मानव तस्करी एक बेहद सुनियोजित, संगठित और कमाऊ अपराध है. इसमें शामिल लोग हमारे घर के आसपास के लोग, पुलिस, नेता, उद्योगपति, माफिया, अपराधी किस्म के लोग हैं. कानून की स्पष्टता या प्रभावी कानून से क्या होगा, जब उसके क्रियान्वयन की प्रतिबद्धता का अभाव हो. मानव तस्करी का 95 फीसदी हिस्सा यौन दासता में धकेला जा रहा है. समाज में यह छुप-छुप कर हो रहा है.
पकड़े जाने पर छूटने के कई उपाय हैं. अधिकांश लोग यौन दासियों और दासों को इंसान ही नहीं मानते. समाज और घर के लोग पुनर्वास के लिए आने पर इन्हें दोषी मानते है. फलत: इन लोगों के पुनर्वास के नाम पर शारीरिक और मानिसक शोषण होता है. काम का अभाव, लोगों का पाखंडी आचरण, अपराध का औद्योगीकरण समस्या को और भी विनाशक बना रहा है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
रमेश कुमार, ई-मेल से