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हमदर्दो की भरमार पर किसान लाचार

कुणाल देव प्रभात खबर, जमशेदपुर जैसे-जैसे भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ किसान आंदोलन तेज होता जा रहा है मेरे परम मित्र बेबाक सिंह का दिल बैठता जा रहा है. पहले तो वह कभी-कभार किसी से सीधे मुंह बात भी कर लेते थे, लेकिन अब तो जैसे वह व्यवहार की इस विधा को भूल से गये […]

कुणाल देव

प्रभात खबर, जमशेदपुर

जैसे-जैसे भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ किसान आंदोलन तेज होता जा रहा है मेरे परम मित्र बेबाक सिंह का दिल बैठता जा रहा है. पहले तो वह कभी-कभार किसी से सीधे मुंह बात भी कर लेते थे, लेकिन अब तो जैसे वह व्यवहार की इस विधा को भूल से गये हैं.

अपनी मंडली के अन्य मित्रों के साथ एक दिन हम उनके घर पहुंचे. हमेशा की तरह घर का दरवाजा खुला था और टीवी चल रहा था. बेबाक सिंह वहीं दीवान पर पड़े-पड़े ऊंघ रहे थे. हमारी आमद पर वह हड़बड़ाते हुए उठे. घर-परिवार का हालचाल पूछने के बाद मिश्रजी ने देश-दुनिया की बात शुरू कर दी.

इसी बीच टीवी पर किसान आंदोलन की खबर चलने लगी. बेबाक सिंह ने रिमोट से टीवी को बंद किया और लगभग फेंकने के अंदाज में दीवान पर रखते हुए बोले, ‘‘खाली बकर-बकर करते रहते हैं. सत्ता में रहने पर किसानों की गरदन काटनेवाला कानून बनाते हैं और विपक्ष में रहने पर किसानों के हित में आंदोलन चलाते हैं. सब के सब धोखेबाज हैं.’’ ‘‘क्या हुआ सिंह साहब, आप तो खानदानी किसान हैं? आपके लिए आंदोलन चलाया जा रहा है और आप ही विरोध कर रहे हैं?’’, मिश्रजी ने टोकते हुए कहा.

‘‘हां मिश्रजी, हम किसान हैं, तभी तो दुखी हैं. हमारा यह दुख आज का है भी नहीं. दरअसल, हमारी स्थिति तो प्रयोगशाला के चूहे की तरह हो गयी है. कभी आयु बढ़ाने के नाम पर, कभी शक्ति बढ़ाने के नाम पर, तो कभी किसी और नाम पर, हमारे ऊपर तरह-तरह के प्रयोग किये जाते हैं. और हम निरीह प्राणी आजादी के छह दशक बाद भी सांपनाथ और नागनाथ के विकल्प में ही उलङो रहने को मजबूर हैं.

यह भूमि अधिग्रहण बिल भी इस जैविक प्रयोगशाला का ही एक पहलू है. वरना, माननीयों के वेतन-भत्ते में जब चाहे तब, एकमत से बढ़ोतरी हो जाती है और हमारा भूमि अधिग्रहण बिल हर बार बिलबिला कर बुलबुला भर रह जाता है’’, बेबाक सिंह दम भर के लिए रुक कर फिर शुरू हो गये-‘‘हमारा नौजवान खेती से दूर भागता है. इसका कारण यह नहीं कि उसे कीचड़ से डर लगता है या वह घृणा करता है, बल्कि वह अपने पुरखों की तरह घुट-घुट कर मरना नहीं चाहता. किसी काल में उत्तम श्रेणी वाली खेती अब आत्मनिर्भर भी नहीं रही.

पानी के लिए भगवान, खाद के लिए सरकार पर, बीज के लिए साहूकार पर व फसल की बिक्री के लिए खरीदार पर निर्भरता, स्वावलंबन के इस दौर में युवाओं को बहुत खलती है. तीन साल पहले सरकार ने हाइवे के लिए जमीन का अधिग्रहण कर लिया था. अब तक उसका मुआवजा भी तय नहीं हो पाया. हम चाह कर भी वहां खेती नहीं कर पा रहे. यह दर्द तो वही महसूस कर सकता है जो किसान हो. लकदक सफेद कुर्ता-पाजामा में एसी में बैठ नीतियां बनाने वाले और एसी गाड़ी से निकल फोटो खिंचवाने वाले इस दर्द को क्या जानें?’’

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