नयी दिल्ली : रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने निजीकरण को खारिज करते हुए आज कहा कि रेलवे अपनी विभिन्न प्रकार की विकास परियोजनाओं के लिए यात्री बढाने या करदाताओं के धन के उपयोग के बजाय दीर्धकालिक ऋण पर निर्भर करेगी. प्रभु ने लोकसभा टीवी को दिए साक्षात्कार में कहा ‘आने वाले दिनों में विकास (बुनियादी ढांचा) का जरिया ऋण होगा. अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे देशों ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए रिण लिया है.’
यह पूछने पर कि क्या सरकार भविष्य में रेलवे के निजीकरण करने वाली है, उन्होंने कहा ‘हम रेलवे बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ऋण ले रहे हैं जिसका अर्थ है हम निजीकरण नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा विकास को कोई बोझ यात्री किराए और करदाताओं के धन पर नहीं पडेगा.’ प्रभु ने भरोसा जताया कि एलआईसी, पेंशन कोष और सावरेन फंड ऋण मुहैया करा सकते हैं और वे ऋण के जल्दी भुगतान पर जोर नहीं डालेंगे.
उन्होंने कहा ‘एलआईसी, पेंशन कोष और सावरेन वेल्थ फंड अल्पकाल में पुनर्भुगतान पर जोर नहीं देते बल्कि वे चाहते हैं हम 30 साल में इसका भुगतान करें.’ उत्साहपूर्वक शुरुआत करने के संबंध में उन्होंने मशहूर मुहावरे का उल्लेख किया ‘रोम एक दिन में नहीं बना. कुछ चीजें हैं तो इस साल की जाएंगी, मसलन, 3000 मानव-रहित क्रासिंग खत्म करना और स्वच्छता, सुरक्षा, संरक्षा तथा निगरानी बढाने के लिए तुरंत काम शुरू किया जाएगा.’
मंत्री ने इशारा किया कि ट्रेनसेट, रेल डब्बों को नए सिरे से डिजाईन करने और रेल लाईनों के तिहरीकरण जैसी कुछ पहलों के कार्यान्वयन में उम्मीद से ज्यादा समय लग सकता है. भारत में बुलेट ट्रेन चलाने के संबंध में उन्होंने कहा ‘हमारा जोर स्वच्छता, समय पर गाडियों का परिचालन आदि पर रहेगा जिस पर तय समय में कार्यान्वयन होगा. ये फोकस क्षेत्र होंगे.’
रेलवे में निजी भागीदारी के संबंध में प्रभु ने कहा कि निजी क्षेत्र की उन कंपनियों के नियमन के लिए एक प्रणाली होगी जो स्टेशन विकास परियोजनाओं में करना चाहते हैं. रेलवे की क्षमता में सुधार के लिए अधिकारों के विकेंद्रीकरण पर उन्होंने कहा ‘ऐसा पहली बार होगा जबकि हमारे अधिकारियों को ज्यादा जिम्मेदारी दी जाएगी. अब सारा काम रेल मंत्री या रेल बोर्ड नहीं करेगा.’ इससे पहले अपने बजट भाषण में प्रभु ने कहा ‘हम अपनी परिसंपत्तियों को बेचने के बजाय इसका फायदा उठाएंगे.’
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