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जल दिवस पर विशेष: जल का चक्र ही जीवन का चक्र

डॉ हेम श्रीवास्तव पारितंत्र में जीवन पैदा होगा या नहीं, इसके निर्धारण में सबसे महत्वपूर्ण तत्व पानी है. पृथ्वी पर जीवन है, तो इसलिए कि यहां पानी है. पानी है, तो यहां जीवन है. जब तक पानी नहीं था, जीवन भी नहीं था. आगे चल कर अगर पानी खत्म हुआ, तो जीवन भी वहीं पर […]

डॉ हेम श्रीवास्तव
पारितंत्र में जीवन पैदा होगा या नहीं, इसके निर्धारण में सबसे महत्वपूर्ण तत्व पानी है. पृथ्वी पर जीवन है, तो इसलिए कि यहां पानी है. पानी है, तो यहां जीवन है. जब तक पानी नहीं था, जीवन भी नहीं था. आगे चल कर अगर पानी खत्म हुआ, तो जीवन भी वहीं पर खत्म होगा. पानी जहां दूषित हुआ, वहां जीवन मिटने लगता है, चाहे आदमी हो या मवेशी हो या फिर घास ही क्यों न हो. पृथ्वी के अलावा उन्हीं ग्रहों पर जीवन की कल्पना की जाती है, जहां पानी हो. जो ग्रह तप रहे हैं, वहां पानी नहीं बना अभी तक और इसी वजह से वहां जीवन भी नहीं है.
भविष्य में ये ग्रह कभी ठंडे होंगे, तब वहां पानी निर्मित होगा और जीवन पनपेगा उसके ही बाद.हमारी धरती इस मामले में धनी है. इसका सत्तर फीसदी भाग जलमंडल है. थलमंडल के पाताल में भी पानी है. इसके अलावा धरती को घेरे हुए, जो हवामंडल है, वही भी पानी से तर है. यह पानी जलवाष्प के रूप में है. यहां पानी ज्यादा हुआ, तो बादल बन जाते हैं और धरती के आकाश में यहां-वहां विचरते हैं. हां, ये हर जगह बरसते नहीं, जाते वहीं हैं, जहां हवा ले जाये.
ध्यान से देखें, तो पृथ्वी पर जल का एक चक्र अनवरत चलता रहता है. पानी एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित होता रहता है और इधर से उधर प्रवाहित होता है. कुछ पठारों और मरूस्थलों को छोड़ कर लगभग पूरी पृथ्वी पानी से तर है. पातल हो या धरातल या फिर आकाश ही क्यों न हों, पानी की धरायें चलती हैं.
यह पानी का भंडार ही है, जो तरह-तरह की भौतिक चोटों का धरती पर प्रभाव नहीं पड़ने देता. भूकंप कितने भी बड़े हों, उनका बड़ा हिस्सा पानी द्वारा ङोल लिया जाता है. इस तरह यह रबर की भांति शॉक एब्जॉर्बर का काम करता है. ज्वालामुखियों से पैदा हुई अतिशय गरमी भी यदि पानी द्वारा न सोखी जाये, तो उसका प्रभाव न जाने कितना अधिक होगा. इसी प्रकार, सूर्य से आनेवाली गरमी या इनसोलेशन को भी बादल और वायुमंडल में व्याप्त वाष्प कम कर देते हैं, जिस कारण गर्मी कट-छन कर ही धरातल तक पहुंचती है.
भूगर्भ का जल पेड़-पौधों की जड़ों, नदी, झरनों और ताल-तलैयों आदि के मार्फत पहले धरातल और फिर वायुमंडल तक चला जाता है, जहां से वह वापस वर्षा के माध्यम से इन्हीं स्नेतों तक पहुंचता है. समुद्र के खारे पानी और भूमंडल के ताजे पानी के बीच भी नदियों और वर्षा के माध्यम से लेदने चलता रहता है. इस प्रकार के संपूर्ण आवागमन और लेनदेन से जल की गतियों का जो चक्र बनता है, वही जलचक्र है.
(लेखिका पर्यावरणविद हैं)

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