मनोज अग्रवाल
आम आदमी पार्टी के अंदर मचे घमासान के बीच एक नये घटनाक्रम में प्रशांत भूषण ने कहा कि उसने अपने इस्तीफे की पेशकश नहीं की है और न ही इस बाबत कोई चिट्ठी लिखी है. एक न्यूज चैनल से बातचीत में आप नेता प्रशांत भूषण ने इस बात का खंडन किया कि उसने पार्टी से इस्तीफे की कोई पेशकश की है. प्रशांत भूषण के स्वयं मीडिया के सामने यह स्वीकार करना कि उसने न तो पार्टी छोडने की पेशकश की है और न ही कोई चिट्ठी लिखी है बडे सवाल खडा करता है. अगर प्रशांत भूषण ने ऐसा नहीं कहा और किया तो आखिर कौन है जो इस तरह की खबरों को प्लांट कर रहा है?
पहले यह खबर आयी थी कि प्रशांत भूषण ने मंगलवार को एक चिट्ठी लिखकर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफे की पेशकश कर दी है. खबरों के मुताबिक प्रशांत ने यह चिट्ठी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को लिखी थी.
बताया जाता है कि भूषण ने अपनी चिट्ठी में चार प्रमुख मुद्दों का भी उल्लेख किया था, जिसमें पार्टी के अंदर पारदर्शिता और कार्यकर्ताओं को और अधिक अधिकार दिए जाने की मांग शामिल है.
इस तरह की घटनाक्रम से यह जाहिर होता है कि आप की भी राजनीतिक रणनीति या यूं कहें कि कार्यनीति भाजपा और कांग्रेस के आस-पास ही नजर आती है. आम आदमी पार्टी जो कहती है कि हम आम हैं और भाजपा कांग्रेस जैसी पार्टियों से बिलकुल अलग हैं मौजूदा हालात को देखकर ऐसा नहीं लगता है. कुछ उदाहरणों को देखें-
खबरों का प्लांटेशन
कल जो खबर आयी कि प्रशांत भूषण ने अपने इस्तीफे की पेशकश की है और इसको लेकर पार्टी को एक चिट्ठी लिखी है, आज प्रशांत भूषण ने स्वयं इसे खारिज कर दिया. कल चिट्ठी के हवाले से लंबी-चौडी पेशकश की गयी कि प्रशांत भूषण पार्टी के अंदर कई सुधार चाहते हैं. कहीं न कहीं यह खबरें पार्टी के किसी नेता के द्वारा ही फैलायी गयी होगी कि भूषण ने इस्तीफे की पेशकश की है. अपने राजनीतिक फायदे के लिए भाजपा और कांग्रेसके नेता भी इस तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं.
क्या था तथाकथित चिट्ठी में
प्रशांत भूषण ने जो तथाकथित चिट्ठी लिखी है उसमें कुछ शर्तों का जिक्र किया गया है, उनमें पार्टी में स्वराज, पार्टी में निर्णय लेने वाली एक मजबूत संस्था, पार्टी को आरटीआई के दायरे में लाया जाना, बैठकों के मिनट्स का ब्योरा ऑनलाइन डाला जाना, स्टेट यूनिट्स को फैसले लेने की छूट दिया जाना , राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पिछले दो सालों से खाली 7-8 पदों को भरा जाना और महिलाओं को भी उचित प्रतिनिधित्व दिये जाने जैसे शर्तें शामिल थी.
भाजपा, कांग्रेस की तरह आप सुप्रीमों भी हैं खास
भाजपा या कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मिलना पार्टी के साधारण कार्यकर्ताओं या नेताओं के लिए आसान नहीं होता है. अगर किसी राज्य का सीएम भी सोनिया गांधी से मिलने जाता है तो उसे उसके घर के बाहर या तो इंतजार करना पडता है या फिर बहुत पहले से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुलाकात हो पाती है. ऐसा ही हाल भाजपा में है. लेकिन आम आदमी पार्टी भी इससे अलग नहीं है और जबरदस्त जीत के साथ सत्ता में आयी आप में यह बात साफ झलकने लगी है. अपने 12 दिन के इलाज के बाद जब केजरीवाल सोमवार को दिल्ली लौटे तो प्रशांत भूषण ने उनसे मिलने का समय मांगा. लेकिन कुछ जरूरी काम की बात कहकर केजरीवाल ने कहा कि फिलहाल नहीं लेकिन जल्द मिलेंगे. हम बाद में आपसे मिलकर विस्तार से चर्चा करेंगे. पार्टी के संस्थापक सदस्य और इतने वरिष्ठ नेता रहे प्रशांत भूषण के बारे में भी पार्टी का यह स्टैंड इसे भाजपा और कांग्रेस से अलग नहीं करता है.
पार्टी की बातों को पार्टी के तीसरे तबके से कहलवाने की प्रवृति
अक्सर हर पार्टी में यह देखा जाता है कि अगर पार्टी के वरिष्ठ नेता या किसी सदस्य की आलोचना करनी है तो पार्टी के शीर्ष नेता सीधे-सीधे उसे कुछ नहीं कहते. इसके लिए पार्टी के तीसरे तबके का सहारा लिया जाता है.इसके लिए पार्टी के जूनियर नेताओं का सहारा लिया जाता है. यह संस्कृति भारतीय राजनीति में बहुत पुरानी है. कांग्रेस, भाजपा इससे वंचित नहीं है. कुछ इसी तरह की प्रवृति आप में भी जा रही है. योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण पर निशाना अरविंद केजरीवाल ने नहीं, बल्कि भगवंत मान व आशीष खेतान ने खुले तौर पर साधा. प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे नेताओं को पीएसी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया वह भी पार्टी सुप्रीमो की गैर मौजूदगी में. अब ऐसा नहीं है कि जो कुछ भी फैसला लिया गया उसमें केजरीवाल को कुछ भी पता नहीं होगा लेकिन प्रशांत भूषण जैसे नेता से सीधे-सीधे संवाद न करउन पर अप्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई का फैसला लिया.