नयी दिल्ली : पर्यावरण चुनौतियों से निपटने और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास पर विशेष जोर के साथ भारत ने 2022 तक सौर और पवन ऊर्जा समेत अक्षय ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों की स्थापित क्षमता 170,000 मेगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी स्थापित करने की योजना बनायी गयी है.
संसद में पेश 2014-15 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2022 तक सौर ऊर्जा मिशन के तहत लक्ष्य पांच गुना बढाकर 1,00,000 मेगावाट किया गया है. कुल मिलाकर 2022 तक अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में संयुक्त स्थापित क्षमता 170,000 मेगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है.
31 दिसंबर 2014 तक की स्थिति के अनुसार अक्षय ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 33,800 मेगावाट (33.8 गीगावाट) हो गयी है. इसमें पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी सबसे अधिक 60 प्रतिशत है. इसके बाद क्रमश: बायोगैस, लघु पनबिजली और सौर ऊर्जा का स्थान है.
समीक्षा के अनुसार इससे अगले पांच साल में 160 अरब डालर के व्यापक और व्यवसायिक अवसरों के उत्पन्न होने की संभावना है. इसमें यह भी कहा गया है कि कोयले पर 2010 में लगाये गये स्वच्छ ऊर्जा उपकर से राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि में अबतक कुल 17,000 करोड रुपये प्राप्त हुए हैं. इस उपकर को 2014 में बढाकर 100 रुपये प्रति टन कर दिया गया.
समीक्षा के अनुसार सितंबर 2014 तक इस निधि में से 16511.43 करोड रुपये की 45 स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं की सिफारिश की गयी है. इतना ही नहीं भारत इस दिशा में प्रयास कर रही है कि जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में योजनाओं के वित्त पोषण के लिये सांस्थानिक क्षमता का विकास कर सके. 100 करोड रुपये के प्रारंभिक निधि से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये एक राष्ट्रीय अनुकूलन निधि स्थापित की गयी है.
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