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बाजार सुधरने की उम्मीद लगाये हैं किसान

मनसाही . व्यापारिक खेती के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले मनसाही क्षेत्र के किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है. रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों आदि के बहुतायत में इस्तेमाल ने पिछले दो दशकों में यहां के किसानों को मालामाल तो किया लेकिन खेतों की ऊर्वरता को नुकसान पहुंचाने के साथ ही […]

मनसाही . व्यापारिक खेती के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले मनसाही क्षेत्र के किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है. रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों आदि के बहुतायत में इस्तेमाल ने पिछले दो दशकों में यहां के किसानों को मालामाल तो किया लेकिन खेतों की ऊर्वरता को नुकसान पहुंचाने के साथ ही नई परेशानियों को भी जन्म दिया. दो-तीन सालों में ऐसे कई मामले आये. जिन्होंने बड़े किसानों की नींद उड़ा दी. प्रमुख व्यापारिक फसल केला पनामा-बिल्ट नामक रोग का शिकार हुआ. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे खेतों में अगले 10 सालों तक केले की खेती नहीं की जा सकती. इतना ही नहीं इसका दायरा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. विशेषज्ञों की माने तो इसमें सबसे अहम भूमिका उत्पादकता बढ़ाने को लेकर मची होड़ को लेकर है. जिसके कारण अंधा-धंुध उर्वरकों एवं कीटनाशकों आदि का प्रयोग जारी है. इसमें एक बड़ी भूमिका बाजार की भी है. जहां विभिन्न कंपनियों के उत्पादों के जरिये ज्यादा उत्पादन को किसानों के बीच भुनाया जाता है. इस पूरे सिलसिले में किसान ही मुख्य टार्गेट होता. जिस पर सबकी नजर होती है. एक ताजा उदाहरण आलू का है. जिसने किसानों को खून के आंसू रुलाना शुरू कर दिया. एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार महंगे बीजों के कारण इस बार आलू खेती की औसत लागत एक लाख रुपये प्रति एकड़ है. बाजार में आलू की दर 3 से 3.5 सौ रुपये प्रति क्विंटल है. इस लिहाज से किसानों के लागत की तिहाई-चौथाई वसूल हो पाना भी मुश्किल है. इतने जोखिम के बाद बाजार के कारण औंधे मुंह गिरते किसानों की दुर्दशा क्या बयान करने लायक होगी. अब सब कुछ बाजार की स्थिति बेहतर होने की उम्मीदों पर टीकी है.

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