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अच्छी पहल: ऑन स्पॉट फैसला ले रही नारी अदालत

पटना: दहेज प्रताड़ना, सामाजिक हिंसा, बाल विवाह जैसी कुरीतियां आज भी हमारे समाज में धड़ल्ले से चल रही हैं. कुछ मामले पुलिस तक पहुंचते हैं, तो कुछ दबा दिये जाते हैं. सामाजिक कुरीतियां दूर हो, उनका समाधान निकले, इसे लेकर महिलाओं ने अपनी ‘नारी अदालत’ बना रखी है. महिला सामाख्या के अंतर्गत चल रही नारी […]

पटना: दहेज प्रताड़ना, सामाजिक हिंसा, बाल विवाह जैसी कुरीतियां आज भी हमारे समाज में धड़ल्ले से चल रही हैं. कुछ मामले पुलिस तक पहुंचते हैं, तो कुछ दबा दिये जाते हैं. सामाजिक कुरीतियां दूर हो, उनका समाधान निकले, इसे लेकर महिलाओं ने अपनी ‘नारी अदालत’ बना रखी है.

महिला सामाख्या के अंतर्गत चल रही नारी अदालत में स्थानीय महिलाओं को ही रखा जाता है. इसका गठन वर्ष 2006 में किया गया था. फिलहाल सूबे के 22 जिलों में नारी अदालत चल रही है. इनमें 24192 महिलाएं नारी अदालत से जुड़ी हुई हैं. हर साल जहां नारी अदालत में इजाफा हो रहा है, वहीं इसमें महिलाओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही हैं.

प्रताड़ना के खिलाफ फोकस
नारी अदालत का मुख्य फोकस गांव स्तर पर महिलाओं के साथ हो रही प्रताड़ना को सुलझाना है. शुरुआत में नारी अदालत खुद ही किसी केस को सुलझाने का प्रयास करती है. अगर कोई मामला फंस जाता है, तो ऐसे में वह दूसरी संस्थाओं से मदद लेती है. कोर्ट, वकील, विभागीय सरकारी पदाधिकारी, स्थानीय पुलिस, महिला हेल्पलाइन आदि से सहयोग लेकर मामलों को लोकल लेवल पर सुलझाया जाता है. नारी अदालत मुख्य रूप से दहेज संबंधी, घरेलू हिंसा, पति प्रताड़ना, सामाजिक हिंसा, बाल विवाह, सास-बहू विवाद आदि का निबटारा खुद करती है.

वहीं दुष्कर्म, भूमि विवाद जैसे मामलों में सहयोगी संस्थाओं से मदद ली जाती है. हम भले ही बाल विवाह को गलत मानते हैं, लेकिन आज भी हमारे समाज में यह काफी संख्या में हो रही है. यह हम नहीं, बल्कि नारी अदालत में मामलों की आयी सूची बयां कर रही है. बिहार के 22 जिलों में चलनेवाली नारी अदालत में बाल विवाह के ऐसे 783 मामले सामने आये, जिनमें शादी हो चुकी थी. वहीं 1343 मामलों में नारी अदालत ने बाल विवाह होने से रोका. नारी अदालत के अनुसार उन 22 जिलों में सबसे अधिक 299 बाल विवाह सीतामढ़ी में हुआ है और सबसे अधिक 313 मामले इसी जिले में रोके गये.

केस
वन
11 साल की फिरदौस की शादी उसके परिवारवालों ने ठीक कर दी. मुजफ्फरपुर के बोचहां प्रखंड स्थित पटियासा गांव की रहनेवाली फिरदौस ने बाल विवाह करने की बात अपने स्कूल के शिक्षकों को बतायी. मध्य विद्यालय, पटियासा ने इसकी जानकारी नारी अदालत को दे दी. इस पर नारी अदालत ने उसके माता-पिता को समझाया. काफी प्रयास के बाद फिरदौस की शादी रुकी. अदालत ने माता-पिता को सख्त हिदायत देते हुए फैसला सुनाया कि 18 साल से पहले फिरदौस की शादी नहीं की जाये.
केस
टू
शोभा कुमारी की शादी एक साल पहले 2014 में हुई. बांका के बड़का गांव की रहनेवाली शोभा कुमारी की शादी के दो दिनों के बाद ही ससुराल वालों ने दहेज नहीं देने के कारण उसे मानसिक विक्षिप्त घोषित कर दिया. साथ ही शोभा को ससुराल के लोगों ने घर से भी निकाल दिया. इसकी सूचना नारी अदालत के पास पहुंची. नारी अदालत ने विशेष बैठक बुलायी. सास-ससुर को समझाया गया. नारी अदालत ने फैसला सुनाया कि शोभा को ससुराल में रहते हुए किसी तरह की हानि होगी तो थाने में केस किया जायेगा.

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