काफी दिनों तक चलनेवाली राजनैतिक उठा-पटक के बाद आखिरकार नीतीश कुमार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो गये हैं. उन्होंने मौजूदा सरकार में दूसरी बार और अब तक चौथी बार बिहार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. राजेंद्र मंडप में राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के शपथ दिलवाते ही बिहार में एक नया राजनैतिक परिदृश्य शुरू हो गया.
नीतीश कुमार अपने नये साथियों के साथ विधानसभा की ओर चल पड़े हैं. इसी के साथ नीतीश कुमार को एक फिर उनके विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौका मिला है. कुछ ही महीनों में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस लिहाज से भी उनका यह कार्यकाल बहुत ही महत्वपूर्ण होगा. इन नौ महीनों में उन्हें वही सुशासन की राजनीति करनी होगी, जिसकी बदौलत वह इतने दिनों तक बिहार की राजनीति के केंद्र बिंदु बने रहे.
नीतीश के लिए चुनौती यह भी है कि वे जदयू, राजद और कांग्रेस के महागंठबंधन की साख को भी बनाये रखें और सुशासन की छवि को भी. यह कार्य इस बार उनके लिए थोड़ा मुश्किल भरा जरूर होगा, क्योंकि पिछले नौ सालों से वे जो लगातार दावा कर रहे थे कि उन्होंने लालू यादव के जंगलराज को खत्म कर बिहार को विकास के रास्ते पर वापस ला दिया है, आज राजनीतिक फायदे के लिए वो उसी जंगलराज की गोद में जाकर क्यों बैठ गये? सवाल यह भी उठता है कि अगर वे सत्ता में दोबारा वापस आते हैं, तो क्या वे उसी प्रकार से स्वतंत्र फैसले ले सकेंगे, जैसा कि वे पहले कार्यकाल में लिया करते थे. आज वे भले ही चौथी बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए हैं, लेकिन उनके सामने चुनौतियां अनेक हैं. इन चुनौतियों से पार पाने के बाद ही उनके राजनीतिक भविष्य का फैसला होगा.
विवेकानंद विमल, पाथरोल, मधुपुर