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जिले के सैकड़ों घरों में आज नहीं जलेंगे चूल्हे

बिहारशरीफ : जिले के सैकड़ों घरों में फागुन माह की अष्टमी यानी शुक्रवार को चूल्हे नहीं जलेंगे और लोग बसियौढ़ा खायेंगे. यह परंपरा वर्षो पुरानी है. बसियौढ़ा की तैयारी को लेकर गुरुवार की देर रात्रि तक पकवान बनाने व खाने का सिलसिला चलता रहा है. लोग बताते हैं कि गुरुवार की रात्रि में चार बजे […]

बिहारशरीफ : जिले के सैकड़ों घरों में फागुन माह की अष्टमी यानी शुक्रवार को चूल्हे नहीं जलेंगे और लोग बसियौढ़ा खायेंगे. यह परंपरा वर्षो पुरानी है. बसियौढ़ा की तैयारी को लेकर गुरुवार की देर रात्रि तक पकवान बनाने व खाने का सिलसिला चलता रहा है. लोग बताते हैं कि गुरुवार की रात्रि में चार बजे सुबह तक पकवान बनाने का क्रम चलेगा.

देर शाम तक लोग बसियौढ़ा के लिए शाकाहारी भोजन,पुआ ,खमौनी ,पुड़ी , दलपुड़ी,सब्जी,चना का दाल, अरवा चावल व दाल सहित होली के मौके पर जो पकवान बनाये जाते हैं के बनाने व उसकी तैयारी में लगे रहे हैं. लोग बसियौढ़ा को माता शीतला के प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. इस क्षेत्र के लोगों की ऐसी मान्यता है कि फागुन माह के अष्टमी को चूल्हा जलाने से माता शीतला के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है.

क्षेत्र में कभी फैला था चेचक का प्रकोप : माता शीतला मंदिर पंडा कमेटी के पूर्व सेक्रेटरी कृष्ण कुमार शर्मा बताते हैं कि शीतला माता की महिला के बारे में स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है. पुराण के अनुसार एक बार इस क्षेत्र में चेचक का भयंकर प्रकोप हुआ था. सैकड़ों लोगों की जान इस रोग में चली गयी थी. इसी दौरान गांव के जमींदार के सपने में शीतला माता आयी और उसने अपने को जमीन में दबे होने की जानकारी दी. माता ने निकाल कर दूध दही लगाने की बात जमींदार को बतायी.

जमीन खोदने से बना कुआं : श्री शर्मा बताते हैं कि माता शीतला को बाहर निकालने के लिए मिट्टी की खुदाई की गयी. वह कुआं बन गया, जिसे आज भी लोग मिट्ठी कुआं के रूप से जानते हैं. इस मिट्टी कुआं के पानी का प्रयोग आज भी लोग प्रसाद बनाने के रूप में करते हैं.

चेचक की देवी मानी जाती है मां शीतला : माता शीतला को चेचक रोग की देवी माना जाता है. आज भी चेचक के रोगी चंगा होने के लिए माता शीतला मंदिर आते हैं. चेचक के रोगी मघड़ा तालाब में स्नान कर दही-चीनी से माता को स्नान कराते हैं. तालाब के जल को ही माता शीतला पर ही चढ़ाया जाता है. पुजारी द्वारा भक्तों को दल व भस्म दिया जाता है. इस भस्म को चेचक के रोगी शरीर पर लगाते हैं.

भीड़ को देखते हुए अरघा सिस्टम :

शीतलाष्टमी मेले में मां के भक्तों को काफी भीड़ होती है. इस भीड़ को देखते मंदिर प्रबंध समिति ने माता पर जल चढ़ाने के लिए अरघा सिस्टम शुरू किया है. मंदिर के अंदर पंडा या पुजारी रहते हैं और मंदिर के प्रांगण में भक्तगण रहते हैं. चढ़ावा पुजारी के माध्यम से शीतला माता पर चढ़ाया जाता है.

मेले को ले सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध :

शीतलाष्टमी मेले में मां के भक्तों की भारी भीड़ देखते हुए प्रशासन के द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं. दंडाधिकारी के नेतृत्व में पर्याप्त संख्या में पुलिस बल तैनात किये गये हैं.

मेले को लेकर कई तरह के झूले, ब्रेक डांस, ड्रैगन, मिकी माउस शो आदि लगाये हैं.

सज-धज कर तैयार है मंदिर :

शीतलाष्टमी मेले को लेकर माता शीतला मंदिर की रंगाई-पुताई कर आकर्षक ढंग से सजाया गया है. मंदिर जाने वाले रास्ते की सफाई की गयी है. रास्ते के दोनों ओर पूजा सामग्रियों, खिलौने, चूड़ी-श्रृंगार की दुकानें लगायी गयी है. यह मेला दो दिन तक चलता है.

इन गांवों में नहीं जलेंगे चूल्हे :

मघड़ा, सिपाह, चक रसलपुर, राणा बिगहा, पचौड़ी, लखराम, जोरारपुर, बेमानी, साठोपुर, देवीसराय, डुमरावां, गोला पर, खरज्मा, सरैया, गरीबपुर, मेहरपर, पहड़पुरा आदि है.

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