स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की बहाली का फैसला सरकार का ही है. बहाली से पहले योग्यता तय करनी पड़ती है. उर्दू के लिए जो योग्यता थी, वैसे अभ्यर्थी ही नहीं मिल रहे थे. इस योग्यता को कम किया गया है. साफ लगता है कि लोग उर्दू पढ़ना बंद कर दिये थे या कम कर दिये थे. उन्होंने कहा कि बिहार कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से उर्दू पदों को भरने की प्रक्रिया चल रही है.
स्नातक स्तरीय परीक्षा हो चुकी है और इंटर स्तरीय परीक्षा होने वाली है. पहले उर्दू के रिक्त पदों को भरा जा रहा है. इसके बाद अनुमंडल, जिला समेत विभागों में उर्दू जानने वालों की बहाली की जायेगी. इसके लिए पदों का सृजन किया जायेगा और बहाली होगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि उर्दू में आवेदन लिये जायेंगे और उसी में उसके जवाब भी दिये जायेंगे. उर्दू में रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था समेत थाना में उर्दू में ही एफआइआर लिखने का भी काम होना चाहिए. उर्दू और हिंदी दोनों भाषा बहनें हैं. उर्दू वाक्य को अमीर बनाती है, जबकि हिंदी उसे आगे बढ़ाती है. देश को आजादी हंिदूी-उर्दू ने मिल कर दिलायी थी. नीतीश कुमार ने बिना किसी का नाम लिये कहा कि कुछ लोग हिंदी बोलने में उर्दू का इस्तेमाल नहीं करते. इससे उनका असर नहीं पड़ता है.
वे वैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो हम लोगों की समझ में नहीं आता, लेकिन हम वही शब्द इस्तेमाल करते हैं, जो समझ में आता है. हिंदी में उर्दू के बहुत ऐसे शब्द हैं, जिनका हम उपयोग करते हैं. समारोह में अब्दुल मन्नान ताजी ने सीएम नीतीश कुमार की तारीफ में ‘बिहार वालों के हैं मसीहा, जनाब-ए-आली..नीतीश बाबू वजीरे आला, जनाब-ए-आली..’ पढ़ा. इस मौके पर उर्दू के क्षेत्र में लेखनी के लिए 11 लेखकों को 25-25 हजार रुपये का चेक दिया गया. सीएम ने मासिक पत्रिका भाषा संगम का भी विमोचन किया. समारोह में इमारत-ए-शरिया के हजरत मौलाना निजामुद्दीन, एदार-ए-शरिया के हजरत मौलाना शमीशुद्दीन अहमद मुनाएवी, प्रो. अख्तरूल वासे, मंत्री श्याम रजक, नौशाद आलम, जावेद इकबाल अंसारी, विधान पार्षद सलीम परवेज, गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी, कैबिनेट सचिव बी. प्रधान, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डी. एस. गंगवार समेत अन्य मौजूद थे.