श्रीनगरःअलगाववादी नेतामसरतआलम की रिहाई पर घमासान मचा है. इस बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है. टीवी रिपोर्ट की माने तो मसरत आलम को रिहा करने का फैसला 1 मार्च को मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार बनने से पहले हो गया था. मसरत की रिहाई का फैसला जम्मू कश्मीर में 49 दिनों के राज्यपाल शासन के दौरान ही ले लिया गया था.
एबीपी सूत्रों के मुताबिक फरवरी में राज्य के गृह सचिव सुरेश कुमार ने जम्मू के जिलाधिकारी को एक चिठ्ठी लिखी थी. इस चिठ्ठी में कहा गया था कि मसरत आलम के खिलाफ के जन सुरक्षा कानून के तहत जोरी किया गया नजरबंदी का आदेश सितंबर 2014 में ही खत्म हो गया था.
केंद्र ने राज्य सरकार से रिहाई पर पूरी रिपोर्ट मांगी थी. केंद्र सरकार को भले ही मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद के कट्टरपंथी मसर्रत आलम की रिहाई में खामियां नजर आ रही हो, लेकिन राज्य सरकार ने अपनी रिपोर्ट में फैसले की पैरवी की है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कल अपने बयान में कहा था कि मसर्रत पर 27 मामले दर्ज हैं. मसर्रत को उच्च न्यायालय द्वारा सभी मामलों में जमानत दिए जाने को आधार बनाते हुए उसे रिहा करने की बात कही है.
इसके साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि पूरी नहीं सशर्त रिहाई है व जांच के लिए उसे कभी भी वापस बुलाया जा सकता है. मसर्रत की रिहाई के बाद दोनों सदन में हंगामा जारी है. मसर्रत उस समय चर्चा में आया था जब उसने वर्ष 2010 में कश्मीर में हड़तालों के लिए कैलेंडर जारी कर हालात बिगाड़ने में सक्रिय भूमिका निभाई थी. इस दौरान कश्मीर में सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद मसर्रत को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत जेलों में रखा जा रहा था. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कल मसर्रत पर दर्ज मामलों को भी सदन के सामने रखा और कानूनी जानकारियां भी दी.