बिहार में राष्ट्रीय राजमार्गो (एनएच) की स्थिति पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न केवल केंद्र सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर की है, बल्कि उन्होंने पथ निर्माण विभाग को जजर्र एनएच के किनारे यह साइन बोर्ड भी लगाने को कहा है कि ‘यह सड़क केंद्र की है’. उनकी इस नाराजगी को एनएच के रखरखाव के प्रति लंबे समय से बरती जा रही उपेक्षा के संदर्भ में समझने की जरूरत है. पिछले सात-आठ वर्षो में बिहार में जो विकास दिखा, उसमें सर्वाधिक योगदान सड़कों और पुल-पुलियों के निर्माण का रहा है. इसका परिणाम यह है कि कई राज्य पथ (एसएच) राष्ट्रीय राजमार्गो से बेहतर स्थिति में हैं.
राज्य की कई सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग तो घोषित किया गया, लेकिन मानक के अनुरूप न तो उनका निर्माण किया जा रहा है और न ही उनका रखरखाव हो रहा है. एनएच के रखरखाव की जिम्मेवारी केंद्र की होती है. जिन लोगों ने पटना-आरा (एनएच 30), आरा-बक्सर (एनएच 84) या बख्तियारपुर- खगड़िया (एनएच 31) मार्ग पर यात्र की होगी, वे एनएच की जजर्र स्थिति से वाकिफ होंगे. दूसरे राज्यों में, जहां चार व छह लेनवाले एनएच का निर्माण हो रहा है, वहीं बिहार में अभी भी 839 किलोमीटर सिंगल रोडवाले एनएच हैं. ऐसी सड़कों की चौड़ाई कम होने के कारण स्वाभाविक तौर पर उन पर ट्रैफिक जाम की समस्या रहती है.
मुख्यमंत्री की पीड़ा की वजह यह भी है कि जजर्र एनएच पर चलने वाले आम लोग इसका ठीकरा राज्य सरकार के मत्थे फोड़ते हैं. आखिर किसी और की सुस्ती का खमियाजा कोई और क्यों भुगते? पिछले छह-सात वर्षो में पथ निर्माण विभाग ने केंद्र से एनएच की मरम्मत के लिए 3337 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने महज 1082 करोड़ रु पये ही दिये. बिहार सरकार ने एनएच की मरम्मत पर अपने कोष से 969 करोड़ खर्च किये. यह राशि भी केंद्र सरकार नहीं दे रही है. किसी भी राज्य में सड़कों का नेटवर्क उसके विकास का आईना होता है. राज्य सरकार यदि सड़कों के बेहतर रखरखाव के लिए लगातार प्रयासरत है, तो केंद्र सरकार को भी कदम बढ़ाने होंगे. वैसे भी रोड कनेक्टिविटी के मामले में बिहार राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है. प्रति लाख आबादी पर देश में सड़कों की लंबाई 388 किमी है, वहीं बिहार में 175 किमी है.