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डोमपाड़ा से प्रेमचंद नगर बना, फिर भी कबूतरखाना

शहर की सफाई करने वालों की खुद की जिंदगी नारकीय, सरकारों की अनदेखी के कारण मूल सुविधाएं नदारद धनबाद : धनबाद स्टेशन से महज एक किलोमीटर दूर पुलिस लाइन से सटी दलितों की बस्ती है प्रेमचंद नगर. तीन पुस्तों से दलित के परिवार यहां रह रहे हैं. साफ-सफाई कर यहां के लोग अपना व अपने […]

शहर की सफाई करने वालों की खुद की जिंदगी नारकीय, सरकारों की अनदेखी के कारण मूल सुविधाएं नदारद
धनबाद : धनबाद स्टेशन से महज एक किलोमीटर दूर पुलिस लाइन से सटी दलितों की बस्ती है प्रेमचंद नगर. तीन पुस्तों से दलित के परिवार यहां रह रहे हैं. साफ-सफाई कर यहां के लोग अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. कोई निगम में सफाई मजदूर हैं तो कोई दैनिक मजदूर. यहां की आबादी लगभग दो हजार है.
वर्षो पहले दलितों के लिए कुछ जमीन सरकार ने दी थी. जमीन उतनी ही रही. घर बनते गये और अब इतना सघन हो गया है कि सभी घरों में न रोशनी जा पाती है और न पर्याप्त हवा. बस्ती से सटा सरकारी स्कूल है, लेकिन जागरूकता के अभाव में कम बच्चे ही शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं. सरकारों की अनदेखी के कारण मूलभूत सुविधाएं भी यहां उपलब्ध नहीं. नतीजतन, शहर की साफ-सफाई का जिम्मा जिनके कंधों पर है, वे खुद गंदगी में जीने को विवश हैं. न तो शौचालय है और न ही नाली व सड़कें. मगर तीन पीढ़ियां ऐसी ही व्यवस्था में जी रही है.
पचास के दशक में सफाई कर्मचारियों को बसाया गया : पचास के दशक में नगरपालिका के चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों को यहां बसाया गया. यहां निगम के 20-30 स्थायी मजदूर रहते हैं. इसके अलावा दो सौ से अधिक दैनिक मजदूर के परिवार हैं. वर्षो पहले निगम की ओर से आवास बनाया गया था. लेकिन आज जजर्र हालत में है. कई सफाई मजदूरों की छत गिर गयी हैं.
तिरपाल से ढंक कर जैसे-तैसे जीवन काट रहे हैं. इन आवास पर सफाइकर्मियों को दो हजार रुपया आवास भत्ता भी लगता है. बरसात में तो प्रेमचंद नगर की स्थिति और भी भयावह हो जाती है. बारिश का पानी तो टपकता ही है. नाली का पानी भी घरों में घुस जाता है.

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