15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

लेगार्ड की राय और कुछ विचारणीय तथ्य

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड भारत दौरे पर हैं. उन्हें लगता है कि आर्थिक वृद्धि के लिहाज से भारत के लिए स्थितियां अभी बहुत संभावनाशील हैं, जिनका लाभ उठाने के लिए इसे अपनी अर्थव्यवस्था विश्व-बाजार के लिए पूरी तरह खोल देनी चाहिए. पूरी तरह खोलने से उनका आशय है ऊर्जा और खनन क्षेत्र […]

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड भारत दौरे पर हैं. उन्हें लगता है कि आर्थिक वृद्धि के लिहाज से भारत के लिए स्थितियां अभी बहुत संभावनाशील हैं, जिनका लाभ उठाने के लिए इसे अपनी अर्थव्यवस्था विश्व-बाजार के लिए पूरी तरह खोल देनी चाहिए.

पूरी तरह खोलने से उनका आशय है ऊर्जा और खनन क्षेत्र में विदेशी पूंजी और निवेशकों के लिए सुविधाजनक स्थिति तैयार करना. हालांकि, उदारीकरण की शुरुआत से ही मुद्रा कोष यह बात अलग-अलग ढंग से कहता रहा है. लेगार्ड के मुताबिक भारत में महिला श्रमशक्ति का 33 फीसदी हिस्सा ही कार्यरत है, जबकि वैश्विक औसत 50 फीसदी और पूर्वी एशिया के देशों में तो यह 63 फीसदी है.

उन्होंने सुझाव दिया है कि विकास दर बढ़ाने के लिए क्षेत्रवार और लैंगिक आयगत असमानता दूर कर महिला श्रमशक्ति की कार्य-प्रतिभागिता दर बढ़ायी जाये. लेगार्ड की यह सलाह स्वागतयोग्य है. लेकिन, इसे एक बड़े परिपेक्ष्य में देखने की भी जरूरत है. भारत में आर्थिक-वृद्धि के जिन वर्षो की प्रशंसा की जाती है, वे ही आर्थिक असमानता बढ़ाने के वर्ष भी रहे हैं. आइएलओ की रिपोर्ट में 2004-05 से 2009-10 के बीच के वर्ष ‘जॉबलेस ग्रोथ’ के रहे हैं.

आर्थिक वृद्धि दर के रुझानों के अनुरूप नौकरियों में वृद्धि इसके बाद हुई, जो 2011-12 तक जारी रही, लेकिन सबसे ज्यादा इन्हीं वर्षो में नौकरियों की प्रवृत्ति अस्थायी हुई और उसमें सामाजिक कल्याण का पक्ष गौण होता गया. श्रम-बाजार का सर्वाधिक हिस्सा असंगठित क्षेत्र में जरूरी सुविधाओं से वंचित होकर कार्य करने को बाध्य है. उधर, खेती में महिलाओं की श्रमशक्ति की तादाद बढ़ी है. जाहिर है, इस आयगत असमानता का निदान ऊर्जा तथा खनन जैसे क्षेत्रों को विदेशी पूंजी के लिए आकर्षक बनाने या सब्सिडी को सीधे बैंक खातों में पहुंचाने से नहीं हो सकता. लेगार्ड ने माना है कि बीते बीस सालों में भारत की वृद्धि-दर वैश्विक वृद्धि दर की तुलना में दोगुनी हुई, तो सोचा जाना चाहिए कि इन्हीं वर्षो में देश के 25 करोड़ से ज्यादा लोग दुनिया के सर्वाधिक गरीब में शुमार कैसे हुए? इसकी एक वजह यह तो नहीं, कि प्राकृतिक संपदा (खनन और ऊर्जा) में देशी-विदेशी निवेश हुआ और आबादी का एक बड़ा हिस्सा जीविका के परंपरागत आधारों से वंचित हो गया!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें