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अजय कुमार प्रभात खबर, पटना कुछ दिन पहले मैं अपनी सुंदर-सजीली साइकिल से कहीं जा रहा था. मोटरबाइक और कार के इस दौर में साइकिल चलाने का अपना मजा है. पेट्रोल के खर्च की बचत अपनी जगह है, सबसे बड़ा फायदा सेहत की पूंजी में इजाफे का है. हां, तो मैं साइकिल से मस्ती में […]

अजय कुमार

प्रभात खबर, पटना

कुछ दिन पहले मैं अपनी सुंदर-सजीली साइकिल से कहीं जा रहा था. मोटरबाइक और कार के इस दौर में साइकिल चलाने का अपना मजा है. पेट्रोल के खर्च की बचत अपनी जगह है, सबसे बड़ा फायदा सेहत की पूंजी में इजाफे का है. हां, तो मैं साइकिल से मस्ती में गुनगुनाते हुए जा रहा था कि अचानक मुङो झटका लगा.

मेरी जो आंखें सड़क पर गड़ी हुई थीं अचानक उन्हें आसमान नजर आने लगा. कुछ समय बाद जब दिमाग थोड़ा शांत हुआ तब जाकर समझ में आया कि मैं जमीन पर गिर चुका हूं. गुनगुनाते हुए मुङो एहसास ही नहीं हुआ कि मैंने कब सड़क पर फैले बालू पर अपनी साइकिल चढ़ा दी. बालू जी ने अपना कमाल दिखाया और मैं जमीन पर था. बगल में देखा तो एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था और उन्होंने ही बालू जी को अपनी करामात दिखाने का अवसर दिया था. मैं मन ही मन काफी खिन्न हुआ और बालू पर साइकिल चढ़ाने के लिए खुद को कोसने लगा.

उसके बाद मैंने दूर तक नजर डाली और देखा की सिर्फ वहीं नहीं, दूर तक कई और बड़ी इमारतें बन रही थीं और सड़क पर कई जगह बालू जी पसरे हुए थे. मैं अपने आप को इसलिए कोस रहा था, क्योंकि वे लोग तो अपनी कारगुजारी से बाज आनेवाले हैं नहीं. कम-से-कम मुङो तो साइकिल देख-भाल कर चलानी चाहिए थी. मुङो गिरा देख कर कई लोगों ने मुङो घेर लिया. सभी सांत्वना देने लगे, लेकिन किसी ने भी मुङो उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ाने की जहमत नहीं उठायी. सभी भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रवचन दे रहे थे. कुछ बालू फैलानेवाले ठेकेदार को कोस रहे थे और कुछ हमें ही दोषी मान रहे थे.

खैर! हमने खुद ही अपने पैरों पर शरीर का बोझ उठाया और कपड़े झाड़ते हुए उठ खड़े हुए. किसी ने हमारी मदद तो नहीं की, उल्टे हमें भविष्य का दर्शन भी करा दिया. एक ने तो यहां तक कहा कि शुक्र मनाइए कि रोड के किनारे गिरे, यदि बीच में गिरते और सामने से कोई ट्रक आ जाता तो? ऐसा भविष्य दर्शन कर वैसे ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये. खैर, उसके बाद मैंने उन भविष्य बतानेवाले महानुभावों को धन्यवाद कहा और अपनी साइकिल की चेन ठीक की. उसके बाद फिर से अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया.

साइकिल चलाते हुए इस घटना पर चिंतन-मनन करने लगा कि आखिर गलती किसकी थी- मकान बनानेवालों की, प्रशासन की, या मेरी खुद की? इस घटना से मुङो यह सीख अवश्य मिल गयी कि यदि साइकिल की जगह मैं बाइक पर होता, तो शायद मैं अस्पताल में होता. मैं मन ही मन अपनी प्यारी साइकिल को भी धन्यवाद देने लगा कि उसने मुङो अस्पताल जाने और उस पर होनेवाले खर्चे से भी बचा लिया. मेरी सभी बाइक और अन्य वाहन चलानेवालों से भी प्रार्थना है कि सड़क पर ध्यान देकर वाहन चलायें अन्यथा यदि बालूजी को आप पर क्रोध आ गया, तो आप अस्पताल में भी नजर आ सकते हैं.

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