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एक अपरिपक्व सम्मान का प्रौढ़ होना

आधे एशिया और आधे अफ्रीका में चल रहे युद्ध मात्र अमेरिका की इच्छा या कोशिश से नहीं रुक सकते, लेकिन किसी शांति का प्रयास नहीं करना बचकाना होगा. सौभाग्य की बात है कि किसी कोने में समझदारी काम कर रही है. अपने किशोरावस्था में चल रही इस शताब्दी के छोटे रहस्यों में एक रहस्य यह […]

आधे एशिया और आधे अफ्रीका में चल रहे युद्ध मात्र अमेरिका की इच्छा या कोशिश से नहीं रुक सकते, लेकिन किसी शांति का प्रयास नहीं करना बचकाना होगा. सौभाग्य की बात है कि किसी कोने में समझदारी काम कर रही है.

अपने किशोरावस्था में चल रही इस शताब्दी के छोटे रहस्यों में एक रहस्य यह भी है कि अपने कार्यकाल के शैशवावस्था में एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2009 में शांति का नोबेल पुरस्कार कैसे पा लिया. बराक ओबामा ने तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश, जिनसे मतदाता थक चुके थे, को चुनाव में हराने से अधिक कुछ भी उल्लेखनीय काम नहीं किया था. ओबामा ओजस्वी थे, उनकी जीत सनसनीखेज थी, लेकिन ये आधार काफी नहीं हो सकते थे, जिन पर नोबेल कमिटी बड़ी धनराशि के साथ उन्हें नोबेल सम्मान प्रदान करे.

राष्ट्राध्यक्षों को पेंशन कोष के साथ ऐसे पूरक लाभ मिलते रहे हैं, परंतु इससे पहले उन्हें दुनिया कहे जानेवाले धृष्ट पड़ोस के अंधेरे कोनों में बहुत कुछ उछल-कूद करनी पड़ती है. व्यंग्यकारों की बड़ी जमात की नजर में ओबामा के इस पुरस्कार के लिए बुश ही बहुत बड़े कारण थे. इराक युद्ध के मुख्य रचनाकार होने के नाते बुश युद्धोन्मादियों की सूची में पहले स्थान पर थे. जो कोई भी उनके हिंसक बाजों को व्हाइट हाउस के घोंसले से बाहर कर देता, उसे स्वाभाविक रूप से शांति स्थापित करनेवाला मान लिया जाता. इसलिए ओबामा को सम्मान दिया गया.

बहरहाल, छह साल बाद ओबामा ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों के भावी आत्मविश्वास को सही साबित किया है. उन्होंने और जॉन केरी ने ईरान के साथ जो परमाणु करार किया है, वह रणनीतिक समझौतों के आधुनिक इतिहास में एक उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में जाना जायेगा. साधारण स्तर पर, इसने ईरान को कम-से-कम तीन वर्ष की तय अवधि के लिए अपनी विकसित परमाणु क्षमता को हथियार कार्यक्रम में बदलने से रोक लिया है. तीन वर्ष लंबा समय होता है. इस समझौते ने क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में ईरान की वैधानिक भूमिका को बहाल किया है, तथा ईरान द्वारा परोक्ष रूप से अलग-थलग होकर किसी अतिवाद, या खतरनाक रूख लेने की आशंका को समाप्त कर दिया है. प्रतिबंधों को हटा कर इसने ईरान को वापस अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य में शामिल किया है. इसने उस विषाक्त माहौल को समाप्त किया है, जिसने 1979 से ही ईरान-अमेरिका संबंधों को कुप्रभावित किया हुआ है, जब अमेरिका के समर्थक ईरान के शाह को जनांदोलन द्वारा हटा दिया गया था और अमेरिकी राजनयिकों को बंधक बना लिया गया था.

यह समझौता कई महीनों से तय था. इसका सबूत राजनयिकों के बयानों में नहीं, बल्कि इराक की युद्धग्रस्त धरती पर देखा जाना चाहिए. इराक की कथा में उतार-चढ़ाव को अभी इतिहासकार का इंतजार है, क्योंकि अभी वह पूरी नहीं हुई है. उत्तरी इराक में सुन्नी इसलामिक स्टेट का उदय, जिसके कब्जे में बड़ा क्षेत्र है और वह तबाही का केंद्र बनने की क्षमता रखता है, क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्थिरता के लिए बड़े खतरों में से एक है. करीब साल भर पहले इस विद्रोह ने बगदाद की सेना को बरबाद कर दिया था और राजधानी पर कब्जा करने की स्थिति में था. युद्ध ऐसे गंठबंधन बना देता है, जो शांति की स्थिति में अकल्पनीय होते हैं. चिंतित अमेरिका और शिया ईरान इसलामिक स्टेट के खिलाफ इस हद तक परस्पर सहयोग कर रहे हैं कि इसे न वे स्वीकार करेंगे और न ही इससे इनकार करेंगे. ईरान को अमेरिकी हवाई शक्ति और अमेरिका को ईरानी थल सेना की जरूरत थी. माना जा रहा है कि ईरान ने इराक में एक लाख ‘वोलंटियर’ भेजा है. ईरानी जनरलों और सेना के नेतृत्व के बिना बगदाद निश्चित रूप से इसलामिक स्टेट के कब्जे में चला जाता. तिकरित पर अमेरिका-ईरान संयुक्त हमले की सफलता एक निर्णायक मोड़ है.

इस सहयोग का यह अर्थ नहीं है कि दोनों हर उद्देश्य पर सहमत हैं. अमेरिका को गंभीर सऊदी चिंता की भी परवाह करनी है, जो यमन में ईरान-समर्थित हूती शिया बढ़त को रोकने की कोशिश में है. इराक की सफलता ईरान को यमन और बहरीन के शिया-बहुल क्षेत्रों में बढ़ने के लिए उकसा सकती है. ऐसे में सऊदी व अन्य सुन्नी सरकारें चुप नहीं रह सकतीं. अमेरिका के लिए आदर्श स्थिति ईरान को इराक तक सीमित रखने की हो सकती है, पर वहां हर कथानक उसके हिसाब से तो लिखा नहीं जा रहा है. वहां के लोग अपने तरीके से कथानक लिखते हैं, जिनमें से कई तो 1,400 साल पुरानी यादों पर आधारित होते हैं. आधे एशिया और आधे अफ्रीका में चल रहे युद्ध मात्र अमेरिका की इच्छा या कोशिश से नहीं रुक सकते, लेकिन किसी शांति का प्रयास नहीं करना बचकाना होगा. सौभाग्य की बात है कि किसी कोने में समझदारी काम कर रही है.

नोबेल शांति पुरस्कार समिति के लिए एक वैधानिक चेतावनी : कृपया दूसरा पुरस्कार न दें. ओबामा की आलमारी के लिए एक पुरस्कार ही बहुत है. एक सम्मान अयातुल्ला खामनेई को भले दिया जा सकता है, हालांकि, मुङो संदेह है कि वे इसे स्वीकार करेंगे. वे शायद इस पर खुल कर हंसेंगे. (अनुवाद : अरविंद कुमार यादव)

एमजे अकबर

प्रवक्ता, भाजपा

delhi@prabhatkhabar.in

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