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विदेशों में पहुंची गांव की तैयार साड़ी

राजनगर के गांवों में इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग का कार्य विदेशियों को खूब भा रहा है खरसावां : खरसावां, कुचाई के बाद अब राजनगर के गांवों में तैयार साड़ियों की मांग विदेशों तक पहुंचने लगी है. सिल्क की साड़ी व कुरती पर कि ये गये इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग का कार्य विदेशियों को खूब भा […]

राजनगर के गांवों में इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग का कार्य विदेशियों को खूब भा रहा है

खरसावां : खरसावां, कुचाई के बाद अब राजनगर के गांवों में तैयार साड़ियों की मांग विदेशों तक पहुंचने लगी है. सिल्क की साड़ी व कुरती पर कि ये गये इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग का कार्य विदेशियों को खूब भा रहा है. गांवों में तैयार हो रहे कपड़े देश के विभिन्न हिस्सों में खेल गये झारक्रॉफ्ट के मार्ट के अलावा विदेशों में भी भेजे जा रहे है.

कुरती व साड़ियों की मांग अमेरिका, इंग्लैंड, तुर्की, लैबनान, जर्मनी, बांग्लादेश, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, फ्रांस, न्यूजीलैंड एवं जापान में काफी है. झारक्रॉफ्ट की ओर से खरसावां, कुचाई व राजनगर प्रखंड के विभिन्न गांवों में केंद्र खोल कर इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग के जरिये करीब आठ सौ महिलाओं को स्वरोजगार मिल रहा है.

प्रत्येक केंद्र में 30 से 35 महिलाएं कार्य कर रही है. पूर्व में इन महिलाओं को तीन माह का प्रशिक्षण दिया गया था. फिलहाल इन केंद्रों में कुरती के कपड़ों के साथ-साथ तसर की साड़ी पर इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग का कार्य हो रहा है. इस कार्य के लिए महिलाओं को सरकार की ओर से निर्धारित राशि मेहनताना के रुप में मिल रही है.

कुरती व सिल्क की साड़ी पर इंबोडोरी से कांथा स्टीचिंग करने के बाद झारक्रॉफ्ट के माध्यम से इसे बाजार में बेचा जा रहा है. खरसावां के नारायणडीह व आमदा तथा कुचाई के बाईडीह में केंद्र खोल कर साड़ी की बुनाई भी की जा रही है. प्रत्येक केंद्र में 10-10 लुम लगा कर साड़ी का उत्पादन किया जा रहा है. इन केंद्रों में भी महिलाओं को स्वरोजगार मिल रही है.

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