वित्तीय वर्ष 2014-15 समाप्त हो गया है. कल यानी बुधवार से नया वित्तीय वर्ष शुरू हो रहा है. लेकिन बीते वित्तीय वर्ष पर गौर करें, तो यह निराशाजनक मालूम पड़ता है. योजना मद के करीब सात हजार करोड़ रुपये सरेंडर होने का अनुमान है. यानी राज्य सरकार ने मिला पैसा खर्च ही नहीं किया.
जाहिर है इसका सीधा असर विकास योजनाओं पर पडा होगा. सात हजार करोड़ कम नहीं होते. अब सवाल है कि आखिर राशि सरेंडर होने की नौबत क्यों और कैसे आयी? इसके लिए क्या कोई जवाबदेह होगा? क्या किसी की जवाबदेही तय की जायेगी? ये सब कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब हर कोई जानना-समझना चाहेगा. बहरहाल, राशि तो सरेंडर हो चुकी है. अब हाय-तौबा करने से कोई फायदा हो, इसके भी आसार नहीं दिखते.
वित्तीय वर्ष 2014-15 में योजना मद का कुल बजट 26386 करोड़ रुपये था. इनमें से फरवरी माह तक विभिन्न विभागों ने 12160 करोड़ रुपये खर्च कर लिये थे. यानी मार्च महीने में खर्च करने के लिए 14226 करोड़ रुपये शेष बचे थे. ऐसे में सरकार के पास एक ही रास्ता होता है और वह है मार्च महीने में बंपर खर्च करना. वर्तमान सरकार भी हर वित्तीय वर्ष की तरह इस बार भी मार्च महीने में बंपर खर्च से नहीं बच सकी. फिर ऐसी ही परिस्थिति में मार्च लूट की संभावना बढ़ती है. मार्च लूट न हो इसके लिए तमाम आला अधिकारी से लेकर सरकार की ओर से तरह-तरह के फरमान जारी किये जाते हैं. लेकिन होता वही है, जो वर्षो से होता चला आ रहा है.
अब, जबकि राज्य में काफी अरसे के बाद स्थायी सरकार बनी है और नये वित्तीय वर्ष की भी शुरुआत हो रही है, तो ऐसे में विकास मद की राशि शत-प्रतिशत खर्च हो, यह सुनिश्चित कराना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. साथ ही खर्च अधिक से अधिक हो, इसके लिए सरकार के स्तर से ठोस प्लानिंग की जानी चाहिए. प्लानिंग को अमल में लाने के लिए संबंधित अधिकारियों और कर्मियों की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए. नहीं तो हर वर्ष मार्च महीने में राशि सरेंडर होगी और राज्य विकास से अछूता रहेगा. कुल मिला कर जो बीत गयी, वो बात गयी. अब आगे से ऐसा न हो, इसकी पुख्ता व्यवस्था की जाये. यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.