भाजपा, झामुमो, कांग्रेस, राजद, जदयू से लेकर झारखंड की नामधारी पार्टियां सत्ता-शासन में रहे, लेकिन नीति नहीं बना सके. स्थानीयता के मामला केवल नियुक्तियों के समय उठता रहा. नेताओं के बयानबाजी तक ही पूरा मामला सिमट कर रह गया.
Advertisement
14 वर्षो में सदन से सड़क तक हुआ हल्ला, नहीं बनी नीति
रांची: रघुवर दास की 14 वीं सरकार में एक बार फिर स्थानीयता का मुद्दा उठा है. सरकार ने भी स्थानीय नीति बनाने की दिशा में पहल करने की बात कही है. इस मसले को लेकर सरकार सर्वदलीय बैठक बुलायेगी. हालांकि पिछली कई सरकार ने स्थानीय नीति बनाने का प्रयास किया, लेकिन मामला फंसता रहा. 14 […]
रांची: रघुवर दास की 14 वीं सरकार में एक बार फिर स्थानीयता का मुद्दा उठा है. सरकार ने भी स्थानीय नीति बनाने की दिशा में पहल करने की बात कही है. इस मसले को लेकर सरकार सर्वदलीय बैठक बुलायेगी. हालांकि पिछली कई सरकार ने स्थानीय नीति बनाने का प्रयास किया, लेकिन मामला फंसता रहा. 14 वर्षो में विधानसभा से सड़क तक हल्ला हुआ, लेकिन हल नहीं निकला. केवल राजनीति होती रही.
पिछली विधानसभा में अजरुन मुंडा की सरकार में स्थानीयता को भी मुद्दा बनाया. स्थानीयता के सवाल को आगे करते हुए झामुमो ने समर्थन वापस लिया. हेमंत सोरेन की सरकार बनी, लेकिन नीति नहीं बन सकी. स्थानीयता को लेकर अब तक तीन बार कमेटियां बन चुकी हैं. हेमंत सोरेन सरकार को छोड़ दें, तो किसी भी सरकार में कमेटी ने रिपोर्ट तैयार नहीं की.
हेमंत सरकार में तैयार हुआ था ड्राफ्ट : स्थानीय नीति को परिभाषित करने के लिए हेमंत सोरेन की सरकार ने तत्कालीन मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह को संयोजक बनाते हुए कमेटी बनायी. इसमें तत्कालीन मंत्री चंपई सोरेन, गीता श्री उरांव, सुरेश पासवान सहित बंधु तिर्की, लोबिन हेंब्रम, डॉ सरफराज अहमद, विद्युत वरण महतो, संजय सिंह यादव को सदस्य बनाया गया. 21 जनवरी 2014 को कमेटी का गठन किया गया. कमेटी की चार बैठकें हुईं. कमेटी ने ड्राफ्ट भी तैयार किया. इसमें मूलवासी और झारखंड निवासी के रूप में स्थानीयता को परिभाषित करने का प्रयास किया गया. वर्तमान रघुवर दास की सरकार इस कमेटी के प्रतिवेदन को मंगा रही है. सरकार इसका अध्ययन कर रही है.
मुंडा की कमेटी में हेमंत-सुदेश दोनों थे : 2011 में सरकार ने एक कमेटी बनायी थी. तत्कालीन अजरुन मुंडा सरकार में स्थानीय नीति बनाने की पहल की गयी थी. दूसरे राज्यों में डोमिसाइल की नीति का कमेटी ने अध्ययन भी किया. उस समय कमेटी में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और सुदेश कुमार महतो भी शामिल थे. कमेटी की तीन-तीन बैठक हुई, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे. तत्कालीन शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम भी कमेटी के सदस्य थे. अजरुन मुंडा के शासन काल में भी सरकार किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. इस कमेटी ने कोई ड्राफ्ट नहीं बनाया था.
स्थानीयता को लेकर कब-कब क्या होता रहा
राज्य गठन के बाद बिहार सरकार के श्रम एवं नियोजन विभाग के परिपत्र 03.03.1982 को स्वीकार करते हुए झारखंड के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग ने अधिसूचना संख्या 3389, दिनांक 22.09.2001 को अंगीकार किया. बिहार सरकार के पत्र के आधार पर स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा का आधार जिला को मना गया.
त्न 08.08. 2002 को एक बार फिर झारखंड सरकार ने स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा एवं प्राथमिकता को निर्धारित किया. लेकिन हाई कोर्ट में जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद 27.11.2002 पांच सदस्यीय खंडपीठ में उसे निरस्त कर दिया.
इसके साथ हाई कोर्ट ने स्थानीय व्यक्ति को पुन: परिभाषित करने तथा स्थानीय व्यक्ति की पहचान के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने के लिए राज्य सरकार को स्वतंत्र किया.
30.12.2002 को तत्कालीन सरकार ने एक समिति का गठन किया.
27.06.2008 को सरकार ने पहली बनायी गयी कमेटी को पुनर्गठित किया.
वर्ष 2011 में सरकार ने एक बार फिर समिति का गठन किया.
पिछली किसी समिति ने प्रतिवेदन नहीं दिया.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement