेकिन ऐसा कब तक होगा, ये तो आनेवाला समय ही बतायेगा.
अनुराग चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र में कई घोषित पाबंदियां हैं, तो कई अघोषित, अघोषित पाबंदियां समाज में स्वीकृत हो चुकी हैं और वे बगैर कानूनी सम्मति के मौजूद हैं, उनका पालन होता है. भारतीय समाज विविधताओं वाला है. मुंबई जैसा महानगर विभिन्न भाषा-धर्म, को माननेवालों का शहर है. यहां भोजन, भजन, भाषा और भूषा के उन चारों मान्य सांस्कृतिक मानकों के लिए अपेक्षाकृत आजादी है. भोजन की जितनी विविधता मुंबई में हैं, उतनी शायद देश के किसी भी महानगर मेंनहीं है.
कई मोहल्लों की ख्याति वहां पर उपलब्ध खान-पान की दुकानों के कारण है. वस्त्रों को लेकर भी मुंबई अपेक्षाकृत ज्यादा आजाद है.
महाराष्ट्र में घोषित पाबंदियों में ‘डांस बार’ पर पाबंदी, ‘गुटका’ पर पाबंदी (रखने और खाने) अब गौ-मांस (रखने और खाने) पर. संभावित पाबंदी में मल्टीप्लेक्स सिनेमा घरों में एक प्राइम शो मराठी फिल्मों का करना होगा.
इसके अलावा अघोषित पाबंदियों में जीजीमाता उद्यान में दाजी लाड़ म्यूजियम में फैशन शो का आयोजन मराठी संस्कृति के खिलाफ है, इस लिए ऐसा नहीं हो सकता. इस तरह के आयोजनों को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने ‘पेज 3’ संस्कृति बताया और आयोजकों को स्थान बदलने पर मंजूर किया. पाकिस्तानी चैनल, पाकिस्तान के संस्कृतिकर्मियों, गायकों पर पाबंदी जारी है.
इसके अलावा महाराष्ट्र में कई हाउसिंग सोसाइटी में मुसलिम किरायेदार न रखने के भी निर्देश हैं. इसी तरह कई जैन-सोसाइटी अपने यहां उन्हीं किरायेदारों और खरीदारों को रखने की हिदायत देते हैं, जो प्याज और लहसुन नहीं खाते हैं. इसका सबसे बुरा असर ‘गिरणगांव’ इलाके की लालबाग बस्ती के आसपास रहने वाले मराठी भाषियों पर पड़ा है, जो कोंकण से आते हैं और पीढ़ियों से इस इलाके में रहते हैं. ‘कॉरपोरेट’ हाउंसिग और लक्जरी घरों के चलते इन्हें अपने पुरखों का घर छोड़ कर जाना पड़ रहा है. मुंबई में भाषा और भोजन से जुड़ी पाबंदियों का विस्तार उनके भवनों यानी आवास पर भी हो रहा है. मुंबई में भूमि की कमी है और भोजन और भाषा के नाम पर बड़ी संख्या में नागरिक उन जगहों पर नहीं रह पाते हैं, जहां पर उन्हें रहने का हक है.
अब नयी पाबंदी फिल्मों को लेकर आती दिखाई दे रही है. भारत सरकार के सेंसर बोर्ड की कड़ी उपस्थिति तो है ही, नये चेयरमैन पहलाज निहलानी ने फिल्मों में कई शब्दों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है. फिल्मों में पात्रों द्वारा सिगरेट पीने पर पाबंदी के अलावा दक्षिणपंथी, स्थानीय प्रादेशिक दलों का अघोषित सेंसर भी है.
हाल ही में एक पराजित स्थानीय पार्टी के नेता ने मुंबई के आगामी बीस वर्ष के विकास पर जारी बहस में भाग लेने के लिए बैठक बुलायी तो बगैर सरकारी हैसियत, बगैर एक भी सीट जीतने वाले इस राजनेता के दरबार में फिल्म अभिनेताओं की कतार लग गयी. इन दो सेंसरशिप के बाद सरकारी आदेश आया कि शाम छह बजे से नौ बजे के बीच मल्टीप्लेक्स सिनेमा घरों में मराठी फिल्मों का प्रदर्शन अनिवार्य होगा. साथ ही फिल्म की शुरुआत में दादा साहेब फाल्के की क्लिप भी दिखानी होगी. राष्ट्रगान की अनिवार्यता पहले ही है. यदि ये शर्ते सिनेमा घर के मालिक पूरी नहीं करेंगे, तो उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा.
फिल्मों से जुड़ी इस पाबंदी से पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने ‘गौ हत्या ’ पाबंदी लाकर जानवरों को सुरक्षित एवं संरक्षित करने का कानून बनाया. महाराष्ट्र सरकार ने 19 वर्ष पहले भाजपा-शिवसेना के शासन के दौरान गौ हत्या पाबंदी का कानून बनाया था, लेकिन वह कांग्रेस सरकार ने लागू नहीं किया. महाराष्ट्र सरकार ने शासन में आने के बाद न केवल गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया, बल्कि बैल के मांस को रखने पर भी बैन लगा दिया.
यदि बाहर के राज्य से भी कोई नागरिक गौ मांस लाता है, तो उसे भी सरकार जुर्माना और सजा दे सकती है. महाराष्ट्र की सीमा से लगे गोवा में यह प्रतिबंध नहीं है, लेकिन गोवा से मुंबई मांस लाकर खाना अपराध है. इसी तरह का कानून गुटका को लेकर भी है. यदि कोई दुकानदार अपनी दुकान में गुटका रखता है, तो उसे न केवल सजा मिलेगी बल्कि उसका लाइसेंस भी जब्त हो सकता है.
गुटका खाने से महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री आरआर पाटील हाल ही में दिवंगत हो गये. तासगांव के विधायक पाटील को कैंसर हो गया था. राष्ट्रवादी कांग्रेस के सुप्रीमो शरद पवार को भी गुटका खाने से कैंसर हो गया था. इन दोनों राजनेताओं का कैंसर महाराष्ट्र में गुटका प्रतिबंध का कारण बना. यह अलग बात है कि बारावती के नजदीक अहमदनगर के भाजपा सांसद दिलीप कुमार गांधी यह कह रहे हैं कि तंबाकू और कैंसर के रिश्तों की जांच पड़ताल नहीं हुई है.
महाराष्ट्र में सबसे विवादित और चर्चित पाबंदी ‘डांस बार’ पर प्रतिबंध से लगी. इस बैन को ‘मोरल पुलिसिंग’ का नाम दिया गया. एक ओर कहा गया कि मुंबई स्वच्छंद शहर है, यहां हरेक को अपनी पसंद से जीने की आजादी है, लेकिन जब समाजशास्त्रियों ने यह रेखांकित किया कि डांस बार के कारण कई परिवार बरबाद हो रहे हैं, कई विवाह समाप्ति के कगार पर हैं, तो सरकार जागी. दूसरा एक बड़ा कारण हाइवे बन जाना भी रहा. महाराष्ट्र के संपन्न मराठा राजनेताओं के परिवार के सदस्य एक-दो घंटे के सफर के बाद इन ‘डांस बार’ में पहुंचने लगे. जब यह ‘आग’ इन नेताओं के द्वार तक आ गयी, तो पाबंदी की बात हुई.
गौ हत्या पर पाबंदी भी राजनीतिक है. सांप्रदायिक राजनीति में गौ का बहुत महत्व है. भारतीय धार्मिक चेतना में गऊ का स्थान माता का है पर गौ मांस का निर्यात भारत से सर्वाधिक है. उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत के दो राज्यों में गऊ मांस बैन नहीं है, गोवा, केरल भी उनमें शामिल हैं. महाराष्ट्र में इन दिनों सत्तारूढ़ पार्टियों में भाषा और धर्म के नाम पर ज्यादा उग्र होने की होड़ लगी हुई है.
इन पाबंदियों पर विरोध करने वाले अदालत का दरवाजा खटखटा चुके हैं.
मराठी के नाम पर राजनीति करने वालों का विरोध मराठी भाषी लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और ‘मराठी मानुस’ कर रहे हैं. भारत के संविधान में प्रदत्त बराबरी की स्वंत्रता के 19 (1) और अनुच्छेद 14 को लेकर कानून के जानकार मान रहे हैं कि सरकार के लिए इस कानून को अमल करवाना आसान नहीं होगा. एक तरफ शिवसेना मुंबई की ‘नाइट लाइफ’ को रंगीन बनाने बनाने के लिए मॉल और दुकानें पूरी रात खुली रखना चाहती है, वहीं इस प्रस्ताव पर सवाल करते हुए बांबे हाइकोर्ट ने पुलिस विभाग से पूछा है कि क्या उसके पास कानून-व्यवस्था बनाये रखने की पर्याप्त व्यवस्था है?
आपको अपनी पसंद का भोजन करने और फिल्म देखने की आजादी हो या फिर सरकार तय करे कि आप क्या खायेंगे? क्या देखेंगे? महाराष्ट्र में सरकार और विधायिका के सामने शोभा डे जैसी जानी-मानी लेखिका ने यह सवाल उठाया, तो उन्हीं के खिलाफ एक दल के लोग पिल पड़े. अब सुनने में आया है कि सरकार कुछ रियायत देने के मूड में आ गयी है. देखना है कि मुंबई का समाज-सरकार सहिष्णु बनता है या बहुमत तय करेगा कि क्या देखो, क्या मत देखो. क्या खाओ, क्या नहीं..

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