जन्म लेने वाला हर बच्चा बस एक इनसान होता है. न तो वह गरीब-अमीर होता है और न किसी जाति व धर्म का. यह तो उसके पालक, समाज और शासन व्यवस्था हैं जो उसे ऐसी तमाम श्रेणियों में बांटते हैं. हमारे देश में गरीबी रेखा से लेकर आरक्षण तक जीवन स्तर की इतनी श्रेणियां हैं कि शायद ‘गूगल’ भी आसानी से न ढूंढ़ पाये. वास्तव में हमारी सुविधाचारिता ने ही हमें इस मंझधार में ला खड़ा किया है. बाकी कसर हमारे इर्द-गिर्द का सामाजिक और राजनीतिक ताना-बाना पूरी कर देता है.
वास्तविकता जो भी हो, मगर इतना तो सच है कि गरीबी हमारी मिट्टी में ही उपजती है. तभी तो देश की एक बहुत बड़ी आबादी सब्सिडी की मोहताज है. दाल-भात, पानी-बिजली, मकान-कपड़े और रसोई गैस यानी कि जिंदगी की हर जरूरत सब्सिडी के भरोसे है. आखिर क्यों सब्सिडी हमारी जरूरत बन गयी है? जवाब बिल्कुल आसान है, क्योंकि हम गरीब हैं.
गरीबी दूर करने का सरकारी शॉर्टकट उपाय सब्सिडी ही तो है. पिछले सात दशकों से बस गरीबी दूर करने के ही उपाय होते रहे. आश्चर्य तो यह कि आजादी की आधी सदी बीत जाने पर भी न तो सब्सिडी कम हुई, न ही गरीबी. गरीबी पैदा न हो इसके लिए अब तक कोशिश ही नहीं हुई.
देश के प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की कि सब्सिडी वाला गैस लेना छोड़ दें. हमें भी खैरात पर जीना अच्छा नहीं लगता. मगर क्या करें, हमारी मजबूरियां हमें सिर उठा कर जीने नहीं देतीं. जब तक समाज में सब्सिडाइज्ड और नॉन-सब्सिडाइज्ड वर्ग रहेगा, हमारी यही पहचान रहेगी. ‘मिशन दस करोड़’ के एक मिस्ड कॉल से लोगों को गरीबी-मुक्त भारत का सदस्य बना पायें, तो लोग सब्सिडी लेना छोड़ दें.
एमके मिश्र, रातू, रांची