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4000 आइआरबी जवानों को रखा अलग

सुरजीत सिंह रांची : नक्सलियों से लड़ने के लिए बनी इंडिया रिजर्व बटालियन (आइआरबी) के करीब चार हजार जवानों को नक्सल विरोधी अभियान में लगाया ही नहीं लगाया गया. जवानों को बटालियन मुख्यालय या थानों की सुरक्षा में रखा जाता रहा. कई बार तो कानून-व्यवस्था को बनाये रखने के लिए शहर में भी उनकी तैनाती […]

सुरजीत सिंह
रांची : नक्सलियों से लड़ने के लिए बनी इंडिया रिजर्व बटालियन (आइआरबी) के करीब चार हजार जवानों को नक्सल विरोधी अभियान में लगाया ही नहीं लगाया गया. जवानों को बटालियन मुख्यालय या थानों की सुरक्षा में रखा जाता रहा. कई बार तो कानून-व्यवस्था को बनाये रखने के लिए शहर में भी उनकी तैनाती कर दी गयी, जबकि आइआरबी के जवान नक्सल विरोधी अभियान के लिए ट्रेंड किये गये हैं. इससे संबंधित एक रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को मिली है. रिपोर्ट के आधार पर पुलिस मुख्यालय के स्तर से कार्रवाई शुरू की गयी है.
रिपोर्ट के मुताबिक आइआरबी के जवान जिलों की पुलिस को उपलब्ध कराये गये हैं, लेकिन जिलों के एसपी के द्वारा फोर्स का इस्तेमाल नक्सल विरोधी अभियान में नहीं किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक झारखंड में केंद्र सरकार की मदद से आइआरबी के पांच बटालियन का गठन किया गया है. इन पांच बटालियन में 34 कंपनी फोर्स है. एक कंपनी में 130 जवान होते हैं. इस तरह आइआरबी में करीब 44 सौ जवान हैं. जवानों के वेतन पर हर माह तकरीबन 11.00 करोड़ रुपये (एक माह का वेतन करीब 25 हजार रुपये) खर्च होते हैं.
केंद्र देता है खर्च का हिस्सा: नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों पर निर्भरता कम हो और राज्यों की पुलिस खुद के भरोसे मुकाबला कर सके, इसके लिए केंद्र सरकार राज्यों में आइआरबी के गठन में मदद करती है. इसके गठन पर होनेवाले खर्च का 70 प्रतिशत तक की राशि केंद्र सरकार वहन करती है. गठन के पांच साल तक केंद्र सरकार खर्च में हिस्सा देती है. पांच साल बाद फोर्स का खर्च राज्य सरकार को उठाना होता है.
नहीं चेते पुलिस के अफसर
वर्ष 2013 में एडीजी जैप कमल नयन चौबे ने अक्तूबर 2012 से अप्रैल 2013 तक आइआरबी के जवानों के कार्यो का मूल्यांकन किया था. इसमें यह बात सामने आयी थी कि सात माह में जवानों का 7140 मानव दिवस होता है, लेकिन जिलों के एसपी ने सिर्फ 1036 मानव दिवस में ही इनका इस्तेमाल किया. मतलब सिर्फ 14.50 प्रतिशत दिन ही जवानों का इस्तेमाल हुआ था. इसमें भी अधिकांश दिन जवानों को नक्सल विरोधी अभियान के बजाय कानून-व्यवस्था की डय़ूटी में लगाया गया. एडीजी ने अपनी रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को भेजी थी.

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